रब पत्थर में नहीं

ज़र्रे -2 में बसा

पत्ता  भी हिल सकता नहीं

गर ना हो उसकी रज़ा

ढूंढने चली में रब को

गलियों में दूकानों में

ईंट पत्थर से बनाए बंगले

रब को पा ना सकी मकानों में।

 

रब है तेरे दिल के अंदर

क्यों ढूंढे उसे मस्जिद मंदिर

रब को पाया मैंने  मयखाने

जहां देखें मैंने महोब्बत के दिवाने

 

सच्चे खुदा के बंदे को

नहीं परवाह ज़माने की

होते हैं वह फरिश्ते 

नहीं ज़रूरत आजमाने की।

 

जहां भूख गरीबी

जहां आंखों में प्यास

रब होंगे वहीं कहीं

जहां होगी गरीब की आस।

 

द्रोपदी ने बुलाया 

रब दौड़े चले आए

मीरां को विष के प्याले 

में रब नज़र आए।

 

रब सबका सांझा

ना कोई भतीजा ना भांजा

रब दौड़े पास उसके

जो पकड़े कसके ढौर व मांझा। 

 

राम रहीम एक हैं बंदे

गुरु हो या गोबिंद

धर्म के नाम पे कुछ ना बांटो

चाहे सतलुज हो या सिंध।

 

कल्पना गुप्ता /रत्न