चिन्तन मंथन - माँ की ममता
बचपन में थामी थी जिसने उंगली ,चलना तुम्हें सिखाया था /उस माँ का बुढ़ापे में साथ ना छोड़ना / बचपन में जो तुम्हारे बिना कहे ही तुम्हारी भूख समझ जाती थी ,बुढ़ापे में उस माँ के शब्द लड़खड़ा जाए तो, कुछ समझ में नहीं आता यह शिकायत मत करना / बचपन में तुमने सारी रात मां को सोने नहीं दिया था ,अब बुढ़ापे में रात को मां खांसे तुम्हें पुकारे ,तो शिकायत मत करना / बचपन में कई बार तुम्हारे कारण मां का मंदिर जाना, पूजन करना छूटा था ,कई बार तुम्हारे कारण मां प्रवचन नहीं सुन पाई थी ,अब किसी दिन मां के कारण तुम किसी पार्टी में ना जा पाओ तो नाराज ना होना / बचपन में तुम्हारे भोजन की हर फरमाइश को जिसने पूरा किया था ,बुढ़ापे में मां यदि कुछ खाने की इच्छा करें तो यह कहकर उसका अपमान मत करना कि बूढ़े हो गए पर लालसा नहीं जाती / सदा याद रखना त्रिलोकी की यह बात, वृद्धावस्था में कई बार बचपन लौट आता है , अतः माता पिता की सेवा सेवा में इस बात को याद रखना चाहिए मां बाप की सेवा भगवान की सेवा से कम नहीं है /अभी मेंने मद्रास से नागपुर आते समय ट्रेन में एक युवा मां जिसकी 15 माह की बेटी थी / बेटी बहुत जिद्दी थी /मां खाने को केला देती तो सेवफल मांगने लगती /सेव फल बनाती तो अनार मागने लगती /कुल मिलाकर उसकी फरमाईसो कोई अंत नहीं था /रात में सोते समय तो हद हो गई जब उस बिटिया ने उस कमरे में चलकर सोने की जिद की जिसमें रोज सोती थी, और जोर जोर से रोने लगी बमुश्किल उस माँ ने बिटिया को सुलाया /सुबह उठकर बिटिया ने फिर जिद पकडी /मैंने मां से कहा यह बिटिया थोड़ी पिटाई भी मांगती है/ तब उस माँ ने जो कहा वह सुनने समझने जैसा है / मैं अपनी बिटिया में भगवान की लीलाओं को देखती हूं /भगवान जैसा ही प्यार करती हूं /मैंने आज तक अपनी बिटिया को मारा नहीं है /सुनकर मेरी आंखों में आंसू छल्छला आए धन्य है मां तेरा त्याग तेरा समर्पण तेरी महिमा / मेरा या छोटा सा लेख दुनिया की हर माँ को समर्पित है जिसने अपने बेटे में अपनी बेटी में भगवान देखा है
विधानाचार्य ब्र. त्रिलोक जैन
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