फागुनी दोहे....।
केसरिया है ओढनी, और गुलाबी गाल।
पायल बाजे प्रेम की, रस टपकाती चाल।।
तीखे- तीखे नयन हैं , काजल करे धमाल।
अधरों की मुस्कान ने , भरा प्रेम का ताल।।
महकी-महकी है हवा, उङता लाल गुलाल।
बचना मुश्किल हो गया , फागुन फेंके जाल।।
सुबह सुनहरी हो गई, संध्या लाल गुलाल।।
किया प्रेम का आचमन, हो गई मालामाल।।
इस फागुन के सामने , डाले जब हथियार।
जीवन में मधुरस घुला, मिला प्रेम उपहार।।
फागुन तेरे देश में , जित देखूँ उत लाल।
पिय ने पिचकारी भरी, हाल हुआ बेहाल।।
जिनके पिय घर पर नहीं , उनको रहा मलाल।
ठंडी आहे भर रहे , जैसे हो कंगाल।।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत
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