दर्द-ए-वतन..






   दर्द-ए-वतन..

 

तहज़ीब शामिल रहती थी, कभी हमारें किरदारों में..!

ये किसने विष घोल दिया, आकर हमारे संस्कारों में..!

 

इंसानियत का दरिया,बहता करता था, कभी हर दिल में..!

ये किसने अदावतें मिला दी है,उन बहते हुए धारों में..!

 

सियासत की रियासत का,अपना एक अलग ही मक़ाम था..!

ये कोड़ियो के मोल बिकती है, देखो आजकल बाजारों में..!

 

विचारों में पाकपन, नज़र में बांकपन, दिल में रहता वतन..!

नज़र नीयत में खोट हैं, खलिश भरी हुई आज विचारों में..!

 

कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश


 

 



 



No comments:

Post a Comment

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular