सुबह का सूरज* 

   

सुबह का सूरज 

मेरे रोशनदान से झांकता है

छुप छुप कर जब भी देखता है

मुझसे मिलने की चाह लिए

मुझे पता लग जाता है

यह मेरे मायकेमेरे घर से मिलकर आया है 

यही एक तो है

जिससे मैं पूछ लेती हूं सबके हालचाल

उठ जाती हूं सुबह 

सूरज आएगा

आएगी मां की आवाज 

नहा धो लो भगवान की पूजा करो

नाश्ता तैयार करती हूं

मैं आवाज में खोती हूं 

जब तक सूरज को देखती  हूं

आ जाती है दूसरी आवाज 

नाश्ता तैयार नहीं हुआ क्या ?

बाद में देना जल

पूजना बाद में भगवान को

अधरों पर जम जाता है

 तभी एक सवाल

 सूरज तुम ही बताओ 

यह क्या हो गया ?

सारा माहौल कैसे बदल गया?

 हम सबके बीच से

 भगवान कहां 

और क्यों चला गया?

 

 

डॉ ममता जैन,पुणे