रंगरेजा

🌹🌹रंगरेजा🌹🌹

 

 

 अमिट प्रेम के रंग से ,  ऐसी पड़ती छाप।

तन-मन जीवन भीगता, हिय डूबता आप।।

 

रंगरेजा ने रंगा, भूल गई संसार।

गिरधर,मोहन मोहना, घर-घर बैठे द्वार।।

 

राधा भूली जा रही, अपना चित्त विचार।

मीरा दुनिया छोड़कर, ढूँढ रही साकार।।

 

गोपी-उद्धव कर रहे, मन ही मन में जाप।

अमिट प्रेम के रंग  से, ऐसी पड़ती छाप।।

 

विष का प्याला मधु बना, बाँवरी हुई प्रीति।

 कृष्णप्रिया के रंग से, बढ़ती राधे रीति।।

 

ब्रज मथुरा के धाम से,चलती जगत सुनीति।

गोकुल गोचर बन गया,  यही है परम प्रतीति।।

 

बरसाने के लट्ठ से, दूर जगत संताप।

अमिट प्रेम के रंग से, ऐसी पड़ती छाप।।

 

प्रभुवर सबके आप हैं, आप करें उपकार।

भक्ति-भाव अरु प्रेम का,  मुरलीधर उपहार।।

 

सभी रंग इस जगत के, तुझसे हैं करतार।

मोह-लोभ का त्याग हो, चरण-शरण दें तार।।

 

हँसते-गाते चल पड़ूँ,  कटे कष्ट अरु पाप।

अमिट प्रेम के रंग  से , ऐसी पड़ती छाप।।

 

अमिता,रवि दूबे

छत्तीसगढ़

 

हमसे करे दिल की बात






 

हमसे करे दिल की बात 

 

प्रश्न--मैं एम.एन.सी. में कार्यरत हूं। मेरे माता-पिता और रिश्तेदार सभी मुझे विवाह करने के लिए कहते रहते हैं । मुझे समझ नहीं आता कि मैं जब अकेलाआनंद से रह रहा हूं तो फिर शादी क्यों? और फिर दिन रात मेरे दोस्त जो अपनी पारिवारिक दास्तान सुनाते हैं उससे तो घबराहट होने लगती है ।आप बताइए क्या करें?(अनुभव जैन इंदौर)

 

उत्तर--विवाह संस्था के संस्थापक हमारे पूर्वजों ने जिस भावना से की है आप उसे समझने की कोशिश करें ।समाज में सुव्यवस्थित, सुशिक्षित, नैतिक जीवन की आधारशिला विवाह ही है।आपने एक पक्ष ही देखा है आपके  मम्मी पापा ने दुनिया देखी  है ।आप अभी युवा हैं इसलिए ऐसा है। आप इसकी उपयोगिता अनुभव नहीं कर पा रहे हैं । आप दूसरों के अनुभवों को सुनकर ही डर गए हैं। प्रौढ़ता और वृद्धावस्था में इस सच को समझेंगे। समाज मेंअविवाहित वृद्धों को कोई सहारा और सम्मान देने वाला नहीं मिलता। यदि आप धर्म में संलग्न होकर दीक्षा लेना चाह रहे हैं तो बात अलग है। वरना कुछ दिनों में आपका अविवाहित रहना आप के लिए अभिशाप हो जाएगा। किस-किस को अपनी मन स्थिति से संतुष्ट करोगे कोई पास बैठ ना पसंद नहीं करेगा और आपके तर्कों को अनुभवहीनता की बकबक कहकर उपेक्षित कर दिया जाएगा उस पीड़ा का तो अभी आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। विदेशी सोच देसी बच्चों पर नहीं चलती ।अतः समय रहते ही संभल जाएं और अपने माता-पिता का कहना माने और प्रभु का धन्यवाद दे कि आपकी कोई चिंता करने वाले हैं और आपके भविष्य को संवारने वाले हैं। विवाह का निर्णय लें और देश और समाज के जिम्मेदार नागरिक बने।।

  

डॉ  . ममता जैन


 

 



 



चिन्तन मंथनमाँ की ममता  






चिन्तन मंथन - माँ की ममता 

 

 बचपन में थामी थी जिसने उंगली ,चलना तुम्हें सिखाया था /उस माँ का   बुढ़ापे में साथ ना छोड़ना / बचपन में जो तुम्हारे बिना कहे ही तुम्हारी भूख समझ जाती थी ,बुढ़ापे में उस माँ  के शब्द लड़खड़ा जाए तो, कुछ समझ में नहीं आता यह शिकायत मत करना / बचपन में तुमने सारी रात मां को सोने नहीं दिया था ,अब बुढ़ापे में रात को मां खांसे तुम्हें पुकारे ,तो शिकायत मत करना / बचपन में कई बार तुम्हारे कारण मां का मंदिर जाना, पूजन करना छूटा था ,कई बार तुम्हारे कारण मां प्रवचन नहीं सुन पाई थी ,अब किसी दिन मां के कारण तुम किसी पार्टी में ना जा पाओ  तो नाराज ना होना / बचपन में तुम्हारे भोजन की हर फरमाइश को जिसने पूरा किया था ,बुढ़ापे में मां यदि कुछ खाने की इच्छा करें तो यह कहकर उसका अपमान मत करना कि बूढ़े हो गए पर लालसा  नहीं जाती / सदा याद रखना त्रिलोकी की यह बात, वृद्धावस्था में कई बार बचपन लौट आता है , अतः माता पिता की सेवा सेवा में इस बात को याद रखना चाहिए मां बाप की सेवा भगवान की सेवा से कम नहीं है /अभी  मेंने मद्रास से नागपुर आते समय ट्रेन में एक युवा मां जिसकी 15 माह  की बेटी थी / बेटी बहुत जिद्दी थी /मां खाने को केला देती  तो सेवफल मांगने लगती /सेव फल बनाती तो अनार मागने लगती /कुल मिलाकर उसकी फरमाईसो कोई अंत  नहीं था /रात में सोते समय तो  हद हो गई जब उस बिटिया ने उस कमरे में चलकर सोने की जिद की जिसमें रोज सोती थी, और जोर जोर से रोने लगी बमुश्किल  उस माँ ने  बिटिया को सुलाया /सुबह उठकर बिटिया ने फिर जिद पकडी /मैंने मां से कहा यह बिटिया थोड़ी पिटाई भी मांगती है/ तब  उस माँ ने जो  कहा वह सुनने समझने जैसा है / मैं अपनी बिटिया में भगवान की लीलाओं को देखती हूं /भगवान जैसा ही प्यार करती हूं /मैंने आज तक अपनी बिटिया को मारा नहीं है /सुनकर मेरी आंखों में आंसू छल्छला आए  धन्य है मां तेरा त्याग तेरा समर्पण तेरी महिमा / मेरा या छोटा सा लेख दुनिया की  हर माँ को समर्पित है जिसने अपने बेटे में अपनी बेटी में भगवान देखा है

 

विधानाचार्य ब्र. त्रिलोक जैन 


 

 



 



शिमला राज्य में होली का त्यौहार





शिमला राज्य में होली का त्यौहार

 

शिमला राज्य में होली का त्यौहार एक खास अंदाज में मनाया जाता है सर्दी के कारण होली सूखे रंग और गुलाल के अलावा बर्फ  से खेली जाती है ऐसा इसलिएकि  इस समय तक हिमाचल घाटी बर्फ से अधिकतर भरी  रहती है इस दौरान यहां पर्यटकों की संख्या भी अच्छी-खासी रहती है जिस कारण यहाँ बर्फ से होली खेलने की परंपरा शुरू हो गई है

प्रदेश के कुल्लू जिले में इस पर्व की शुरुआत वसंत पंचमी के दिन से ही हो जाती है इस दिन भगवान रघुनाथ जी की पालकी को उसी अंदाज़ में बाहर निकाला जाता है जैसा दशहरे के अवसर पर होता है इस दिन भगवान रघुनाथ जी का विशेष श्रृंगार किया जाता है शाही जलेब निकाली जाती है रघुनाथ जी के साथ हनुमान जी की प्रतिमा को होली का टीका लगाया जाता है लोग जलेब में शामिल होकर एक दूसरे पर रंग  बरसाते हैं और नाचते गाते वसंतोत्सव के साथ होली की शुरू की जाती है इसलिए कहीं लोग हनुमान जी का  वेश धारण करते हैं त्योहार होली के दिन तक चलता है  बाकी होली की सारी रस्में इस दिन के बाद रघुनाथ जी के मंदिर में ही निभाई जाती हैं यह अपने आप में एक अनोखी और विशिष्ट परंपरा है। 

 

 



 



चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज पर तिर्यंचोंकृत उपसर्गों के प्रसंग





चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज की दीक्षा शताब्दी वर्ष पर विशेष 

 

चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज पर तिर्यंचोंकृत उपसर्गों के प्रसंग

 

चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी (दक्षिण) पर बहुत उपसर्ग हुए और उन्होंने बहुत ही समता भाव से उन्हें सहा। उनकी सौम्य मुद्रा व उनके समभाव को देखकर उपद्रवी मनुष्य क्या तिर्यंच भी उन्हें अपना हितकारी समझकर अपना बैर छोड़ देते थे। यहां हम उन पर किये गये तिर्यंचों द्वारा उपसर्ग और उनका प्रभाव पर केन्द्रित होंगे।

 चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी (दक्षिण) पर मकोडे़ ने, चीटियों ने उपसर्ग किये, कम से कम चार बार सेर उनके सम्मुख रहा। सर्प तो 6-7 बार उनके सम्मुख हुआ, उनके शरीर पर भी लिपटा रहा, किन्तु आप अपने ध्यान- सामायिक में तल्लीन रहे।

असंख्य चीटियों द्वारा उपसर्ग- 

सुमेरचंद दिवाकर जी ने पूछा- महाराज! ऐसा भीषण उपसर्ग और भी तो आया होगा। प्रश्न के उत्तर में महाराज बोले- एक बार हम जंगल में मंदिर के भीतर एकांत स्थान में ध्यान करने बैठे। वहां पुजारी दीपक जलाने आया, दीपक में तेल डालते समय कुछ तेल भूमि पर बह गया। वर्षा की ऋतु थी। दीपक जलाने के बाद पुजारी अपने स्थान पर वापस चला गया।

 महाराज ने कहा- ‘उस समय हम निद्राविजय तप का पालन करते थे। इससे हमने उस रात्रि को जागृत रहकर धर्मध्यान में काल व्यतीत करने का नियम कर लिया था। पुजारी के जाने के कुछ काल पश्चात् चींटियों ने आना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे असंख्य चींटियों का समुदाय इकट्ठा हो गया और वे हमारे शरीर पर आकर फिरने लगीं। कुछ काल के अनंतर उन्होंने हमारे शरीर के अधो भाग नितंब आदि को काटना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जब शरीर को खाना प्रारंभ किया तो अधो भाग से खून बहने लगा। उस समय हम सिद्ध भगवान का ध्यान कर रहे थे। रात्रिभर यही अवस्था रही। चींटियां नोचकर शरीर को खाती जा रही थीं।’

कभी शरीर में एकाध चींटी चिपक जाती है, तब उसके काटने से जो पीड़ा होती है उससे सारी देह व्यथित हो जाती है। जब शरीर में असंख्य चीटियां चिपकीं हों और देह के अत्यंत कोमल अंग गुप्तांग को सारी रात लगातार खाती रहें तथा नरदेह-स्थित आत्माराम बिना प्रतिकार किए एक दो घंटा नहीं, इस उपसर्ग को लगातार सारी रात ऐसा अलिप्त हो सहता रहे, देखता रहे, ऐसा एक महान साधक ही कर सकता है। 

मकोड़े का उपसर्ग-

एक बार कोन्नूर के जंगल में महाराज बाहर बैठकर धूप में सामायिक कर रहे थे। इतने में एक बड़ा कीड़ा मकोड़ा उनके पास आया और उसने उनके पुरुष-चिह्न से चिपट कर वहां का रक्त चूसना शुरू कर दिया। रक्त बहता जाता था किंतु महाराज डेढ़ घंटे पर्यंत अविचलित ध्यान करते रहे।

नेमिसागर जी महाराज ने चारित्रचक्रवती ग्रंथ लेखक को बताया, कि उस समय वे गृहस्थ थे, और चिंतित थे, कि इस समय क्या किया जाए?यदि कीड़े को पकड़कर अलग करते तो महाराज के ध्यान में विघ्न आएगा। अतः वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे थे। नेमिसागर जी ने यह भी कहा- ‘‘और भी छोटे-छोटे मकोड़े उस समय आते थे, उनको तो हम अलग कर देते थे किंतु बड़े मकोड़े की बाधा को हम दूर न कर सके। पुरुष चिह्न से रक्त बहता था, किंतु महाराज अपने अखंड ध्यान में निमग्न थे।

शेर का आगमन-

चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के सम्मुख 5-6 बार शेर आया किन्तु आप विना बिचलित हुए ध्यानस्थ रहे।

श्री दिवाकर जी द्वारा आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज से पूछा गया कि आपके पास भी कभी कोई शेर आया तब उन्होंने कहा-

1. ‘हम मुक्तागिरी के पर्वत पर रहते थे, वहां शेर आया करता था और प्रतिदिन पास में बहने वाले झरने का पानी पीकर चला जाता था। 

2. श्रवणबेलगोला की यात्रा में भी शेर मिला था। 

3. सोनागिरि क्षेत्र पर भी वह आया था। इस तरह शेर आदि बहुत जगह आते रहे हैं।’ वे कहते हैं- इसमें महत्व की कौन सी बात है।

4. सतपुड़ा के निर्जन वन में जब शेर आया-

महाराज ने मुक्तागिरी से बड़वानी जाते हुए सतपुड़ा के निर्जन वन की एक घटना बतायी कि- ‘‘विहार करते समय उस निर्जन वन में संध्या हो गई। हम ध्यान करने को बैठ गए। साथ के श्रावक वहां डेरा लगाकर ठहर गए। उस समय जब शेर आया, तब श्रावक घबरा गए। एक शेर तो हमारी कुटी के भीतर घुस गया था। कुछ काल के पश्चात् वह शेर बिना हानि पहुंचाए जंगल में चला गया’

5. द्रोणगिरि में शेर बहुत काल तक महाराज के पास बैठना- 

संघ वैशाख सुदी एकम् संवत् 1986 को द्रोणागिरी क्षेत्र तक पहुंचा यहां। यहां हजारों भाइयों ने दूर दूर से आकर गुरुदेव के दर्शन का लाभ लिया। महाराज पर्वत पर जाकर जिनालय में ध्यान करते थे। उनका रात्रि का निवास पर्वत पर होता था, प्रभात होते ही लगभग आठ बजे महाराज पर्वत से उतर कर नीचे आ जाते थे। एक दिन की बात है कि महाराज समय पर ना आए, सोचा गया कि संभवतः वे ध्यान में मग्न होंगे। दर्शनार्थियों की लालसा प्रबल हो चली। साढ़े आठ, नौ, साढ़े नौ बज गये और भी समय व्यतीत हो रहा था। जब विलंब हो गया, तब कुछ लोग पहाड़ पर गए। उसी समय महाराज वहां से नीचे उतर रहे थे। लोगों ने महाराज का जयघोष किया। चरणों को प्रणाम किया और पूछा- स्वामी ! आज तो बड़ा विलंब हो गया, क्या बात हो गई?’ वे चुप रहे कुछ उत्तर नहीं दिया। लोगों ने पुनः प्रार्थना की। एक बोला- महाराज, यहां शेर आ जाया करता है। कहीं शेर तो नहीं आ गया था?अंत में स्वामी जी का मौन खुल ही पड़ा और उन्होंने बताया कि ‘‘संध्या से ही एक शेर पास में आ गया। वह रातभर बैठा रहा। अभी थोड़ी देर हुई वह हमारे पास से उठकर चला गया।’’ प्रतीत होता है वनपति यतिपति के दर्शनार्थ आया था। उस घटना के विषय में विचार करते हुए हमारे तो रोंगटे खड़े हो जाते।

1. कोन्नूर गुफा में सर्प का उपद्रव- 

 आचार्यश्री ने कोन्नूर की पहाड़ी की एक अपरिचित गुफा में जाकर आनंद से ध्यान करने का विचार किया। प्रशांत गुफा में मध्याह्न की सामायिक के लिए गए और वहां सामायिक करने लगे। गुफा के पास में झाड़ी थी, उसमें सर्पादिक जीवों का भी निवास था। गुरुभक्त मंडली ने देखा कि महाराज ध्यान के लिए दूसरे स्थान पर गए हैं। अब उन्होंने उनको ढूंढ़ना प्रारंभ किया और कुछ समय के पश्चात् उस गुफा के समीप गए जिसमें महाराज सामायिक में तल्लीन थे। उस समय एक सर्प पहाड़ी में से निकला और गुफा के भीतर जाते हुए लोगों को दृष्टिगोचर हुआ। कुछ समय पश्चात् वह भीतर फिरकर बाहर निकलना ही चाहता था कि एक श्रावक ने गुफा के द्वार पर एक नारियल चढ़ा दिया। उसकी आहट से पुनः सर्प भीतर घुस गया। वहां पर महाराज के पास गया। उनके शरीर पर चढ़कर उसने उनके ध्यान में विघ्न डालने का प्रयत्न किया किंतु उसका उन पर कोई भी असर नहीं हुआ। वे भेद-विज्ञान की ज्योति द्वारा शरीर और आत्मा को भिन्न- भिन्न विचारते हुए अपने को चैतन्य का पंुज सोचते थे, अतः ‘शरीर पर सर्प आया है, वह यदि दंस कर देगा, तो मेरे प्राण ना रहेंगे’, यह बात उन्हें भयविह्वल ना बना सकी। वे वज्र की मूर्ति की तरह स्थिर रहे आए। शरीर में अचलता थी, भावों में मेरु की भांति स्थिरता थी। आत्मचिंतन से प्राप्त आनंद में अपकर्ष के स्थान में उत्कर्ष ही हो रहा था। वे सर्प, सिंह, व्याघ्र, अग्नि आदि की बाधा को अत्यंत तुच्छ जानते थे। उनकी दृष्टि मोहनीय कर्म, अंतराय कर्म, वेदनीय, ज्ञानावरणादि  कर्मों के विनाश  की ओर थीं। सर्प के उपद्रव से अविचलित होना उनके उत्कृष्ट आत्मविकास तथा अंतःनिमग्नता के प्रमाण हैं। 

2. कोन्नूर में उड़ने वाले सर्प के द्वारा उपद्रव में भी स्थिरता-

एक दिन तारीख 23. 10. 1951 को पं. सुमेरचंद दिवाकर जी महाराज के साथ रहने वाले महान तपस्वी निग्र्रंथ मुनि 108 श्री नेमिसागर जी के पास बारामती बस्त्ती में पहुंचे और महाराज शांतिसागर जी के विषय में कुछ प्रश्न पूछने लगे। उनसे ज्ञात हुआ कि वे लगभग 28 वर्षों से पूज्यश्री के आश्रय में रहे हैं। 

कोन्नूर में सर्पकृत परीषह के विषय में हमने पूछा, तब वे बोले- ‘‘कोन्नूर में वैसे तो 700 से अधिक गुफायें हैं किंतु दो गुफा मुख्य हैं। महाराज प्रत्येक अष्टमी-चैदस को गुफा में जाकर ध्यान करते थे। उस दिन उनका मौन रहता था। एक दिन की बात है। वे गुफा में घुसे उनके पीछे ही एक सर्प भी गुफा में चला गया। बड़ा चंचल था। वह सर्प उड़ान मारने वाला था। अनेक लोगों ने यह घटना देखी थी। जब लोग महाराज के समीप पहुंचते थे, तो वह सर्प उनकी जंघाओं के बीच में छुप जाता था। लोगों के दूर होते ही वह इघर-उघर घूमकर उपद्रव करता था।’’ 

‘यह मध्याह्न की बात थी, वह सर्प तीन घंटे तक वहां रहा, पश्चात् चला गया। लोग यदि उसे पकड़ते, तो इस बात का भय था, कि कहीं वह क्रुद्ध होकर महाराज को काट न ले। इससे वे सब किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते थे।’

3. शेडवाल में सर्प बाधा-

नेमिसागर महाराज ने सर्पसंबंधी एक घटना और बताई थी। उस समय शांतिसागर महाराज शेडवाल में थे। वे पट्टे पर बैठे थे। पट्टे के नीचे 5 फुट लंबा सर्प बैठा था। वह सर्प उस स्थान पर रात भर रहा। दिन निकलने पर उस जगह झाड़ने वाले जैनी से महाराज ने कहा ‘भीतर संभल कर जाना।’ जब वह भाई भीतर गया तो उसकी दृष्टि सर्पराज पर पड़ी। उसने बाहर आकर दूसरे लोगों से सर्प की चर्चा बताई। 

4. सर्पराज का आचार्यश्री के मुख के समक्ष फन करके खड़ा रहना-

‘‘आचार्य महाराज एक दिन जंगल में स्थित एक गुफा में ध्यान कर रहे थे इतने में एक सात आठ हाथ लंबा और खूब मोटा लट्ठ सरीखा सर्प आया उसके शरीर पर बाल थे। वह आया और उनके मुंह के आगे अपना बड़ा फन फैलाकर खड़ा हो गया। उसके नेत्र लाल रंग के थे वह उन पर दृष्टि डालता था और अपनी जीभ निकालकर लप-लप करता था। उसके मुख से अग्नि के कण निकलते थे। वह बड़ी देर तक हमारे सिर और नेत्रों के आगे खड़ा होकर आचार्यश्री की ओर देखता था। वे भी उसको देखते थे।’’ यह घटना आचार्यश्री ने स्वयं सुनाई थी।

5. कोगनोली में विशाल विषधर सर्प उनके शरीर से लिपट गया-

महाराज कोगनोली में क्षुल्लक की अवस्था में आए थे। तब वहां सर्प कृत उपद्रव हुआ था। वहां के प्राचीन मंदिर में महाराज ध्यान के हेतु बैठे थे। ध्यान आरंभ करने के पूर्व कुछ जिन नाम स्मरण पाठ कर रहे थे कि एक विशाल विषधर वहां घुसा। कुछ समय मंदिर में यहां-वहां घूम कर इनके शरीर से लिपट गया। मानों वे उसके बड़े प्रेमी मित्र ही हों। बात यह है जब महाराज सामायिक पाठ पढ़ते हैं तब कहते हैं मेरा सर्व जीवों में समता भाव है ‘सामता मे सर्वभूतेषु’ मेरा किसी के भी साथ वैरभाव नहीं है मेरा सर्व जीवों के प्रति मैत्री भाव है ‘मित्ती मे सव्वभूदेसु।’ 

मालूम होता है सर्पराज इसीलिए इनके पास आया था कि उनके वचन सत्य हैं या नहीं देखें। ये समता भाव रखते हैं या नहीं। ये मेरे प्रति मैत्री रखते हैं या नहीं?सर्प ने वाणी के अनुरूप इनकी प्रवृत्ति पाई तो वह प्रेम के साथ शरीर में लिपट गया, मानो इनके प्रति वह स्नेह कर रहा हो। महाराज ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के सिद्धांत को स्वीकार कर चुके थे। इससे ही वह सर्पराज आत्मीय भाव से कमर से चढ़कर गले में लिपटा हुआ था इतने में मंदिर में अखंड प्रकाश हेतु नंदादीप-अखंड दीपक सुधारने को वहां का उपाध्याय आया। महाराज के ऊपर सर्प लिपटा देखकर वह जान छोड़कर भागा। बहुत लोग वहां आ गए किंतु क्या किया जाए?यह समझ में नहीं आता था। यदि गड़बड़ी की अथवा सर्प को दूर करने में बल प्रयोग किया तो वह काट लेगा, तब क्या भयंकर स्थिति हो जाएगी। अतः सब के सब लोग घबरा रहे थे। बहुत समय के पश्चात् सर्प शरीर से उतरा और धीरे-धीरे मानो प्रसन्नतापूर्वक बाहर चला गया, कारण उसे सच्चे साधक महात्मा का परीक्षण करने का अवसर मिला था और परीक्षण में शुद्ध स्वर्ण निकले।

अमृत और विष की भेंट-

दिवाकर जी ने पूछा- महाराज ऐसी स्थिति में आपको घबराहट नहीं हुई। महाराज ने कहा- ‘हमें कभी भय होता ही नहीं’ हम उसको देखते रहे, वह हमैं देखता रहा। एक दूसरे को देखते रहे। सर्पराज शांति के सागर को देखता था और शांति के सागर उस यमराज को भी अपनी अहिंसापूर्ण दृष्टि से देखते थे। यह अमृत और विष की भेंट थी।

दिवाकर जी ने पूछा महाराज उस समय आप क्या सोचते थे महाराज ने कहा हमने यही सोचा था यदि हमने जीव का कुछ बिगाड़ पूर्व में किया होगा तो यह हमें बाधा पहुंचाएगा, नहीं तो वह स्वयं चुपचाप चला जाएगा। महाराज का विचार यथार्थ निकला। कुछ काल के बाद सर्पराज महाराज को साम्य और धैर्य की मूर्ति तथा शांति का सिंन्धु देखकर अपना फण नीचा करके, मानों  महामुनि के चरणों में प्रणाम करता हुआ, धीरे-धीरे गुफा के बाहर जाकर न जाने कहां चला गया।

जब उनसे पूछा गया कि वह तो साक्षात् यमराज की मूर्ति है, उसके आने पर घबराहट होना तो साधारण सी बात है। आचार्यश्री ने कहा- ‘डर किस बात का किया जाए। जीवन भर हमें कभी किसी वस्तु का डर नहीं लगा। जब तक कोई पूर्व का बैर न हो अथवा उस जानवर को बाधा ना हो तब तक वह नहीं सताता है।

उपसर्गों की प्रतिक्रिया स्वरूप आचार्य का कहना था कि ‘विपत्ति के समय हमें कभी भी भय-घबराहट नहीं हुई। सर्प आया, शरीर पर लिपट कर चला गया, इसमें महत्त्व की क्या बात है। उनसे पूछा गया कि उस मृत्यु के साक्षात् प्रतिनिघि को देखकर आपको भय न लगा यह आश्चर्य की बात है। महाराज- बोले हमें कभी भी भय नहीं लगता। यदि सर्प का हमारा पूर्व का बैर होगा तो वह बाधा करेगा अन्यथा नहीं। उसके साथ हमने कुछ बिगाड़ नहीं किया तो उसने हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं किया। उनसे पूछा गया कि उस समय आप क्या करते थे जब सर्प आपके शरीर पर लिपट गया था?महाराज बोले- उस समय हम भगवान का ध्यान करते थे। यह पूछने पर कि जब आपके शरीर पर चढ़ा तब उसके शरीर का स्पर्श होने से आपके शरीर को विशेष प्रकार का स्पर्श जन्य अनुभव होता था या नहीं?महाराज ने कहा हम ध्यान में थे, हमें बाहरी बातों का भान नहीं था।

सर्प उनके शरीर पर लिपटने की घटना सुनकर तो श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा था। सर्प की इन्हीं घटनाओं के कारण आपके सर्प लिपटे हुए चित्र बने और वे बहुत प्रसिद्ध हुए। चारित्रचक्रवती आचार्य श्री शांतिसागर जी की जो प्रतिक्रितियां स्थापित हुई उनमें बहुत सी सर्पयुक्त भी हैं।

इस तरह आचार्यश्री के साक्षत् संपर्क में अनेक हिंसक तिर्यंच आये, कई ने उन पर उपसर्ग भी किये, किन्तु वे कभी विचलित नहीं हुए, सदा समता भाव धारण किया।

 

डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर


 

 




 

ग़ज़ल





ग़ज़ल

 

जो लक्ष्य है मिलेगा,  भरोसा ना छोड़िए

घर भी हो तो राह में , चलना ना छोड़िए

 

उम्मीद जिसका नाम है, जीवन के साथ हैं

नाकामियों के बाद ही, आशा ना छोड़िए

 

कुछ घात करने वाले भी हैं, दोस्तों के बीच

इन सिरफरों  के वास्ते ,दुनिया ना छोड़िए

 

चाहत के बावजूद वह हासिल नहीं , ना हो

उसका ख्याल , उसकी तमन्ना ना छोड़िए

 

पहचान है जो फूल की ,अपनी महक से है

कांटो  पे   फूल  बनके  महकना ना छोड़िए 

 

 

 डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल 

 



 






शुभ प्रभात








































"प्रीत  एक  वरदान प्रिय,
जिसे मिले वो धन्य।
मिल जाए मनमीत जब,
और  न  भाए अन्य।" 

 

 




 

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"प्रीत  एक  वरदान प्रिय,
जिसे मिले वो धन्य।
मिल जाए मनमीत जब,
और  न  भाए अन्य।" 

 

 




 

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"प्रीत  एक  वरदान प्रिय,
जिसे मिले वो धन्य।
मिल जाए मनमीत जब,
और  न  भाए अन्य।" 

 

 




 

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"प्रीत  एक  वरदान प्रिय,
जिसे मिले वो धन्य।
मिल जाए मनमीत जब,
और  न  भाए अन्य।" 

 

 




 

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"प्रीत  एक  वरदान प्रिय,
जिसे मिले वो धन्य।
मिल जाए मनमीत जब,
और  न  भाए अन्य।" 

 

 




 

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"प्रीत  एक  वरदान प्रिय,
जिसे मिले वो धन्य।
मिल जाए मनमीत जब,
और  न  भाए अन्य।" डॉ 'अरुण '

 

 











 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 















 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 


जापान के करीब 1200 जापानियों ने मांसाहार छोड़कर जैन धर्म अंगीकार किया है।

जापान के करीब 1200 जापानियों ने मांसाहार छोड़कर जैन धर्म अंगीकार किया है।साहार छोड़कर जैन धर्म अंगीकार किया है।

 हमें मंदिर और तीर्थ स्थानों पर मोबाइल लेकर क्यों नहीं जाना चाहिए






 हमें मंदिर और तीर्थ स्थानों पर मोबाइल लेकर क्यों नहीं जाना चाहिए

 

जो बार-बार मन को विकल्पों से करे घायल  , खत्म कर दे चेहरे की स्माइल उसे कहते हैं मोबाइल मोबाइल चलता फिरता संसार है इसको साथ रखकर घर परिवार व्यापार तो चलाया जा सकता है लेकिन धर्म कार्य में यह सबसे बड़ा बाधक होता है

यदि हम मंदिरों में मोबाइल लेकर जाते हैं तो माला पूजन सामायिक स्वाध्याय करते समय रिंग बजे जाती है फिर इसके बाद मानसिक उपयोग मोबाइल की ओर जाकर अनेक प्रकार के विचारों में खो जाता है इस प्रकार  अन्तराय कर्म  का  बंध हो जाता है इसके साथ-साथ मोबाइल की रिंगटोन से पूजा पाठ करने वाले का उपयोग भी प्रभावित हो जाता है जिससे ज्ञानावरणी दर्शनावर्णि   कर्म का तीव्र बन्ध  होता है इसके अलावा हम यदि तीर्थयात्रा का हमारे पूर्व पुण्य के प्रभाव से सिर्फ वंदना करने का अवसर मिलता है इससे मोबाइल हमारी एकाग्रता भंग करता है उस समय हमारा सारा ध्यान मोबाइल के सारे मैसेज मेल आदि पर चला जाता है इस दौरान हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता यात्रा का शुभारंभ मोबाइल लेकर करते हैं तो फिर कभी परिवार से अच्छे समाचार आते हैं तो कभी दुख भरे इसके अलावा कभी व्यापारिक हानि का संदेश मिल जाता है तो हमारा सारा उत्साह और प्रसन्नता न मंदिर जाकर घर जाने की  हो जाती है , हमारी यात्रा बीच में रुक जाती है तो इस मोबाइल  के  कारण

मोबाइल के सहारे हम कर्म  बांध लेते  है हम मोबाईल के बिना  धर्म ध्यान करते  है  तो निश्चित ही हमारी यात्रा सफल होगी


 





 धोती दुपट्टे में ही भगवान का अभिषेक पूजन क्यों किया जाता है

 धोती दुपट्टे में ही भगवान का अभिषेक पूजन क्यों किया जाता है ?

 

संसार में जीवन यापन के लिए और अपनी अलग पहचान बनाने के लिए ड्रेस एक माध्यम होती है सफेद कोट से डॉक्टर की पहचान   काले कोट से वकील की पहचान , भगवा से ब्राह्मण की पहचान खाकी वस्त्र से पुलिस की पहचान , सफेद कुर्ता पजामा होती है , शादी के समय शेरवानी सूट पेंट और लड़की को लाल साड़ी पहनाई जाती है तभी विवाह  में शहनाई बजा करती है इसी तरह धार्मिक कार्यों में पूजा अभिषेक करते समय भगवान से अपनी भावना जोड़ने के लिए धोती दुपट्टा का उपयोग करना चाहिए

उमा स्वामीजी  ने श्रावकाचार  में लिखा है....... 

खंडित जीर्ण शीर्ण छिन्न-भिन्न मलिन बहुत पुराने वस्त्रों को पहनकर जो दान पूजा जाप हवन और स्वाध्याय करता है उसका सर्व कार्य निष्फल हो जाता है

पूजन करते समय सर्व कार्य सिद्धि हेतु वस्त्र के रंग का प्रभाव बताया गया है श्वेत वस्त्र पहनकर पूजन करने से मानसिक शांति की अनुभूति होती है शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए श्याम वर्ण, कल्याण के लिए लाल वस्त्र पहनकर, राजा से मिलने के लिए लाल वस्त्र पहनकर और ध्यान में लीन होने के लिए पीले वस्त्र पहनकर भगवान का पूजन करना चाहिए , इसीलिए धर्म को तन मन में धारण करने के लिए धोती दुपट्टा ही एक माध्यम है इसके बिना भगवान से जुड़ नहीं पाएंगे

हमारा भारत


शाल श्रीफल के स्थान पर विद्वानों को भेंट किये हेलमेट


 शाॅल - श्रीफल के स्थान पर विद्वानों को भेंट किये हेलमेट

 

गिरनार। पिछले दिनों विश्वशांति निर्मल ध्यान केन्द्र, गिरनार में गिरनारगौरव आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज ससंघ के पावन सान्निध्य में उनके आशीर्वाद एवं प्रेरणा से द्विदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें देश के विभिन्न प्रान्तों से आगत 55 विद्वानों को उनके सम्मान में शाॅल-श्रीफल के स्थान पर हैलमेट भेंट किये गये।  संगोष्ठी के संयोजक  बताया कि केन्द्र सरकार के ‘‘राष्ट्रीय यातायात सुरक्षा हेलमेट लगाओ मिशन’’ को पूर्ण सफल बनाने की दृष्टि से उन्होंने ही यह सलाह दी थी। परिवार में हैलमैट रहता है तो उसका उपयोग भी सदस्य कर लेते हैं।  ट्रस्ट के ट्रस्टी ज्ञानचंद जी मुंबई, और शांतिसागर द्वय की प्रतिमा प्रतिष्ठापना कर्ता अभय जैन जयपुर ने सभी विद्वानों को तिलक-माला पहना कर हेलमेट भेंट किये। 

 

 


 

 

70 खम्बो वाला मंदिर






ये अनन्तपुर आन्ध्रप्रदेश का मंदिर है इसमे 70 खंभे हैं सभी खंभे धरती को स्पर्श नही करते, सभी खम्भो के नीचे से इस तरह कपड़े निकल जाते है फिर भी मन्दिर शान से खड़ा है वैज्ञानिक भी इसे समझ नही पाये ।

*ये है हमारी प्राचीन वास्तुकला और विज्ञान ।*


 

 



 



70 खम्बो वाला मंदिर






ये अनन्तपुर आन्ध्रप्रदेश का मंदिर है इसमे 70 खंभे हैं सभी खंभे धरती को स्पर्श नही करते, सभी खम्भो के नीचे से इस तरह कपड़े निकल जाते है फिर भी मन्दिर शान से खड़ा है वैज्ञानिक भी इसे समझ नही पाये ।

*ये है हमारी प्राचीन वास्तुकला और विज्ञान ।*


 

 



 



सुबह का सूरज* 








































सुबह का सूरज* 

   

सुबह का सूरज 

मेरे रोशनदान से झांकता है

छुप छुप कर जब भी देखता है

मुझसे मिलने की चाह लिए

मुझे पता लग जाता है

यह मेरे मायकेमेरे घर से मिलकर आया है 

यही एक तो है

जिससे मैं पूछ लेती हूं सबके हालचाल

उठ जाती हूं सुबह 

सूरज आएगा

आएगी मां की आवाज 

नहा धो लो भगवान की पूजा करो

नाश्ता तैयार करती हूं

मैं आवाज में खोती हूं 

जब तक सूरज को देखती  हूं

आ जाती है दूसरी आवाज 

नाश्ता तैयार नहीं हुआ क्या ?

बाद में देना जल

पूजना बाद में भगवान को

अधरों पर जम जाता है

 तभी एक सवाल

 सूरज तुम ही बताओ 

यह क्या हो गया ?

सारा माहौल कैसे बदल गया?

 हम सबके बीच से

 भगवान कहां 

और क्यों चला गया?

 

 

डॉ ममता जैन,पुणे


 

 



 



 













 










 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



सम्पादक की कलम से

सामजिक सौहार्द सिखाते हैं पर्व 






पर्व हमें सामाजिक सौहार्द सिखाते हैं सामाजिक सौहार्द वह अमृत है जिस पर प्रसन्नता एवं आत्मीयता  के पुष्प खिलते हैं, संस्कारों का बीजारोपण होता है, समाज में स्नेह सद्भाव और आत्मीयता की शीतल मलयानिल  बहती है। 

समाज शास्त्रियों ने, संतों ने, मानव वैज्ञानिकों ने भी सामाजिक विभिन्नताओं में एकता  के रूप में ऐसी परंपरा की प्रतिष्ठापना की है जिससे परिवार और समाज में समरसता बहती रहे सभी में सौहार्द भाईचारा बना रहे

होली के साथ भारतीय संस्कृति में अनेक कथाएं जुड़ी हैं होलिका दहन भी इस पर्व की एक परंपरा है जो सब बुराइयों को भस्म करने का संकेत देती है मैं समझती हूं अग्नि ही वह शुद्ध ज्वाला है जिसमें वह सामर्थ्य है और प्रत्येक वस्तु को भस्मी भूत करके भी निर्मल रहने देने का सामर्थ्य है इसमें प्रतीक है उपदेश है और आदेश है पर्व के माध्यम से रंगों के माध्यम से वातावरण को रंगीन बनाना आपसी  कलुषता  और वैमनस्यता दूर करने  तथा छोटे बड़े सब के बीच की दूरियों को समाप्त करने का

होली का उद्देश्य है  दुर्व्यवहार का दहन  और सद व्यवहारों का उद्दीपन  होली प्रेम की स्थापना का मूल मंत्र देती है आत्मीयता का विस्तार करती है तथा संवेदना का जयघोष करती है इस पर्व में पीली पीली सरसों ही नहीं लहराती अपितु परिपक्वकता और मैत्री का भी अंकुरण एवं विकास भी होता है यह हमारी सांस्कृतिक परंपरा है और उस के प्रति सम्मान भी जाग्रत करती है.

प्रेम का आदान-प्रदान  सामाजिकता की आधारशिला है हमें अपने पर्वों के हार्द  को समझना चाहिए इनके रूप स्वरूप को विकृति से बचाकर रखना चाहिए तभी हमारी संस्कृति सुरक्षित रहेगी और पर्वों का उद्देश्य भी

इस पर्व पर कृत्रिम रंगों का उपयोग नशा सेवन अथवा अपने अंतरंग के क्रोध द्वेष को निकालने हेतु अनुचित साधनों का उपयोग उचित नहीं है अपितु मिलन और अपनत्व की भावना से ही  'भूल जाओ होली (पवित्र )बन जाओ' होली में  अशुभ  का निवारण शुभ का प्रवेश मर्यादित व्यवहार पवित्र अंतरण यह होली का उद्देश्य है वैमनस्यता की विषैली फसल अंतरंग के सद्गुण के कोमल पौधे को समूल नष्ट कर देती है

आइए नव वर्ष के पश्चात बसंत और अब होली पर ह्रदय में उमंग और तरंग जागृत करें होली पर संगीत नृत्य यूं ही नहीं होते हम तनावग्रस्त ना हो पूर्वाग्रह से ग्रसित ना हो

इस पर हम भी समाज परिवार और राष्ट्र में प्रेम की धरा प्रवाहित करें अपने हृदय को व्यापकता और सद्गुणों के अबीर गुलाल से रंग ले और स्नेहिल भाव की पिचकारी से वसुधा को भिगो दें यह धरा हमारी है हमें इसे अपने विचारों और भावों के प्रदूषण से भी मुक्त रखना होगा श्रीदेशना का अबीर गुलाल आप सबके लिए

डॉ0  नीलम जैन

 

 



 



गिरनार जी में विद्वत संगोष्ठी संपन्न

विश्वशांति निर्मल ध्यान केन्द्र, 

गिरनार तलैटी, भवनाथ, जूनागढ़ (गुज.)

चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी (दक्षिण) एवं प्रशममूर्ति आचार्य श्री शांतिसागर जी (छाणी) की मूर्ति प्रतिष्ठापना समारोह के अवसर पर 

राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी दिनांक 15 एवं 16 फरवरी 2020 का भव्य आयोजन हुआ.जिसमे लगभग 50विद्वानों ने सहभागिता की गिरनार क्षेत्र की महत्ता एवं आचार्य श्री निर्मल सागर जी के क्षेत्र सरक्षण मे योगदान पर आलेख वाचन हुए

समिति की ओर से सभी विद्वानों का भव्य स्वागत किया गया

डा. ममता जैन

*केंद्रीय जेल सागर में हो रही सिद्धों की आराधना*  








































 

*केंद्रीय जेल सागर में हुई  सिद्धों की आराधना* 

 

_⛳ *भारतवर्ष* इतिहास में पहली बार *बंदीग्रह में प्रभुवंदना* का यह महामहोत्सव करुणा के अवतार पूज्यपाद गुरु *आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज* के परम आशीर्वाद से संपन्न हो रहा है।

 

 ब्र. अरुण भैया के नेतृत्व में समाज जन श्रीजी को *केन्द्रीय सागर जेल* में विधान पांडाल में लेकर गए और समवशरण में उच्च स्थान दिया तदुपरांत विधान की विधिवत क्रियाएं संपन्न हुईं।

 

आज प्रातः कालीन बेला ऐसा ही दृश्य सामने आया जब *जैन बंदीजन* को श्री जी का अभिषेक करने के अवसर प्राप्त हुआ तो *जलधारा करते करते उन कैदियों की आँखों से निकली अश्रुधारा* 

 

👉🏻पिछले कई वर्षों से *जेल में हथकरघा* में कार्यरत बंदीजन को उनके पैसे सीधे उनके खाते में प्राप्त होते हैं।

 

👉🏻 *समस्त कैदियों ने विधान से पूर्व अपने हाथों से विधान की सामग्री तैयार की और हमेशा शाकाहारी बनने का नियम लिया*

 

_⛳अतिथि सम्मान एवं हथकरघा के लिए  

*ब्र. रेखा दीदी* ने कुछ पंक्तियाँ उद्धरित की 👇🏻 

*“जो ना अब तक किया*, 

*कर दिखायेंगे हम।*, 

*गैरों को गले से लगायेंगे हम*

*अपने हिंदुस्तान को*

*प्रभु की कसम..*

*फिरसे सोने की चिड़ियाँ बनायेंगे हम।*

 

*✍पुष्पेन्द्र जैन नैनधरा सागर*

 

🐚🐚 🐚 *पुण्योदय विद्यासंघ*🐚🐚🐚


 

 



 



 















ReplyForward












 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 


मीडियाकर्मियों का कवि सम्मेलन-मुशायरा सम्पन्न, पत्रकारों को किया सम्मानित*






मीडियाकर्मियों का कवि सम्मेलन-मुशायरा सम्पन्न, पत्रकारों को किया सम्मानित*

 

_हर बार महत्वपूर्ण होते है अखबार वाले-सत्तन_

 

इंदौर। स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा कवि एवं शायर मीडियाकर्मियों का कवि सम्मेलन एवं मुशायरा 'हम भी है कमाल के' का आयोजन रविवार को साँझी मुक्ताकाश, गाँधी हॉल में किया गया। आयोजन के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण सत्तन, विशिष्ठ अतिथि ग़ज़लकार अजीज़ अंसारी व इंदौर प्रेस क्लब के महासचिव नवनीत शुक्ला रहें।

शारदे वंदना व दीप प्रज्वलन के साथ आयोजन शुरू हुआ, अतिथियों का स्वागत प्रवीण खारीवाल, राकेश द्विवेदी, आकाश चौकसे द्वारा किया गया। आयोज में लगभग 25 से अधिक पत्रकारों ने अपनी रचनाएँ पढ़ी जिसमें सूर्यकांत नागर, डॉ हरेराम वाजपेयी, कीर्ति राणा, पंकज दीक्षित, डॉ श्याम सुंदर पलोड़, सत्येंद्र वर्मा, सुरेश उपाध्याय, आर डी माहुर, सुषमा दुबे, हर्षवर्धन प्रकाश, नेहा लिम्बोदिया, डॉ अर्पण जैन अविचल, गोविंद शर्मा गोविंद, डॉ सुनीता श्रीवास्तव, राहुल तिवारी,डॉ भरत कुमार ओझा, मुकेश तिवारी, ज्ञानी रायकवार, हीरालाल वर्मा, प्रभात पंचौली, श्याम दांगी, डॉ राकेश गोस्वामी, भूपेंद्र विकल, सत्येंद्र हर्षवाल ने काव्य पाठ किया।

मुख्य अतिथि राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण सत्तन जी ने कविता कर माध्यम से अखबार वालों का महत्व बताया और यह भी कहा कि 'इस पार हो चाहे उस पार, पर हर बार महत्वपूर्ण होते है अखबार वाले।'

काव्य पाठ के उपरांत स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल, कमल कस्तूरी, आकाश चौकसे, शीतल रॉय सहित सभी अतिथियों ने पत्रकारों का सम्मान किया।

कार्यक्रम का संयोजन व संचालन डॉ अर्पण जैन 'अविचल' ने किया व आभार कमल कस्तूरी ने माना।कार्यक्रम उपरांत स्वल्पहार किया गया।


 

 



 



राष्ट्रीय साक्षरता मिशन

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

यह उस गलिच्छ बस्ती से स्कूल आता था , जहां गरीबी का एक छत्र राज था | माँ -बाप सिर्फ इसलिए स्कूल भेजते  थे कि एक तो स्कूल की फ़ीस नहीं लगती थी और दूसरे अभी उसे अभी कहीं काम नहीं मिला था | 

आज स्कूल का इंस्पेक्शन होने वाला था मास्टरों ने पहले ही खास -खास हिदायतें दे रखी थी | वह रोज की तरह आज फिर लेट आया था और रोज की तरह ही डांट खाकर खड़ा हो गया | भूगोल के मास्टर अपने विषय के अनुसार सख्त थे | आते ही उन्होंने पूछा -

" बताओ ,भारत के किस प्रान्त मेँ गेहूं का भंडार है ?"

वह  चुप रहा | सड़ाक से एक बेत उसके हाथ पर पड़ी , मनो कह रही है बता दे पंजाब को | पर वह उसकी बात नहीं समझ सका और चुप-चाप अपना हाथ भूखे पेट पर सहलाने लगा | 

मास्टर ने गुस्से से दूसरा सवाल पूछा - " अच्छा बताओ , भारत में कपड़े की मिले सबसे अधिक कहाँ पर है ?"

वह फिर चुप | सड़ाक से दूसरी बेंत उसके दूसरे हाथ पर पड़ी , मानो कह रही है बंबई में | उसे फिर बेंत की बात समझ में नहीं आयी | वह चुप - चाप खड़ा रहा | उसकी आँखे छल छला आई | उसने एक हाथ अपनी चढ्डी के विशेष फ़टे भाग पर रखा और दूसरे हाथ की आस्तीन से अपने आंसू पोछने लगा | पर आस्तीन इतनी फ़टी थी की उसकी पूरी बांह भीग गई | 

आँखे मलते - मलते उसके जी मेँ आया चीख - चीखकर कहे की न तो भारत मेँ गेहू के भंडार है और न ही कपड़े की मिलें | वह ते चुप ही रहा , पर उसकी चुप्पी पूरी शिक्षा प्रणाली से पूछ रही थी , क्या ये प्रश्न मुझसे पूछने का किसी को हक है ?

 

घनश्याम अग्रवाल  

 

 

रब

















रब पत्थर में नहीं

ज़र्रे -2 में बसा

पत्ता  भी हिल सकता नहीं

गर ना हो उसकी रज़ा

ढूंढने चली में रब को

गलियों में दूकानों में

ईंट पत्थर से बनाए बंगले

रब को पा ना सकी मकानों में।

 

रब है तेरे दिल के अंदर

क्यों ढूंढे उसे मस्जिद मंदिर

रब को पाया मैंने  मयखाने

जहां देखें मैंने महोब्बत के दिवाने

 

सच्चे खुदा के बंदे को

नहीं परवाह ज़माने की

होते हैं वह फरिश्ते 

नहीं ज़रूरत आजमाने की।

 

जहां भूख गरीबी

जहां आंखों में प्यास

रब होंगे वहीं कहीं

जहां होगी गरीब की आस।

 

द्रोपदी ने बुलाया 

रब दौड़े चले आए

मीरां को विष के प्याले 

में रब नज़र आए।

 

रब सबका सांझा

ना कोई भतीजा ना भांजा

रब दौड़े पास उसके

जो पकड़े कसके ढौर व मांझा। 

 

राम रहीम एक हैं बंदे

गुरु हो या गोबिंद

धर्म के नाम पे कुछ ना बांटो

चाहे सतलुज हो या सिंध।

 

कल्पना गुप्ता /रत्न

















चिन्तन

















जब हमारे शास्त्र बोलते थे कि आहार विहार पर  बहुत अधिक गहनता से ध्यान दो, अपने खान पान को शुद्ध और सात्विक रखो तो  मज़ाक उड़ाया । 

पुस्तकें जला दी गईं। बकवास और पुरातनपंथी बोलकर उसका उपहास उड़ाया गया । 

 

आज चीन और अन्य देशों में आहार विहार पर न ध्यान देने के कारण पूरा विश्व ऐसे संक्रमण की चपेट में है कि वह लाखों लोगों को चट कर के ही मानेगा।

कभी बर्ड फ्लू, कभी स्वाइन फ्लू, कभी मैड काऊ (mad cow) , कभी कोरोना विषाणु और अब तक की तमाम तरह की बीमारियाँ सिर्फ और सिर्फ माँस भक्षण या गलत आहार से आती रही हैं और आयेंगी। 

 

*चीन में आज 70 लाख से ऊपर लोगों को शीशे में कैद कर रख दिया गया है ।*

 उनको कोई छू नहीं सकता, उनसे कोई बोल तक नहीं सकता।

१ फरवरी २०२० तक चीन में  ह्जारो लोगों कोरोना विषाणु के संक्रमण से मर चुके हैं और  लाखों लोग संक्रमित हैं। जो अंतिम सांसें गिन रहे हैं। 

 

आज विश्व में एक अभियान चल गया है -

*शाकाहारी बनो* । 

 

चीन में सरकार की तरफ से आदेश आ गया कि बहुतायत में मात्र सब्जियाँ उगायें और उन्हीं का सेवन करें । 

 

हमें गर्व होना चाहिए अपने शास्त्रों और पूर्वजों की बातों पर जिन्होंने इतनी गूढ़ और सदा के लिए हितकारी बातें लिख दी हैं जो अकाट्य हैं । 













 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



माँ बदल रही है















मां  अब  दिखती नहीं मैली साडी मे काम करती दिनभर नजर आती है

ट्रेंडी जींस पर

अपने लिये भी समय निकाल रही है

 

 मां बदल रही है

 

चुल्हे के धुंअे सेअब आंखें नही होती लाल

स्मार्ट किचन मे अब नयी रेसीपीबनती बेमिसाल

जब मन नही होता स्वीगी से पार्सल मंगवा रही है

सच मां बदल रही है

 

पापा  के सामने हरबात पर हाथ नहीं फैलाती है

ना ही सास और पति की मार खाती है

कंधे से कंधा मिलाकर सारा भार उठा रहीहै

सच मां बदल रही है

 

पुराने दिनों का राग नही  सुनाती

सास ,ननंद,जवाई का नखरा नही लेती

नही कहती औरत तेरी यही कहानी

 बेटे को पराठेऔर बेटी को कराटे सिखा रही है 

सच मां अब बदल रही है

मां अब हंसती है,नाचती है, मनमर्जी से जीती है

,समय के साथ बदलती है जैसा चाहे रहती है

पर.......

बच्चे का रोना सुनते ही थम जाते हैं कदम तब लगता है

क्या सचमुच मां बदल रही है??

उत्तर--

मां पूरी बदल रही है, पर उसकी ममता,उसका प्यार नहीं बदला

               और

आज के इस युग में इस बदली हुयी मां की ही जरूरत है...जो समय के साथ, समाज के साथ, बच्चों के साथ, जनरेशन के साथ बदले

क्योंकि  बदलाव प्रगति की निशानी है....For all ladies💕💞💖😘😍


 

राजकुमारी अग्रवाल 

शुजालपुर मंडी (म. प्र)



















 







 




 



प्रतिदिन






खुद को तपाईए

 

उसके चेहरे की झुर्रियों पर ना जाइए 

हो सके तो उसकी तरह  खुद को तपाइए

 

आसा है बहुत बोना यह नफरत के बीज

इसा है जो आप तो बस प्यार लाइए

 

हैवानियत के दौर से सब उबने लगे

अब दौर नया लाइए इंसान बनाइए 

 

दरिंदे तो सदा लाएंगे सौगात मौत की

 अगर हो सके तो जिंदगी बस बाट जाइए

 

 विकलांग था मंजिल मगर वह पा गया अपनी

 तारीफ उसकी कीजिए हसी ना उडाइए

 

फल के पीछे भागते जो अब छोड़िए उन्हें 

 बस कर्म आप कीजिएऔर भूल जाइए

 

डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण


 

 



 



 


कार्यशाला का आयोजन






कोठारी इंटरनैशनल स्कूल में २७ जनवरी से लेकर ३० जनवरी तक विज्ञान उत्सव तथा साहित्य उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया गया ।इस उपलक्ष्य पर  विषय विशेषज्ञों ने इन क्षेत्रों में उनके कार्य और उनके विचारों को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया।  'विज्ञान उत्सव 'कार्यक्रम का प्रारम्भ  अरोमोडलिंग के ज्ञाता श्री रोचन कुलकर्णी से हुआ उन्होंने  छात्रों को अरोमोडलिंग से संबंधित जानकारी दी।  श्री ओम जाधव (सी. ए. सी. डी. पुणे )ने सुपर कंप्यूटर के  बारे में जानकारी देते हुए छात्रों की कंप्यूटर से पहचान कर दी। श्री सारंग सहस्त्रबुद्धे जी ने खगोलशास्त्र के बारे में जानकारी देकर बच्चों की जिज्ञासा को और बढ़ाया।

'साहित्य उत्सव'  के उपलक्ष्य पर अंग्रेजी भाषा  की लेखिका  श्रीमती प्रियंका वर्मानी, मंजिरी प्रभू आदि लेखिकाओं ने अपने विचारों को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया और छात्रों को लेखन  कार्य के लिए प्रेरित किया।हिंदी  भाषा की लेखिका डॉ o श्रीमती ममता जैनजी  (पुणे )  ने छात्रोंसे संवाद साधते हुए  कहानी  तथा कविता लेखन के तथ्यों  से परिचित करवाया अपनी कुछ कविताओं का गायन कर साहित्य में  हिंदी भाषा के महत्व   को उजागर किया ।






 


 



 



वेलेंटाइन डे और भारत

सम्पादक  की कलम से 







*वैलेंटाइन डे और भारत* 

 

भारतीय संस्कृति में उत्सव और पुरुषार्थ की एक लंबी श्रृंखला है । धर्म ,अर्थ ,काम, मोक्ष के लिए पुरुषार्थ ही मनुष्य का लक्ष्य है और इस पुरुषार्थ  को आह्लादमय बनाना उसकी प्रवृत्ति है जो निरंतर जीवन भर बनी रहती है । यहां पर्व है प्रत्येक पक्ष में ,माह में ऋतु में । पर्व आते ही रहते हैं।भारत में सृष्टि का प्रवर्तन है। वर्जनाहीनता ,वासना,अश्लीलता व्याभिचार यहां काम नहीं है ,प्रेम की आराधना काम है।भारत में तो सदियों से ही वैलेंटाइन की परंपरा है ।शास्त्र विधान है। यहां कामशास्त्र ऋषि-मुनियों ने लिखे हैं ।उन ऋषि मुनियों ने गृह त्याग और ब्रह्मचर्य जिनके आभूषण रहे हैं, धर्म और नैतिकता के तटबंधो में उन्होंने काम को बांधा है।

       बड़ी रोचक एवं स्पर्शी कथा है वैलेंटाइन डे की।संत वैलेंटाइन की संवेदना का प्रतिफल है वैलेंटाइन । रोमन सम्राट क्लॉडियस को कुँवारे नौजवान सिपाहियों की युद्ध के लिए आवश्यकता थी। सम्राट उन्हें अपने चंगुल में रखता था पर वे नौजवान भाग निकलकर वैलेंटाइन की शरण में आते थे, वैलेंटाइन उनकी शादी करवाते थे और जो सम्राट की कैद में फंसे थे उन्हें छुड़वाते थे । सम्राट ने 1 दिन इस प्रेम के मसीहा को मौत के घाट उतार दिया। पर मरने से पहले वैलेंटाइन डे एक पंक्ति जेलर की बेटी को लिखकर कार्ड भिजवाया -"तुम्हारे वैलेंटाइन की ओर से "।आज हजारों वर्ष बाद भी यह पंक्ति अमर है इस पवित्र दिन का दुरुपयोग होना अच्छा नहीं लगता उन्होंने विवाह करवाया था न कि उन्हें उच्श्रृंखल बनाया था। विवाह सूत्र में बांधकर उनको गृहस्थ जीवन में प्रवेश कराया था और इसी व्यवस्था से मनुष्य मनुष्य बना रहता है गृहस्थ धर्म का निर्वाह करता है, सृष्टि का संचालन करता है ।

हमारे पुराणों में राजाओं द्वारा अपनी रानियों के साथ बसंत उत्सव मदनोत्सव कुमुदोत्सव के अनेक प्रसंग पढ़ने को मिलते हैं जहां में गाते थे बजाते थे रंग रलिया लिया करते थे वन विहार करते थे यह ऋतु बसंत ऋतु है जहां प्रकृति को भी कामोद्दीपक माना गया है ।मादकता का सुवास पेड़-पौधों ,लता -पुष्पों से प्रस्फुटित होता है ।पूरी सृष्टि सौंदर्य की अंगड़ाई लेने लगती है। रंग बिरंगे फूल में भीग जाते हैं सृष्टि राधा कृष्णा हो जाती है। बसंत पंचमी  तो सर्वत्र पीत ही पीत हो जाती है किंतु कामुकता नहीं होती सहज स्वाभाविक मधुमिता की अधिकता होती है।      संत वैलेंटाइन वैलेंटाइन में न अनैतिकता थी, न अनाचार, न दुराचार था । वह तो  युवक-युवतियों के लिए अंधेरे का दीपक था ,सहारा था । प्रतिबंध प्रताड़ना का तो कोई स्थान ही नहीं था उनके वैलेंटाइन में।

      आज वैलेंटाइन अपनी मूल भावना के विपरीत है ,प्रेम प्रेमिका और प्रदर्शन का ऐसा रूप सम्मुख आ रहा है जिससे वितृष्णा हो रही है ।वैलेंटाइन डे जैसा पवित्र दिन व्यापार ,ब्राण्ड, बिजनेस बन गया है ।भारतीय संस्कृति में वैलेंटाइन डे नहीं मनाया जाता ।हमारे यहां तो वैलेंटाइन मनाते हैं अच्छी तरह से सात सात जन्मो तक , सात फेरों के द्वारा बंधन होते हैं ।जो मंत्रों के द्वारा पवित्र होते हैं उन्हें अपने प्रेम के लिए विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती भारतीय परिवेश में वैलेंटाइन डे का परिष्कृत रूप घर घर मे है। वैलेन्टाइन जैसे  उदार संत  के कृतित्व को महान रखने के लिए युवक-युवतियों को इस दिन प्यार के इजहार की अभिव्यक्ति के साधन नहीं ढूंढने चाहिए अपितु प्रेम के संस्कारों को संस्कृत करना चाहिए ।यह विवाह का प्रेम है विवाह की आवश्यकता का परिचायक है हमें चाहिए कि हम गंभीरता से किसी भी परम्परा को समझें ,अपने देश की संस्कृति के स्वभाव को परखें, तब होगा वैल एंड फाइन डे । अपने पाठकों पर गर्व है वे जिस गंभीरता एवं प्रेम से श्री देशना के संकल्प से जुड़े रहे हैं उसे निश्चित रूप से हम अपने विचारों का संसार विस्तृत करेंगे । सुझाव आपके  ,प्रयोग हमारे ,जुड़े रहें । अपनी रचनाएं shreedeshna 77 @gmail.com पर प्रेषित करें। धन्यवाद 

 


 

 



 



सच्चाई

दोस्तों..

अगर आप के दिल में कोई शख्श़ खास मक़ाम रखता और वो आपको नजर‌ अंदाज़ करें..तो फ़िर उसे भुलाना ही लाज़मी होगा.. ऐसी ही एक सच्चाई बयां कर रही है क़लम-ए-कमल..!!

 

जो तुम्हें नज़र अंदाज़ करें उसे भुला देना ही लाजमी है..!

झूठे ख्व़ाबो ख्य़ालो को आज तक कब कहां मिली जमीं है..!

 

एक हवा के झोंके की मानिंद समझ उसका जिंदगी में आना..!

क्यों कोशिशें करता क़ैद करने की हवा कब कहां धमी हैं..!

 

वक़्त के साथ बड़े से बड़ा जख्म़ भी भर जाया करता है..! 

तो फिर तेरी आंखों में उसे खोने की क्यो ये नमी है..!

 

शायद उसकी दोस्ती की उम्र ही इतनी सी थी ये सोच लेना..!

सच्चे और अच्छे दोस्त की दुनिया में कहां कोई कमी है..!

 

कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

शुभ प्रभात





दुख देंगे जब और को,
दुख पाएँगे आप।
आग जलाता जो सखे,
वही झेलता ताप। डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण '




 


 






विमोचन






डॉ मुक्ता जी के दो निबंध/आलेख संग्रह  “परिदृश्य चिंतन के” और “हाशिये के उस पार”का विमोचन डॉ पूर्णमल गौड़ (निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी) द्वारा राज्य शैक्षिक अनुसंधान केंद्र,गुरुग्राम में  कादम्बिनी क्लब गुरुग्राम  के सौजन्य से संपन्न हुआ। हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं। 💐🙏


 

 



 



स्नेह मिलन

  6-2-2020को अजमेर में महिला महा समिति द्वारा जिला स्तरीय स्नेह मिलन कार्य क्रम का सफल आयोजन किया गया ।            
इस कार्यक्रम में अजमेर जिले के किशनगढ़ संभाग ने हास्य नाटिका, नसीराबाद संभाग ने डांडिया, ब्यावर संभाग ने देश भक्ति,केकडी संभाग ने बसंती धूम, दूदू संभाग ने पंजाबी धूम, अजमेर सभांग ने राजस्थानी थीम पर अपना सास्कृतिक कार्यक्रम दिया ।इस तरह से समस्त संभागो ने🤝 एकता में अनेकता 🤝की  प्रस्तुति दी।संभागो का उत्साह देखने लायक था ।


रेललाइनशुरू


पारसनाथ 🛤 मधुबन  गिरिडीह ३५ km की रेल लाइन का काम शुरू हो गया है❗ यह जानकारी भारतीय जनता पार्टी के रेल मंत्री पीयूष जी गोयल द्वारा दी गई 🙏😊


🛤 रेल लाइन का कार्य पूर्ण होने पर सीधे मधुबन सम्मेद शिखरजी तक ट्रैन द्वारा पहुँच सकते हैं


दिव्यांग को रोजगार

दिव्यांग मानव सेवा महिला महासमिति जबलपुर संभाग द्वारा  दिव्यांग सुरेन्द्र चक्रवर्ती भीख  माँगता था उसे प्रेरित कर सब्जी की दुकान लगवाई और मंदिर जी मे आजीवन शराब और माँस भक्षण   का त्याग करवाकर रोजगार करवाया।
अध्यक्ष प्रीतिपाली जबलपुर संभाग


जहाजपुर में पंचकल्याणक भव्यता से सम्पन्न हुए



































 


 

 



 



 







 

 








 

 







 







 




 





 




 



 


 

जहाजपुर में पंचकल्याणक भव्यता से सम्पन्न हुए











प्रतियोगिता






श्री देशना मासिक पत्रिका द्वारा आयोजित लघुकथा एव काव्य प्रतियोगिता हेतु अपनी रचनाएं प्रेषित करें...


डा.ममता जैन

E 801 Daffodils 

Magar patta

Pune.411013

दोनों वर्गो मे पुरस्कार .।

प्रथम..1100/-

द्वितीय..750/-

तृतीय..500/-

5 सान्त्वना पुरस्कार

निर्णायकों का निर्णय अन्तिम एवं मान्य होगा

अन्तिम तिथि..15 मार्च 2020


 

 






आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के नाम एक और कीर्तिमान बन गया

United Kingdom के World Book of Records में किसी संत द्वारा एकसाथ सर्वाधिक १८ जिनालयों के पंच कल्याणक प्रतिष्ठा २६ जनवरी से  १ फरवरी २०२० तक इंदौर, मध्यप्रदेश में करवाने के लिए आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के नाम यह कीर्तिमान दर्ज हुआ

 

आचार्यश्री को नमोस्तु एवं सभी भक्तों को बधाइयां

गणतंत्र दिवस पर झुग्गी झोपडी में बच्चो को बांटी मिठाई

गणतंत्र दिवस पर झुग्गी झोपडी में बच्चो को बाटी मिठाई 


शुभचिंतक फाउण्डेशन ट्रस्ट द्वारा गणतंत्र दिवस पर मलिन बस्ती में बच्चो के साथ ध्वजारोहण किया गया ,बच्चों ने राष्ट्र गान गाया, खेलकूद प्रतियोगिता में भाग लिया। सभी बच्चों को पारितोषिक दिए गए एवं मिष्टान्न वितरित किया गया 


सम्मेदशिखरजी की भव्य आरती

सम्मेदशिखरजी की भव्य आरती 


लोकसभा में प्रधानमंत्री की घोषणा के 4 घंटे बाद ट्रस्ट के 15 सदस्यों की जानकारी सामने आई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को लोकसभा में राम मंदिर ट्रस्ट के बारे में घोषणा की थी। इसके 4 घंटे बाद ट्रस्ट से जुड़े 15 सदस्यों के बारे में जानकारी सामने आई। अयोध्या विवाद में हिंदू पक्ष के मुख्य वकील रहे 92 वर्षीय के. पाराशरण को ट्रस्टी बनाया गया है। उनके अलावा एक शंकराचार्य समेत 5 सदस्य धर्मगुरु ट्रस्ट में शामिल हैं। अयोध्या के पूर्व शाही परिवार के राजा विमलेंद्र प्रताप मिश्रा, अयोध्या के ही होम्योपैथी डॉक्टर अनिल मिश्रा और कलेक्टर को ट्रस्टी बनाया गया है।



पहले कहा जा रहा था कि चार शंकराचार्यों को इस ट्रस्ट में शामिल किया जाएगा, लेकिन सरकार ने ट्रस्ट में सिर्फ प्रयागराज के ज्योतिषपीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज को शामिल किया गया है। ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी जगह दी गई है, लेकिन अखाड़े के महंत दिनेंद्र दास को ट्रस्ट की मीटिंग में वोटिंग का अधिकार नहीं होगा।


ये होंगे ट्रस्टी


1. के पाराशरण: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं। इन्होंने अयोध्या मामले में 9 साल हिंदू पक्ष की पैरवी की। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार में अटॉर्नी जनरल रहे। पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित।
2. जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वतीजी महाराज (प्रयागराज): बद्रीनाथ स्थित ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य। हालांकि, इनके शंकराचार्य बनाए जाने पर विवाद भी रहा। ज्योतिष मठ की शंकराचार्य की पदवी को लेकर द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने हाईकोर्ट में केस दाखिल किया था।
3. जगतगुरु मध्वाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नतीर्थ जी महाराज: कर्नाटक के उडुपी स्थित पेजावर मठ के 33वें पीठाधीश्वर हैं। दिसंबर 2019 में पेजावर मठ के पीठाधीश्वर स्वामी विश्वेशतीर्थ के निधन के बाद पदवी संभाली।
4. युगपुरुष परमानंद जी महाराज: अखंड आश्रम हरिद्वार के प्रमुख। वेदांत पर 150 से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने साल 2000 में संयुक्त राष्ट्र में आध्यात्मिक नेताओं के शिखर सम्मेलन को संबोधित किया था।
5. स्वामी गोविंद देव गिरि जी महाराज: महाराष्ट्र के अहमद नगर में 1950 में जन्म हुआ। रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों का देश-विदेश में प्रवचन करते हैं। स्वामी गोविंद देव महाराष्ट्र के विख्यात आध्यात्मिक गुरु पांडुरंग शास्त्री अठावले के शिष्य हैं।


6. विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा: अयोध्या राजपरिवार के वंशज। रामायण मेला संरक्षक समिति के सदस्य और समाजसेवी। 2009 में बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, हारे। इसके बाद कभी राजनीति में नहीं आए।


7. डॉ. अनिल मिश्र, होम्पयोपैथिक डॉक्टर: मूलरूप से अंबेडकरनगर निवासी अनिल अयोध्या के प्रसिद्ध होम्योपैथी डॉक्टर हैं। वे होम्योपैथी मेडिसिन बोर्ड के रजिस्ट्रार हैं। मिश्रा ने 1992 में राम मंदिर आंदोलन में पूर्व सांसद विनय कटियार के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अभी संघ के अवध प्रांत के प्रांत कार्यवाह भी हैं।
8. श्री कामेश्वर चौपाल, पटना (एससी सदस्य): संघ ने कामेश्वर को पहले कारसेवक का दर्जा दिया है। उन्होंने 1989 में राम मंदिर में शिलान्यास की पहली ईंट रखी थी। राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका और दलित होने के नाते उन्हें यह मौका दिया गया। 1991 में रामविलास पासवान के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा।
9. बोर्ड ऑफ ट्रस्टी द्वारा नामित एक ट्रस्टी, जो हिंदू धर्म का हो।
10. बोर्ड ऑफ ट्रस्टी द्वारा नामित एक ट्रस्टी, जो हिंदू धर्म का हो।
11. महंत दिनेंद्र दास: अयोध्या के निर्मोही अखाड़े के अयोध्या बैठक के प्रमुख। ट्रस्ट की बैठकों में उन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं होगा।
12. केंद्र सरकार द्वारा नामित एक प्रतिनिधि, जो हिंदू धर्म का होगा और केंद्र सरकार के अंतर्गत भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का अफसर होगा। यह व्यक्ति भारत सरकार के संयुक्त सचिव के पद से नीचे नहीं होगा। यह एक पदेन सदस्य होगा।
13. राज्य सरकार द्वारा नामित एक प्रतिनिधि, जो हिंदू धर्म का होगा और उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का अफसर होगा। यह व्यक्ति राज्य सरकार के सचिव के पद से नीचे नहीं होगा। यह एक पदेन सदस्य होगा।
14. अयोध्या जिले के कलेक्टर पदेन ट्रस्टी होंगे। वे हिंदू धर्म को मानने वाले होंगे। अगर किसी कारण से मौजूदा कलेक्टर हिंदू धर्म के नहीं हैं, तो अयोध्या के एडिशनल कलेक्टर (हिंदू धर्म) पदेन सदस्य होंगे।


15. राम मंदिर विकास और प्रशासन से जुड़े मामलों के चेयरमैन की नियुक्ति ट्रस्टियों का बोर्ड करेगा। उनका हिंदू होना जरूरी है। 


नियम: जो ट्रस्टी हैं उनकी ओर से (सीरियल नंबर 2 से 8 तक के) 15 दिन में सहमति मिल जानी चाहिए। ट्रस्टी नंबर 1 इस दौरान ट्रस्ट स्थापित कर अपनी सहमति दे चुका होगा। उसे सीरियल नंबर 2 से सीरियल नंबर 8 तक के सदस्यों की तरफ से ट्रस्ट बनने के 15 दिन के अंदर सहमति ले लेनी होगी।


चार वर्तमान व एक समाधिस्थ मुनिराज को आचार्य पद

सोनकच्छ। विगत 29 नवम्बर 2019 को मध्य प्रदेश में पुष्पगिरी तीर्थ पर श्रीमज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के तप कल्याणक के दिन पुष्पगिरी तीर्थ प्रणेता आचार्य श्री पुष्पदंतसागर जी महाराज द्वारा 12 विद्वानों, 11 प्रतिष्ठाचार्यों, 11 पत्रकारों व समाजनों की साक्षी में अपने चार वर्तमान एवं एक समाधिस्थ शिष्य को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। सबसे पहले आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी महाराज ने समाधिस्थ शिष्य मुनि श्री तरुणसागर जी को आचार्य पद प्रदान किया, तदुपरान्त अंतर्मना मुनि श्री प्रसन्नसागर जी महाराज, राष्ट्रसंत मुनि श्री पुलकसागर जी महाराज, मुनि श्री प्रमुखसागर जी महाराज और मुनि श्री प्रणामसागर जी महाराज को आचार्य पद प्रदान किया। आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज ने कहा है कि 'आज पुष्पगिरी पर मुनि श्री प्रज्ञासागर जी महाराज, मुनि श्री सौरभसागर जी महाराज, मुनि श्री अरुणसागर जी महाराज उपस्थित नहीं हैं पर मैं यहाँ घोषणा करता हूँ कि जैसे ही उनका आगमन पुष्पगिरी तीर्थ पर होगा या मुझ से मिलन होगा, उस दिन इन सभी मुनियों को भी आचार्य पद प्रदान किया जाएगा। अब से आचार्य श्री पुष्पदंतसागर जी महाराज को 'गणाचार्य' कहा जायेगा।



 जैन इतिहास में शायद यह प्रथम बार है कि किन्ही समाधिस्थ मुनिराज को आचार्य पद प्रदान किया गया। आचार्य पद प्रदान की अनुमोदना में 12 विद्वान् सर्वश्री डाॅ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर'-नागपुर, डाॅ. श्रेयांसकुमार जैन-बड़ौत, डाॅ. सुशील जैन-मैनपुरी, डाॅ. नरेन्द्रकुमार जैन-गाजियाबाद, डाॅ. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी'-वाराणसी, डाॅ. कमलेश जैन-वाराणसी, डाॅ. सनतकुमार जैन-जयपुर, डाॅ. जयकुमार जैन-मुजफ्फरनगर, डाॅ. अशोक जैन-वाराणसी, डाॅ. अनुपम जैन-इन्दौर, पं. विनोद जैन-रजवांस, डाॅ. आशीष जैन आचार्य-शाहगढ़ उपस्थित रहे।


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उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

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