*नैतिक मूल्यों का बढ़ता अवमूल्यन* 

 

 *डॉ ममता जैन पुणे* 

 

ईश्वर द्वारा रची गई सृष्टि की सर्वोत्तम कृति है मानव क्योंकि मानव एक बौद्धिक व सामाजिक प्राणी है। अतः उसे साधारण से असाधारण बनाने वाले सत्य भाषण, उदारता ,विशिष्टता, नम्रता, सहानुभूतिपरता इन नैतिक गुणों को धारण करना व इनके साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक परंपरा को आगे बढ़ाना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है।

नैतिक मूल्य हमारी रोजमर्रा के चाल चलन से संबंधित मूल्य है।यह हमारे आचरण का बखान नहीं करते, बल्कि उन्हें कैसा होना चाहिए यह भी बताते हैं। नैतिक मूल्य मानव स्वभाव के सहज सद्गुण है। यह मनुष्य के सामान्य धर्म है। जिस प्रकार आग  अपनी गर्मी से और पानी अपनी ठंडक से पहचाना जाता है ।उसी प्रकार मनुष्य अपने नैतिक गुणों से जाना जाता है। परआज के इस भौतिकवादी चकाचौध के युग में इन गुणों का ,मूल्यों का पतन सबसे अधिक चिंताजनक समस्या हो गई है।जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह पतन हावी हो रहा है। पारिवारिक विघटन हो या सामाजिक कलह ,पर्यावरण असंतुलन हो या अन्य कोई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समस्या सब की जड़ों में पहली और आखरी बीमारी नैतिक मूल्यों का ह्रास ही है। वर्तमान समाज सहज मानवीय स्वभाव का परिचायक ना होकर बनावट और असहज क्षमता को ओढ़ने लगा है।

 आखिर क्या है महत्व इनका समाज में यह जानने के लिए इतिहास असंख्य उदाहरणों से भरा पड़ा है। जगत पूज्य सीता माता , जो रावण की लंका में सुरक्षित थी ,वह इन मूल्यों की कसौटी के कारण राम के पास आने के बाद सशंकित बनी रही, जब इनकी महत्ता है तो पतन का जिम्मेदार कौन है? इसका पता लगाना भी हमारा दायित्व है। इसके पीछे कोई एक कारण नही असंख्य कारण है सर्वप्रथम मानव जीवन की प्रथम पाठशाला परिवार से शुरू करते हैं ।आज घरों में वह आंगन ही नहीं जहां बुजुर्गों की हिदायतें और बच्चों की किलकारियां साथ साथ खेलती है। नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने वाली किताबें आज विद्यालयों से गायब हो चुकी है माता-पिता अपनी ही भागमभाग जिंदगी को ढो रहे हैं ऐसे में बच्चों में नैतिक संस्कार देने का ना तो उनके पास समय है और ना ही उनके लिए आवश्यक। बाकी कसर इन तथाकथित  मॉडर्न सोसाइटी' ने पूरी कर ली। किसी भी स्थिति में अतिशीघ्र अत्यधिक प्राप्त करने की लालसा के चलते नैतिकता की होली जल रही है।अगर हम ध्यान से सोचे न्यूनता की हद तक गिर जाने के बाद प्राप्त की गई उपलब्धियां क्या हमारे हृदय को आनंदित कर सकती हैं ?कदापि नहीं।अतः अपनी लालसा को ठहराव दे। त्याग ,श्रम और प्रेम से उद्देश्य प्राप्ति का लक्ष्य बनाएं। हमें हमारी पीढ़ी अपनी मधुर स्मृति में महत्वपूर्ण स्थान दें ,यही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। हमें स्वयं पर मरने की प्रवृत्ति को छोड़कर दूसरों के लिए जीना सीखना होगा। ताकि अपने गुणों की सोंधी खुशबू से धरा आकाश को भी सुवासित  कर सकें।

अंत में हमें सच को स्वीकारना होगा कि आज हमारे देश में संस्कार शीलता का अभाव है जिसके  कारण देश का नैतिक पतन हो रहा है और जिस देश का नैतिक पतन हो जाए उस देश की शक्ति व समृद्धि का भी ह्रास होने लगता है। इससे पहले की सर्वस्व नष्ट हो हमें नैतिक मूल्यों को मिलजुलकर एकजुट होकर सहेजना है, समेटना है ।