पर्यावरण कुदरत आजकल भेज रही पैगाम रख वातावरण को साफ सुथरा छोड़ दे सब, कर पहले यही काम। रुक रही तेरी सांस है टूट रही जीवन के प्रति आस है मचा हर ओर हाहाकार क्यास है। यह स्याह काला दुंआ लाया किसने वातावरण को जहरीला बनाया किसने जिंदगी लग रही जुआ, रुक रहे श्वास हैं। आज कानों में आवाज सुनाई देती नहीं लगता है सब गूंगे बहरे हो गए यहीं डीजे हार्नऔर मशीनों ने, कर दिया सत्यानाश है। हिमालय से भी ऊंची चोटियां प्लास्टिक और गंदगी से बन गईं विषैले कीटाणुओं से हवा भी जहरीली हो गई ताज़ी हवाओं से हरी भरी जगह नहीं दिखती आसपास है। मनुष्य ने कुछ भी ना छोड़ा नदियों नालों में डालकर गंद जीव जंतुओं के जीवन में डाला रोड़ा प्रदूषित जल से नहीं उगती अब घास है। मनुष्य हो रहा कितना मजबूर पीने का पानी लेने जाता दूर दूर गंदे पानी में ही ढूंढता जीवन और बुझाता प्यास है। चिकित्सालय में भरे पड़े कहीं चमकी कहीं डेंगू से लोग मरे सांसे हुई भारी, आंखों से कम दिखे कौन कितना बीमार ना इसका एहसास है। अरे बेचारो देश के प्यारों जीना है अगर तुम्हें पर्यावरण बचाओ प्लास्टिक की उठाओ अर्थी उसे जड़ से भगाओ वृक्ष लगाओ पानी बचाओ पानी में ना रसायनिक तत्व मिलाओ धूंए को करो दूर ना खुद को करो मजबूर शुद्ध गर वातावरण होगा चेहरे पर मुस्कान आंखों में सपने धरती पर स्वर्ग का एहसास होगा। कल्पना गुप्ता/ |
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