अमिट प्रेम के रंग से , ऐसी पड़ती छाप।
तन-मन जीवन भीगता, हिय डूबता आप।।
रंगरेजा ने रंगा, भूल गई संसार।
गिरधर,मोहन मोहना, घर-घर बैठे द्वार।।
राधा भूली जा रही, अपना चित्त विचार।
मीरा दुनिया छोड़कर, ढूँढ रही साकार।।
गोपी-उद्धव कर रहे, मन ही मन में जाप।
अमिट प्रेम के रंग से, ऐसी पड़ती छाप।।
विष का प्याला मधु बना, बाँवरी हुई प्रीति।
कृष्णप्रिया के रंग से, बढ़ती राधे रीति।।
ब्रज मथुरा के धाम से,चलती जगत सुनीति।
गोकुल गोचर बन गया, यही है परम प्रतीति।।
बरसाने के लट्ठ से, दूर जगत संताप।
अमिट प्रेम के रंग से, ऐसी पड़ती छाप।।
प्रभुवर सबके आप हैं, आप करें उपकार।
भक्ति-भाव अरु प्रेम का, मुरलीधर उपहार।।
सभी रंग इस जगत के, तुझसे हैं करतार।
मोह-लोभ का त्याग हो, चरण-शरण दें तार।।
हँसते-गाते चल पड़ूँ, कटे कष्ट अरु पाप।
अमिट प्रेम के रंग से , ऐसी पड़ती छाप।।
अमिता,रवि दूबे
छत्तीसगढ़
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