दोस्तों..

 

हवाओं से शब्द चुराकर उन्हें क़लम की जुबां से बोल लेता हूॅ.

. कुछ इस अंदाज से हज़ूर अपने राज-ए-दिल खोल लेता हूॅ..

अब आप सोचेंगे कैसे..? पढ़िेए सरकार वो ऐसे..!!

 

रिश्ते जुबां के रह गए हैं आज दिल से कौन निभाता है..!

मेरे शब्द दिल की जुबां होते हैं कोई कोई समझ पाता है..!

 

मुझे न अदावत लिखने का शौक़ है न मोहब्बत लिखने का..!

इन हवाओं से जो महसूस करता *कमल* वहीं लिख जाता हैं..!

 

वो जो कहता था ताउम्र निभाएंगे प्रीत का बंधन ये मीत..!

तनिक उल्टी हवा क्या चली वो बात करने से घबराता है..!

 

क‌ई सिरफिरे मुझे कहते हैं मैं धर्म विशेष पर क्यो नही लिखता..!

हर धर्म मेरे लिए ईश्वर ईश रब खुदा और मेरा दाता हैं..!

 

नफ़रतो से कभी नफरतें नहीं मिटती ये इतिहास बताता है..!

मोहब्बत के दरख़्त जो बोता हैं वो मोहब्बत के फल पाता है..

 

कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश