अखंड भारत का महानायक

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अखंड भारत  का महानायक 

इतिहास के कुछ महानायक भुला दिए गए उनमे से एक है  फ्रंटियर या सीमांत गांधी या बादशाह खान ( Khan Abdul Ghaffar Khan) । उनका जीवन , उनके त्याग तपस्या की गाथा  स्कूलों में नहीं पढाई जाती । 

 बंटवारे के बाद बापू ने कहाँ 

" अब कुछ नहीं हो सकता खान,  पाकिस्तान जाओ अलविदा" 

ये राष्ट्रवादी नेता  गहरी पीड़ा से रो पड़ा,  पहले अंग्रेज़ो ने जेल में डाला फिर आधी अधूरी आज़ादी को अस्वीकार करने पर ,पाकिस्तान बनाने का विरोध करने के कारण पाकिस्तान की जेल में यातना सही, पाकिस्तान बनाने वाले उन्हें गद्दार समझते थे ।

आज लिखते समय, उन से जुड़ा एक  संस्मरण याद आ गया।

जब पाकिस्तान की जेल से रिहा हुए तो आमंत्रण पर दिल्ली पहुँचे,  एयरपोर्ट पर बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा जी पहुँची स्वागत के लिए और विपक्ष का प्रतिनिधित्व करते हुए जयप्रकाश नारायण जी ।

 इतने बड़े कद के  नेता,  हाथो में कपडे की गठरी में अपना सामान बांध कर लाए  थे, सुटकेश ,बैग तक नहीं था उनके पास ,  इंदिरा जी भावुक हो गयी और कहाँ  लाइए इसे हमें दीजिये। बादशाह खान ने उत्तर दिया 

" बस यही तो बचा है ,इसे भी लेना चाहती हो "। 

उनकी बातों में व्यंग्य नहीं ,बंटवारे की पीड़ा थी । उनका बलोचिस्तान और पेशावर सहित पूरा फ्रंटियर स्टेट अब पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। अखंड भारत का स्वप्न देखने वालों के लिए भारत का टूटना किसी पक्षधात से कम नहीं था। हमने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया किन्तु इस महान नेता को हमेशा के लिए भुला दिया।

उनका पूरा जीवन पवित्र और देवतुल्य है। श्री कृष्ण गीता में ऐसे श्रेष्ठ जनो  को " स्थिति प्रज्ञ " की संज्ञा देते है। 

आज ऐसी परिस्थिति नहीं है ,किन्तु मुझे लगता है वो दिन अवश्य आएगा जब फिर से फ्रंटियर एक्सप्रेस दिल्ली से पेशावर तक जायेगी, सिंधु नदी भारत में बहेगी ।

डॉ.संजय अनंत ©


राम हाइकु

 

राम हाइकु

गीत

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

*

बल बनिए

निर्बल का तब ही

मिले प्रणाम।

क्षणभंगुर

भव सागर, कर

थामो हे राम।।

*

सुख तजिए / निर्बल की खातिर / दुःख सहिए।

मत डरिए / विपदा - आपद से / हँस लड़िए।।

सँग रहिए

निषाद, शबरी के

सुबहो-शाम।

क्षणभंगुर

भव सागर, कर

थामो हे राम।।

*

मार ताड़का / खर-दूषण वध / लड़ करिए।

तार अहल्या / उचित नीति पथ / पर चलिए।।

विवश रहे

सुग्रीव-विभीषण

कर लें थाम।

क्षणभंगुर

भव सागर, कर

थामो हे राम।।

*

सिय-हर्ता के / प्राण हरण कर / जग पुजिए।

आस पूर्ण हो / भरत-अवध की / नृप बनिए।।

त्रय माता, चौ

बहिन-बंधु, जन

जिएँ अकाम।

क्षणभंगुर

भव सागर, कर

थामो हे राम।।

***


गुरुनानक जयंती : मानवता का आलोक


मानवता के पथप्रदर्शक

भैण नानकी दा वीर, तन-मन दा फकीर —

ओ है जोगियां दा जोगी, ते है पीरां दा पीर।

या यूँ कहें —

 “बाबा नानकशाह फ़कीर, हिन्दू का गुरु – मुसलमान का पीर।”

गुरु नानक देव का जीवन किसी धर्म-विशेष की सीमाओं में नहीं बंधा था। वे मानवता के पथप्रदर्शक थे — एक ऐसे युग में जब समाज जातिगत भेदभाव, आडंबरों और अंधविश्वासों में उलझा हुआ था, उन्होंने समानता, सत्य और प्रेम का दीप प्रज्वलित किया।

बालक नानक ने बचपन में ही कहा था — “मुझे सांसारिक पढ़ाई नहीं, परमात्मा की पढ़ाई अधिक आनन्दायिनी लगती है।”

 उनकी यह वाणी किसी विद्रोह से नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से उत्पन्न थी। उन्होंने कहा —

“मोह को जलाकर स्याही बनाओ, बुद्धि को कागज़, प्रेम की कलम बनाओ और चित्त को लेखक।”

यह शिक्षा आज भी बताती है कि सच्चा ज्ञान पुस्तकों में नहीं, अंतःकरण की पवित्रता में है।

गुरु नानक ने जीवन को उदासियों — यात्राओं — में रूपांतरित किया। वे चले, और चलते रहे — भारत से तिब्बत, अरब से श्रीलंका तक — हर स्थान पर एक ही संदेश दिया —

“एक ओंकार सतनाम।”

ईश्वर एक है, और वही सत्य है। उन्होंने बताया कि कर्म ही पूजा है, सच्ची कमाई ही प्रसाद है, और सेवा ही धर्म।

गुरु नानक के शब्द आज भी गूंजते हैं —

“ना कोई हिन्दू, ना मुसलमान — सब में एक ही नूर है।”

उनके दर्शन ने समाज को यह समझाया कि मानवता का आधार विभाजन नहीं, एकता है; श्रद्धा का माप मंदिर या मस्जिद नहीं, मन की निर्मलता है।

आज जब संसार भौतिकता और स्वार्थ की परिधियों में उलझा है, तब गुरु नानक का यह प्रकाश हमें स्मरण कराता है कि मनुष्य का सच्चा धर्म प्रेम है।

 उनका दर्शन हमें यह सिखाता है कि जीवन का अर्थ है — सत्य की खोज, सेवा का संकल्प और करुणा का प्रसार।

गुरुनानक जयंती केवल उत्सव नहीं, आत्ममंथन का अवसर है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में वही प्रकाश जगाएँ जो पाँच शताब्दियों पूर्व नानक ने जगाया था — मानवता का, प्रेम का, और सत्य का

सतनाम वाहेगुरु

 सुरेश चौधरी “इंदु”


तमिलनाडु में धर्म–एकता का अद्भुत संगम


 तमिलनाडु में धर्म–एकता का अद्भुत संगम


टिंडीवनम में भव्य सामूहिक समवशरण विधान सम्पन्न

टिंडीवनम (तमिलनाडु)। प. पू. आचार्य 108 श्री वसुनन्दी जी महामुनिराज एवं गणिनि आर्यिका 105 गुरुनंदनी माताजी ससंघ के पावन सानिध्य में टिंडीवनम नगर में नयनार जैन समाज व खंडेलवाल दिगंबर जैन समाज के संयुक्त तत्वावधान में सामूहिक कल्पद्रुम विधान (24 समवशरण महार्चना) का आयोजन ऐतिहासिक भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ।
यह आयोजन केवल श्रद्धा और भक्ति का पर्व नहीं रहा, बल्कि इसने दो समाजों के बीच आपसी एकता और सामाजिक बंधन को और मजबूत किया।
आयोजन की सफलता का श्रेय संजय जी ठोलिया को दिया गया, जिनकी दृढ़ निष्ठा और मेहनत से यह ऐतिहासिक अवसर संभव हुआ। उनके प्रेरक उद्बोधन ने पांडिचेरी एवं तमिलनाडु जैन समाज को गहराई से प्रभावित किया।
विशेष सहयोग भामाशाह श्री एम के जैन का  रहा। वहीं टिंडीवनम कमेटी के भास्कर जी, श्रैणिक जी, अशोक जी सहित सभी टिंडीवनम वासियों की सामूहिक प्रतिबद्धता ने आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  सामूहिक समवशरण विधान सचमुच धर्म, भक्ति और सामाजिक एकता की जीवंत मिसाल बनकर इतिहास में दर्ज हो गया।

राजेन्द्र जैन महावीर 
सनावद 
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बेटियाँ


जिनको हम

गर्भ में आने से

जन्म लेने से

बड़ा होने से

खुल के हंसने से

खेलने से

पढ़ने से

गाने से 

नाचने से 

मंच पर जाने से 

बाहर निकलने से

घूमने-घुमाने से 

मन कहा खाने से 

फैसला करने से

क'रिअर चुनने से 

रोकते हैं 

टोकते हैं

मर्यादा थोपते हैं 

पल्लू से दाबते हैं 

बुर्के से ढांकते हैं 

गहनों से लादते हैं 

अंकुशों बाँधते हैं 

आज़ादी छीनते हैं 

धमकये रहते हैं 

फब्तियों से बींधते हैं 

ज़िना से रौंदते हैं 

डरना सिखाते हैं 

दबना सिखाते हैं 

झुकना सिखाते हैं 

सहना सिखाते हैं 

फिर 

इन्हीं बेटियों के 

*मेडल जीतने पर *

ताली बजाते हुए..... 


हम शर्मसार हैं 

तुम्हारे गुनाहगार हैं 

हमारी सोच छोटी है

नीयत खोटी है

क्या ये बातआपने सोची है??? 


सोची नहीं तो 

अब सोचना होगा 

क़ायदे बदलने होंगे, 

ख़ुद को बदलना होगा 

बेटियों को मान दें, 

सम्मान दें, 

समानता का अधिकार दें 

खेलने दें,

पढ़ने दें, 

आगे बढ़ने दें,

सुविधा-स्वतंत्रता दें, 

 फ़ैसले करने दें

बेटियाँ बोझ नहीं वरदान हैं 

आपकी तरह ही वो भी इन्सान हैं।


#शैली


महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने वालों पर सख्त कार्रवाई

 काश की हमारे देश के हर गाँव, शहर में ऐसी पहल हो और उसको सभी ईमानदारी से माने तो कितना अच्छा हो।कितनी ही कुरीतिया समाप्त हो जाएं।कुछ बातें जो मुझे बहुत तकलीफ़ देती थी जिनमें कई बार सगे भाइयों का एक दूसरे को माँ-बहन की गाली देना।किसी के द्वारा भी कहीं भी आपस में गाली सुनकर बहुत बुरा लगता था।आपसी लड़ाई में कोई भी गाली क्यों देना, खासकर माँ-बहन को बीच में क्यों लाना।विधवाओं के साथ भेदभाव, बच्चों की मोबाइल के पीछे दीवानगी,बाल मजदूरी।अभी हाल ही में महाराष्ट्र के सोंदाला अहिल्या नगर (अहमदनगर) गांव ने महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा के लिए 24 नबम्बर 2024 को गाली देने वालों पर 500 रुपये का जुर्माना लगाने का फैसला किया है।ग्राम पंचायत ने यह ठराव सर्वसम्मति से पारित किया। महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।

ग्राम पंचायत के सरपंच शरद अडागले ने बताया कि यह फैसला महिलाओं के आत्मसम्मान को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है।उन्होंने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र में महिलाओं का सम्मान सर्वोपरि है।यह नियम इसलिए पारित किया गया ताकि लोग गाली देने से पहले सोचें और अपनी भाषा पर नियंत्रण रखें।अपशब्दों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला और अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करने वालों पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।महाराष्ट्र के इस गांव में बातचीत के दौरान गाली-गलौच करना आपको भारी पड़ सकता है। क्योंकि यहां पर गांववालों ने गालियों के इस्तेमाल पर रोक लगाने का संकल्प लिया है। अरगडे ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि जो लोग ऐसी भाषा का उपयोग करते हैं वे भूल जाते हैं कि वे माताओं और बहनों के नाम पर जो कहते हैं वह उनके अपने परिवार की महिला सदस्यों पर भी लागू होता है।

महिलाओं के सम्मान पर बात करते हुए अरगडे ने कहा कि हमारे गांव में पहले भी महिलाओं के आत्मसम्मान को ध्यान में रखते हुए सामाजिक रूढ़िवादी कुरीतियों के खिलाफ फैसले लिए हैं। उन्होंने कहा कि हम विधवाओं को सामाजिक और धार्मिक अनुष्ठानों तथा रीति-रिवाजों में शामिल करते हैं। इसके अलावा हमारे गांव में पति की मृत्यु के बाद महिलाओं का सिंदूर हटाना, मंगलसूत्र उतारना और चूड़ियां तोड़ना भी प्रतिबंधित है।

अरगड़े ने बताया कि हमारी गांव की यह बातें किसी भी तरह से हवा-हवाई नहीं है। ग्रामवासी इन सभी फैसलों का सम्मान करते हैं और उन्हें मानते भी है। 2007 में हमारे गांव को विवाद-मुक्त गांव होने का राज्यस्तरीय पुरस्कार भी मिला था। सौंदाला गांव की ग्राम पंचायत ने बाल मजदूरी, गाली-गलौज और मोबाइल की लत को रोकने के लिए अनूठी पहल की है।अब अगर कोई भी व्यक्ति गाली-गलौज करता हुआ पाया गया, तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा।सौंदाला ग्राम पंचायत ने हाल ही में इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था और 2 दिसंबर से गांव में इस नियम का पालन हो रहा है। निवासियों को इसकी जानकारी के लिए पूरे गांव में बैनर लगाए गए हैं।इसके अलावा, गाली देने वालों को कैमरे में कैद करने के लिए गांव के विभिन्न स्थानों पर सीसीटीवी लगाए गए हैं।नेवासा तालुका के सौंदाला गांव में हाल ही में आयोजित ग्राम सभा में गांव के लोगों के साथ-साथ बाहरी लोगों को भी गाली-गलौज न करने की चेतावनी दी गई है। यह निर्णय लिया गया है कि मां-बहनों सहित दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करने वालों पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।

मोबाइल की लत स्कूली छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर डाल रही है, इसलिए ग्राम पंचायत ने अभिभावकों से कहा है कि वे अपने बच्चों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करने दें।यह निर्णय लिया गया है कि स्कूली छात्रों को शाम 7 से 9 बजे के बीच घर पर मोबाइल फोन नहीं दिया जाएगा।अगर कोई बच्चा इस दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल करता हुआ पाया जाता है, तो उसके परिवार को 500 रुपये का जुर्माना देना होगा। गांव के जिला परिषद स्कूल के शिक्षकों की एक टीम हर दिन शाम 7 से 9 बजे के बीच गांव में घूमकर मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर निगरानी रखेगी।बाल मजदूर की फोटो लाने पर 1000 रुपये का इनाम

साथ ही गांव में बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए अभियान चलाया गया है, इसके लिए 'बाल मजदूर दिखाओ और 1000 रुपये पाओ' का नारा दिया गया है।सौंदाला के सरपंच शरद अरगड़े ने कहा है कि अगर कोई बाल मजदूर को देखता है और उसकी फोटो खींचकर ग्राम पंचायत में लाता है तो उसे 1000 रुपये का इनाम दिया जाएगा।ग्राम सेवक प्रतिभा पिसोटे ने कहा कि जुर्माने की राशि का इस्तेमाल लोगों को गाली-गलौज के खिलाफ जागरूक करने के लिए फ्लेक्स बोर्ड लगाने में किया जाएगा

।रजनी मिश्रा।


रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय और विश्वरंग फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में श्रीलंकाई कलाकारों द्वारा नृत्य नाटिका ' रावणेश्वर ' की भव्य प्रस्तुति

 

 * रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल एवं विश्वरंग फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में श्रीलंका के प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा प्रस्तुत भव्य नृत्य नाटिका “रावणेश्वर” की मनमोहक प्रस्तुति संपन्न हुई। 

अभिव्यक्ति, संगीत व नृत्य

इस नाटिका में श्रीलंकाई पारंपरिक श्रीलंकाई वैशभूषा, मुखौटे, नृत्यशैली, संगीत और रंगमंचीय प्रस्तुति का समन्वय देखने को मिला । कलाकारों द्वारा भाव-भंगिमाओं (अभिनय), कथानक-वर्धक संवाद और नृत्य-मंचन के माध्यम से दर्शकों को कथा-भूमि में खींचा जाता है।

मंच-चित्र, प्रकाश-प्रभाव और समूह-नृत्यों के संयोजन से यह प्रस्तुति न केवल दृश्य-रूप से आकर्षक है, बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी गहरी छाप छोड़ती है।

डॉ अमिला दमयंती, विभागाध्यक्ष, नृत्य एवं नाट्य संकाय, इंडियन एंड एशियन डांस विभाग, श्रीलंका ने बताया कि “‘रावणेश्वर’ एक डांस ड्रामा है, जिसे हमने वर्ष 2019 में कुम्भ मेले के लिए तैयार किया था। मैंने अपनी पीएच.डी. भारत और श्रीलंका की रामलीला पर तुलनात्मक अध्ययन विषय पर की है। इसी शोध कार्य के दौरान श्रीलंका के रामायण से संबंधित पात्रों और कथाओं का गहन अध्ययन करने के बाद, मैंने इस डांस ड्रामा की रचना की है।

‘रावणेश्वर’ लगभग 55 मिनट की नृत्य-नाट्य प्रस्तुति है, जिसमें श्रीलंका की पारंपरिक तीन प्रमुख नृत्य शैलियों - कैंडियन डांस, लो कंट्री डांस और सबरगमो डांस का समावेश किया गया है। इन शैलियों की अमुद्राओं, अभिव्यक्तियों और तालों को भारतीय नाट्य शैली के तत्वों के साथ जोड़कर इस अनोखी प्रस्तुति की संरचना की गई ।

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