दु:खहर सुखकर हो मन की बात
ब्र. त्रिलोक जैन
मन एक ऐसा समुद्र है ,जहां निरंतर अच्छे बुरे विचारों की तरंगे- लहरें उठती रहती हैं /लहरें मुख के तट से टकराकर ,बाहर निकलती है /लहरे जब प्रशंसा की फुहार बन अच्छे कार्यों की अनुमोदना करती है ,तो तट पर बैठे लोगों को सुकून देती है /लेकिन वही लहरे जब हित मित प्रिय वचन की सीमाएं लांग कर , सुनामी की तरह कहर बरपाने लगती हैं ,तो अभिशाप बन जाती है /अतः सोच समझकर हित मित प्रिय करना मेरे मनमीत, मन की बात
/जिससे ना हो किसी को दु:ख और संताप ,ऐसी कहना मन की बात /जिससे ना बिगड़े किसी की बात ,ऐसी करना मन की बात /
जिससे ना हो किसी की दुख भरी रात ,ऐसी करना मन की बात
/हो जाए सबका शुभ मंगल प्रभात ,ऐसी करना मन की बात /
अपने मुख से अपनी प्रशंसा का आए जब भाव, रोके रखना मन की बात /
माता-पिता और गुरुदेव से अकड़ दिखाने का हो जब भाव, तो कभी न करना मन की बात /
दुर्बल को दुर्वचन कहने का हो जब भाव, तो कभी न करना मन की बात /
झूठ फरेब कुविद्या का जब हो भाव, तो कभी ना करना मन की बात /
बड़ों बूढ़ों की सीख यही है ,ज्ञानी जनों की रीत यही है /सदा ही करना हितकारी बात /
अच्छे को अच्छा कहने का हो जब भाव, तो सदा ही करना मन की बात /
प्रभु गुरु स्तुति का हो जब भाव , तो सदा ही करना मन की बात /
किसी मुसीबत में पड़े को उठाने का हो जब भाव ,तो सदा ही करना मन की बात /
घायल को मरहम लगाने का हो जब भाव ,तो सदा ही करना मन की बात /
भूखे को भोजन ,प्यासे को पानी पिलाने का हो जब भाव, तो सदा ही करना मन की बात /
बेसहारों को सहारा देने का भाव, रोते को हसाने का भाव ,गिरते को उठाने आदि सत्कर्म की खुशबू फैलाने के जब -जब आए शुभ पावन मंगल हितकारी भाव ,
तो सदा ही करना "त्रिलोकी" मन की बात /
सदा ही करना ऐसी बात ,जिससे हो सुख शांति की, अमन चैन की, भाईचारे की बरसात
,ऐसी करना मन की बात, मन की बात
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