प्रतिदिन






खुद को तपाईए

 

उसके चेहरे की झुर्रियों पर ना जाइए 

हो सके तो उसकी तरह  खुद को तपाइए

 

आसा है बहुत बोना यह नफरत के बीज

इसा है जो आप तो बस प्यार लाइए

 

हैवानियत के दौर से सब उबने लगे

अब दौर नया लाइए इंसान बनाइए 

 

दरिंदे तो सदा लाएंगे सौगात मौत की

 अगर हो सके तो जिंदगी बस बाट जाइए

 

 विकलांग था मंजिल मगर वह पा गया अपनी

 तारीफ उसकी कीजिए हसी ना उडाइए

 

फल के पीछे भागते जो अब छोड़िए उन्हें 

 बस कर्म आप कीजिएऔर भूल जाइए

 

डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण


 

 



 



 


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