नाचना ही जिंदगी है




 जीवन की,

 हकीकत से ,

 अनजान। 

 अपनी लय में,

 अपनी ताल में,

 हर बात से अनजान ।

 

वो...... नाचती थी ?

सोचती.......... थी?

 

 नाचना ही..... जिंदगी है ।

गीत- लय- ताल ही बंदगी है।

 

 नाचना........ ही जिंदगी है ।

 नहीं ........ शायद

 नाचना ही.... जिंदगी नहीं है ।

 

इंसान हालात से नाच सकता है।

मजबूरियों की ,

लंबी कतार पे नाच सकता है।

 

 लेकिन ...........

अपने लिए ,

अपनी खुशी से नाचना। 

जिंदगी में यहीं,

 संभव -सा नहीं।

 

हकीकतें दिखी...... 

पाव थम गए। 

 

फिर कभी सबकी आंखों से,

ओझल हो ......!!!

नाचती .....अपने लिए।

 

 लेकिन जिम्मेदारियों से ,

वह भी बंध गए।

 

 फिर गीत -लय -ताल,

 न जाने कहां थम गए ।

 

पांव रुके,

और हाथ चल दिए। 

शब्द नाचने लगे।

जीवन की,

 हकीक़तों को मापने लगे।

 

उन रुके पांवों को ,

आज भी बुलाते हैं ।

तुम थमें हो ,

नाचना भूले तो नहीं ।

 

 वो.....नाचती थी।

 कभी हकीकतों से परे,

 आज ......भी नाचती है ।

  हकीकतों के तले ।।

 

 

प्रीति शर्मा "असीम "

नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


 

 



 

*कोरोना के बाद क्या होगा आगे*








































*कोरोना के बाद क्या होगा आगे*

 

हर कोई चिंतित है, अब आगे क्या होगा... कैसे होगा...

लाखों लोगों की नौकरियां जायेगी... सभी के सामने आर्थिक परेशानियाँ होगी...

व्यापार पर भी असर होगा...स्कुल की फीस, मेडीकल का खर्च, घर का खर्च चलाना भी मुश्किल होगा....

*हमारा दिगंबर जैन समाज भी इससे अछुता नहीं है..*

 

साथी हाथ बढाना योजना के माध्यम से हमने हजारों साधर्मी भाईयों को सहायता तो पहूंचाई... लेकीन 

*लाँकडाऊन खुलने का बाद आगे क्या होगा....*

*उस समय की परेशानियों के लिए कौन मदद करेगा....*

 

इसलिए श्री भारतवर्षीय दि. जैन महासभा द्वारा युध्दस्तर पर समाज का डाटा इकठ्ठा करने का काम शुरु किया गया है। जिससे हम जरुरतमंद लोगों को आगे भी मदद पहूंचा सके, सरकारी योजनाओं का लाभ उनको मिला सके, आपसी व्यापार बढा सके, अपने लोगों को रोजगार दिला सके...

 

*हम शिक्षा, व्यापार, महिला गृह उद्योग, रोजगारी आदि विषयों पर योजनायें बना रहे है।* लेकीन उसके लिए समाज की सही डाटा होना जरुरी है इसलिए अमीर गरीब हर कोई फाँर्म भरें, क्योकि सभी को कुछ ना कुछ फायदा हो ऐसी योजनायें बनाने का विचार है। 

 

समय कम है, देर ना करें, तुरंत यह फाँर्म भरे, साथ में आप के आस पास के सभी दिगंबर भाई- बहनों को भरने के लिए कहें। *हो सकता है आपकी पहल से किसी का भला हो जाये....*

 

*नोट* - 1) घर का हर व्यक्ति का अलग अलग फाँर्म भरें

2) आपकी सारी जानकारी गुप्त रखी जायेगी।

 

 

*आयोजक – श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा, दिल्ली*

संपर्क सूत्र - 7744055544, 9079209336

 

फाँर्म भरने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करे👇👇

 



 

 



 









 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 





 

 





 





 


 



हाइकू 

हाइकू 

 

*मूकमाटी महाकाव्य रचयिता दिगम्बर जैन राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज इन दिनों  जापानी हायकू (कविता) की रचना कर रहे हैं।*

 

हाइकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है।

 

यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। 

 

महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लगभग 500 हायकू लिखे हैं, जो अप्रकाशित हैं। कतिपय हाइकू 

  

 

1 – जुडो ना जोड़ों, जोड़ों बेजोड़ जोड़ों, जोड़ा तो छोडो |

2 – संदेह होगा, देह है तो देहाती ! विदेह हो जा |

3 – ज्ञान प्राण है, संयत हो तो त्राण, अन्यथा स्वान |

4 – छोटी दुनिया, काया में सूख दुःख, मोक्ष नरक |

5 – द्वेष से बचो, लवण दूर् रहे, दूध ना फटे |

6 – किसी वेग में, अपढ़ हो या पढ़े, सब एक हैं |

7 – तेरी दो आँखें, तेरी ओर हज़ार, सतर्क हो जा |

8 – चाँद को देखूँ, परिवार से घिरा, सूर्य सन्त है |

9 – मैं निर्दोषी हूँ, प्रभु ने देखा वैसा, कर्ता रहता।

10 – आज्ञा का देना, आज्ञा पालन से भी, कठिनतम।

 

11 – तीर्थंकर क्यों, आदेश नहीं देते, सो ज्ञात हुआ।

12 – साधु वृक्ष है, छाया फल प्रदाता, जो धूप खाता।

13 – गुणालय में, एक आध दोष भी, तिल सालगे।

14 – पक्ष व्यामोह, लौह पुरुष को भी, लहू चुसता।

15 – पूर्ण पथ लो, पाप को पीठ दे दो, वृत्ति सुखी हो।

16 – भूख मिटी है, बहुत भूख लगी, पर्याप्त रहें।

17 – टिमटिमाते, दीपक को देख, रात भा जाती।

18 – परिचित भी, अपरिचित लगे, स्वस्थ्य ध्यान में (बस हो गया)।

19 – प्रभु ने मुझे, जाना माना परन्तु, अपनाया ना।

20 – कलि न खिली, अगुंली से समझो, योग्यता क्या है

 


संकलनकर्ता नन्दन जैन


जय श्रीकृष्ण 






जय श्रीकृष्ण 

 

कालचक्र जब विध्वंशक हो,

मानवता हो प्रभंजन कारी,

जहरीली ज्वाल बुझाने को,

तब आता है  एक अवतारी।

क्षमा,दया और दानशीलता,

उत्तम मार्ग अति हितकारी,

सृजन  करो ,ना भ्रमण करो,

घर मन्दिर ,बाहर बी मारी।।

 

डॉ तारा दीक्षित 


 

 



 



प्रेयर प्लेटफार्म  तैयार किया






प्रेयर प्लेटफार्म  तैयार

 

पुणे.. मे एक सोफ्टवेयर कंपनी के माध्यम से एक प्रेयर प्लेटफार्म  तैयार किया गया है। वर्तमान में करोना महामारी के संक्रमण से बचने और विश्व शांति के लिए  संतों ,गुरुओं  की प्रेरणा से और व्यक्तिगत रूप से भी अनेक प्रार्थना  जाप विधान पाठ आदि किए जा रहे हैं कंपनी अपनी वेबसाइट www.janjanyojan.com के द्वारा इन सब की जानकारी को एकत्रित कर रही है  सब  रिकार्ड वेबसाइट पर डाला गया हैं 

 सभी से अनुरोध किया जा रहा है कि शीघ्र ही  सब छायाचित्र सहित इन प्रयासो को वेबसाइट पर रजिस्टर करें और कराएं जिससे भविष्य में हमारे साधु-संतों , गुरुओं  एवम सभी के द्वारा विश्व शांति के लिए की गई प्रार्थनाओं  का उल्लेख किया जा सके और प्रमाणिक रिकॉर्ड भी रहे साथ ही सबको इसका गर्व भी रहे कि हमने घर रहते हुए अपने राष्ट्र धर्म को निभाया तथा पवित्र भावना से जन जन के कल्याण की मंगल कामना की ।


 

 



 



  *सुंदर हाथ *






        *सुंदर हाथ *

 

*बहुत समय पहले की बात है कुछ महिलाएं एक नदी के तट पर बैठी थी वे सभी धनवान होने के साथ-साथ अत्यंत सुंदर भी थी  वे नदी के शीतल एवं स्वच्छ जल में अपने हाथ - पैर धो रही थी तथा पानी में अपनी परछाई देख- देखकर अपने सौंदर्य पर स्वयं ही मुग्ध हो रही थी...तभी उनमें से एक ने अपने हाथों की प्रशंसा करते हुए कहा, देखो, मेरे हाथ कितने सुंदर है.. लेकिन दूसरी महिला ने दावा किया कि उसके हाथ ज्यादा खूबसूरत हैं तीसरी महिला ने भी यही दावा दोहराया... उनमें इस पर बहस छिड़ गई तभी एक बुजुर्ग लाठी टेकती हुई वहाँ से निकली उसके कपड़े मैले- कुचैले थे वह देखने से ही अत्यंत निर्धन लग रही थी उन महिलाओं ने उसे देखते ही कहा, “व्यर्थ की तकरार छोड़ो, इस बुढ़िया से पूछते हैं कि हममें से किसके हाथ सबसे अधिक सुँदर है.. उन्होंने बुजुर्ग महिला को पुकारा, “ए बुढ़िया, जरा इधर आकर ये तो बता कि हममें से किसके हाथ सबसे अधिक सुँदर है..बुजुर्ग किसी तरह लाठी टेकती हुई उनके पास पहुंची और बोली -मैं बहुत भूखी-प्यासी हूँ, पहले मुझे कुछ खाने को दो ,चैन पड़ने पर ही कुछ बता पाऊँगी... वे सब महिलाँए हँस पड़ी और एक स्वर में बोलीं -जा भाग, हमारे पास कोई खाना- वाना नहीं है ये भला हमारी सुँदरता को क्या पहचानेगी...*

*वही थोड़ी ही दूरी पर एक मजदूर महिला बैठी थी वह देखने में सामान्य लेकिन मेहनती और विनम्र थी उसने बुजुर्ग को अपने पास बुलाकर प्रेम से बैठाया और अपनी पोटली खोलकर अपने खाने में से आधा खाना उसे दे दिया फिर नदी से लाकर ठंडा पानी पिलाया,फिर उस मजदूर महिला ने उसके हाथ-पैर धोए और अपनी फटी धोती से पौंछकर साफ कर दिए इससे बुजुर्ग महिला को बड़ा आराम मिला  जाते समय वह बुजुर्ग उन सुँदर महिलाओं के पास जाकर बोली -सुँदर हाथ उन्हीं के होते हैं जो अच्छे कर्म करें तथा जरूरतमंदों की सेवा करें.. अच्छे कार्यों से हाथों का सौंदर्य बढ़ता है, आभूषणों से नही..।।*


 

 



 



धरती हमारी स्वर्ग से सुंदर









































धरती हमारी स्वर्ग से सुंदर

 

धरती हमारी स्वर्ग से सुंदर

नव-निधियों की खान मां

सहनशीलता का पाठ पढ़ाती

मिलजुल कर रहना सिखाती मां

अपरिमित सौंदर्य का सागर

अन्नपूर्णा, हमारी प्यारी मां

जन्मदात्री,सबका बोझ उठाती

पल-पल दुलराती,सहलाती मां

विपत्ति की घड़ी में धैर्य बंधाती

प्यार से सीने से लगाती मां

कैसे बयान करूं उसकी महिमा

शब्दों का मैं अभाव पाती मां

मानव की बढ़ती लिप्सा देख

रात भर वह आंसू बहाती मां

सरेआम शील-हरण के हादसे

उसके अंतर्मन को कचोटते मां

अपहरण, फ़िरौती के किस्से 

मर्म को भेदते,आहत करते मां

पाप,अनाचार बढ़ रहा बेतहाशा

विद्रोह करना चाहती घायल मां

मत लो उस के धैर्य की परीक्षा

 सृष्टि को हिलाकर रख देगी मां

 

आओ! वृक्ष लगा कर धरा को

स्वच्छ बनाएं,हरित-क्रांति लाएं

प्लास्टिक का त्याग करें हम

पानी को बचाने की मुहिम चलाएं

वायु-प्रदूषण बना सांसों का दुश्मन

नदियां का जल भी विषैला हुआ

 

पर्यावरण की रक्षा हित हम सब

मानसिक प्रदूषण को भगाएं मां

दुष्प्रवृत्तियां स्वत: मिट जाएंगी

ज़िंदगी को उत्सव सम मनाएं मां

 

डॉ• मुक्ता..


 

 



 



 













 











 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



सबसे कीमती धरोहर है प्रेम








































     

 

सबसे कीमती धरोहर है  प्रेम

 

प्रेम याने प्यार जिसको समझना मुश्किल है, लेकिन जिसने समझ लिया संसार की सबसे कीमती उपहार को पा लिया। ईश्वर के बाद इस दुनिया की सबसे कीमती धरोहर है वो प्रेम ही है।

 

लव का सही अर्थ अगर जानना चाहते हो तो एक छोटा सा पिन लिजिए , उस पिन से अपने हथेली पर छेद करने की कोशिश किजिए , ऐसा करते हुए आपको बहुत दर्द होगा लेकिन आप उस दर्द के बारे में मत सोचिए जिससे भी आप प्रेम करते हैं उसके बारे में सोचिए | उस समय जो भी अनुभव आपको होगा वह अनुभव आपको लव के बारे में अपना परिचय दे देगा |

 

     यूं तो इसकी कीमत कुछ नही सिर्फ एक मुस्कुराहट ही है, लेकिन ये मुस्कुराहट भी किस्मत वालो के मुख पर होती है।

 

     अक्सर लोग पहली नज़र में प्रेम को अनुभव करते है। फिर जैसे समय गुजरता है , यह कम और दूषित हो जाता हैं और घृणा में परिवर्तित होकर गायब हो जाता है। जब वही प्रेम वृक्ष बन जाता हैं जिसमे ज्ञान की खाद डाली गई हो तो वह प्राचीन प्रेम का रूप लेकर जन्म जन्मांतर साथ रहता है। 

 

प्रेम जो आकर्षण से मिलता है।

 

प्रेम जो सुख सुविधा से मिलता है।

 

दिव्य प्रेम।

 

प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं वह क्षणिक होता हैं क्युकी वह अनभिज्ञ या सम्मोहन की वजह से होता है। इसमें आपका आकर्षण से जल्दी ही मोह भंग हो जाता हैं और आप ऊब जाते है। यह प्रेम धीरे धीरे कम होने लगता हैं और भय, अनिश्चिता, असुरक्षा और उदासी लाता है।

 

जो प्रेम सुख सुविधा से मिलता हैं वह घनिष्टता लाता हैं परन्तु उसमे कोई जोश, उत्साह , या आनंद नहीं होता है। उदहारण के लिए आप एक नवीन मित्र की तुलना में अपने पुराने मित्र के साथ अधिक सुविधापूर्ण महसूस करते है क्युकी वह आपसे परिचित है। उपरोक्त दोनों को दिव्य प्रेम पीछे छोड़ देता है। यह सदाबहार नवीनतम रहता है। आप जितना इसके निकट जाएँगे उतना ही इसमें अधिक आकर्षण और गहनता आती है। इसमें कभी भी उबासी नहीं आती हैं और यह हर किसी को उत्साहित रखता है।

 

सांसारिक प्रेम सागर के जैसा हैं, परन्तु सागर की भी सतह होती है। दिव्य प्रेम आकाश के जैसा हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है। सागर की सतह से आकाश के ओर की ऊँची उड़ान को भरे। प्राचीन प्रेम इन सभी संबंधो से परे हैं और इसमें सभी सम्बन्ध सम्मलित होते है।

 

"प्रेम न शास्त्रों की परिभाषा में,

        न शस्त्रों  की   भाषा   मे....

 प्रेम   तो   मिल  जाता  है  बस,

एक दूजे के खुशियों की अभिलाषा में...!

 

 

प्रेम भिन्न होकर भी,

अभिन्न होने का नाम है।

प्रेम हृदय के सागर में,

गहरे डूब जाने का भाव है।।

 

खुद को डुबोकर भी, 

प्रेम पार हो जाने का नाम है।

टूटकर भी जो बिखर न पाए,

प्रेम उस अक्षुण्णता का नाम है।।

 

प्रेम काया के आकर्षण से परे,

पूर्ण समर्पण का भाव है!

प्रेम तो अपूर्ण होकर भी,

शून्य में संपूर्णता का भाव है।।

 

न भुला पाओ जिस एहसास को,

प्रेम उस माधुर्य का नाम है।

न मिटा पाओ जिसकी छवि,

प्रेम उस अमिट छाप का भाव है।।

 

आंखें बंद करके भी,

प्रेम महसूस कर लेने का नाम है।

मन से जब अर्थ-स्वार्थ हटा दो,

तो प्रेम उस आभाव का पैगाम है।।

 

"सच्चे प्रेम की कोई परिभाषा नही,

सच्चा प्रेम तो वही,

जहाँ कोई भी आशा नही!!"

 

     कल मिलते हैं, कुछ अपनी और कुछ दिल की बातों के साथ।

 

हँस जैन रामनगर खण्डवा

 

    


 

 











 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



 



क्या उत्तरकाण्ड रामचरितमानस में प्रक्षिप्तांश है ?








































क्या उत्तरकाण्ड रामचरितमानस में प्रक्षिप्तांश है ?

 

  -कमलेश कमल

 

 

 

"शील-शक्ति-मर्यादा के प्रकृष्टतम प्रमाण हैं राम।

ऐसे ही नहीं घर-घर पूजे  जाते हैं  प्रभु राम।।"

 

श्रीरामचरितमानस केवल एक महाकाव्यात्मक ग्रंथ ही नहीं है जिसके साथ धार्मिक आस्था सन्नद्ध है;  वरन् यह तो मनुष्य जाति के आत्यन्तिक शुभ की सम्यक् परिकल्पना है।

 

युग-युगांतर के लिए मनुष्य की स्मृति में अत्युत्तम आदर्श का प्रकाशस्तंभ हैं राम। चारित्रिक औदात्य, पूर्ण-चेतना, आलोचनात्मक विवेक एवं दार्शनिक मूल्यानुभूति के पूर्ण-परिपाक हैं श्रीराम।

 

मानस का सातवाँ काण्ड, उत्तरकाण्ड तुलसी की सर्जनात्मक कल्पना का वैभव भा-स्वर है। यह असाधारण अर्थ-गांभीर्य से युक्त है एवं लोकमंगल विधायिनी चेतना का ऊर्जस्वित् स्वर है।

 

यह विडम्बना ही है कि कतिपय विद्वान् इसे प्रक्षिप्तांश  बता रहे हैं। यद्यपि तर्क के धरातल पर ऐसी निष्पत्ति निर्मूल ही प्रतीत होती है, प्रत्युत तथ्यात्मक और तर्कपरक निकष पर इसे कसने से पूर्व समीचीन होगा कि अभिव्यक्ति के अर्क रूप में श्रीरामचरितमानस एवं उत्तरकाण्ड के संज्ञा-वैशिष्ट्य को देखें!

 

रामचरितमानस है   - राम के चरित को हर मानस में उद्भासित-अवस्थित करने का मानवता के इतिहास का सर्वोत्तम प्रयास! उत्तरकाण्ड है - राम के चरित स्थापन के आलोक में समवर्ती-सह-परवर्ती कालीन अवस्था की उच्छ्वासित अभिव्यक्ति एवं समष्टिगत चेतना का अनुस्यूत स्वर।

 

अब बिंदुवार रीति से देखते हैं कि कैसे उत्तरकाण्ड प्रक्षिप्त नहीं है  -

 

1. ध्यातव्य है कि रामचरितमानस 'श्रुति परम्परा' की कृति नहीं है। यह तो निर्विवाद है कि 16वीं सदी इस महान् ग्रंथ का रचनाकाल है। इसमें उत्तरकाण्ड के माध्यम से तुलसीदास ने राजनीतिक-पारिवारिक-सामाजिक-आध्यात्मिक जीवन के उच्च आदर्शों को प्रस्तुत कर विशृंखलित हिन्दू समाज को सूत्रबद्ध करने का महनीय प्रयास किया है। ऐसे में उस समय या उसके बाद की कोई विभूति इस महान् ग्रंथ में इसे जोड़ दे और उसकी कोई चर्चा, कोई नामोल्लेख कहीं न मिले- यह बात गले नहीं उतरती। उस समय के अनेकानेक विद्वानों की चर्चा लिखित में है, ऐसे में यह प्रक्षिप्तकार अनाम कैसे रह गया?

 

2. कहते हैं कि श्रीरामचरितमानस के एक दोहे या एक चौपाई की बराबरी कर लेना अगर असंभव नहीं तो अतिकठिन अवश्य है। ऐसे में इतनी चौपाई और इतने दोहे किसी और ने अज्ञात रहकर कैसे जोड़ दिया? पूर्वकालीन युग में यह संभव था, जबकि लेखन-परंपरा नहीं थी, लेकिन तुलसीदास के युग तक आते-आते परिस्थितियाँ बदल गई थीं। 

 

3.उत्तरकाण्ड में जो विषय हैं, वे अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं- भरत विरह, राम जी का स्वागत, राज्याभिषेक, रामराज्य का वर्णन, पुत्रोत्पत्ति, श्रीराम जी का प्रजा को उपदेश, शिव-पार्वती संवाद, गरुड जी के सात प्रश्न तथा काक भुशुण्डि जी के उत्तर। ये वे प्रसंग हैं जो कि रामचरितमानस की प्रासंगिकता को सर्वयुगीन बनाते हैं। जिस रामराज्य की हम कल्पना आज भी करते हैं, वह उत्तरकाण्ड में ही है। इसके बिना रामचरितमानस का मन्तव्य ही अधूरा रह जाता है। ऐसे में यह असम्भव प्रतीत होता है कि तुलसीदास जी से यह सब छूट गया जिसे किसी महान् पर अनाम कवि ने चुपके से जोड़ दिया, वह भी उनके लिखने के तुरंत बाद।

 

4.उत्तरकाण्ड को पढ़ते समय प्रवाह में कोई बाधा नहीं आती, काव्यात्मक औदात्य वही है, संवेदनात्मक अन्वेषण वही है, सब मौलिक है। सबसे बड़ी बात कि अभिव्यक्ति का कोई दुहराव नहीं है।

 

हर दोहे, हर चौपाई में सरस्वती-तत्त्व है। विचारणीय है कि रचनाकार के बदल जाने से यह युति कदापि नहीं बनती, कोई-न-कोई कमी रह ही जाती। कुछ-न-कुछ फाँक रह ही जाता। मानस के सुधी अध्येता यह जानते और मानते हैं कि उत्तरकाण्ड में भी सबकुछ उतना ही समृद्ध, उतना ही श्रेष्ठ है, पूर्ववर्ती काण्डों से यह इनमें से किसी स्तर पर यह कमतर नहीं है।

 

5.वस्तुतः उत्तरकाण्ड में आकर तुलसी ने परम्परित युगधर्म को नवीन वैज्ञानिक संदर्भ एवं दर्शन दे दिया है।

 

कलिवर्णन को देखें, तो यह बात स्फटिक की तरह स्पष्ट होती है। उस समय जो उन्होंने गर्हित सामाजिक मूल्यों का फैलाव देखा, उस पर उन्होंने लिखा और ख़ूब लिखा। वे प्रतिपादित करते हैं कि सभी कालखण्डों में चारों युगों के तत्त्व विद्यमान रहे हैं। किसी भी युग का सत्त्विक पुरुष सतयुग का है और कुत्सित व्यक्ति कलि का-

 

"सुद्ध तत्त्व समता विग्याना।

कृत प्रभाव प्रसन्न मन माना।।

सत्त्व बहुत रज कछु रति कर्मा ।

सब बिधि सुख त्रेता कर धर्मा।।

बहु रज स्वल्प सत्त्व कछु तमसा।

द्वापर धर्म हरष भय मनसा।।

तामस बहुत रजोगुण थोरा।

कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा ।।"

 

6.हम यहाँ देखते हैं कि यह कलिवर्णन मिथकीय या ऐतिहासिक कम है, वर्तमान कालिक अधिक है।

कहना चाहिए कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक घटनाओं और युगीन संस्कृतियों की जीवंत कथा है। यह तो तुलसीदास जी का वैचारिक गौरीशंकर है कि उन्होंने कराल कलिकाल के बारे में पहले ही लिख दिया। भूत और वर्तमान तो कोई भी लिख सकता है, जो भविष्य लिख दे, वही महान् ।

 

7.उत्तरकाण्ड में लेखकीय चिंतन का परिपाक किसी भी पूर्ववर्ती काण्ड से कम नहीं है। देखिए जब इसमें मनुष्य जीवन की गरिमा का सम्यक् महत्त्व बताया जाता है-

 

"बड़े भाग मानुष तन पावा।

सुर दुर्लभ सब ग्रंथहिं गावा।।

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा।

पाइ न तेहिं परलोक सुधारा।।"

 

इसी को गरुड -भुशुण्डि संवाद से और अधिक स्पष्ट किया। गरुड जी प्रश्न करते हैं-

"प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा।

सबसे दुर्लभ कौन सरीरा।।"

 

अब भुशुण्डि जी कहते हैं-

"नर तन सम नहिं कवनिउ देही।

जीव चराचर जाचत सेही।।

नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी।

ज्ञान विराग भगति सुख दैनी।।"

 

8.आगे लेखकीय दृष्टि देखिए कि इसमें न केवल मानव तन की महिमा का स्थापन हुआ है, अपितु इसके दुःख सुख एवं कारणों का समीचीन मूल्यांकन हुआ है-

 

"नहिं दरिद्र सम दुःख जग माँही।

संत मिलन सम सुख जग नाहीं।।"

 

अब इसी कड़ी में संत और असंत के लक्षण का निरूपण देखिए- 

 

"संत सहहिं दुःख पर हित लागी।

पर दुख हेतु असंत अभागी।।

भूर्ज तरु सम संत कृपाला।

पर हित नित सह बिपति बिसाला।।

सन इव खल पर बंधन करई।

खल कढ़ाई बिपत्ति सहि मरई ।।"

 

इन चौपाइयों के आलोक में प्रश्न उठता है कि क्या मानस की किसी भी चौपाई से इसका भाव अथवा शिल्प सौष्ठव कमतर है? नहीं, कदापि नहीं!

 

9.कोई लेखक किसी कृति में युग धर्म का निर्वहन न करे, यह कम ही होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने वस्तुतः इस काण्ड में वर्ण्य-विषय को युगबोध से जोड़ इसे विस्तृति दी है, उदाहरण के लिए इसी काण्ड में कलियुग  का हाल देखिए-

"कलिमल ग्रसे ग्रंथ सब लुप्त भए सदग्रंथ।

दम्भिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ।।

भये लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ ग्रंथ।

सुन हरिजान ज्ञाननिधि कहौं कछुक कलि धर्म।।"

 

10.निश्चय ही तुलसीदास का उद्देश्य कलि की कुचालि को दूर करने हेतु श्रीराम के विशद यश का प्रभावोत्पादक वर्णन करना है। इसमें राम कोरे आदर्शवादी नहीं हैं, विलुब्ध व्यवहारवादी भी नहीं हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उद्धारक रूप में हैं। यह राम उनके पूर्ववर्ती राम से भिन्न है। पूर्व में जिस राम को समन्वय के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण के रूप में वर्णित किया - चौदह वर्षों तक वनवास, दलित-शोषित-वंचित के साथ खड़ा दिखाया, शबरी के जूठे बेर खाता दिखाया, वृद्ध पक्षी जटायु को पिता तुल्य दिखाया, वानरों से प्रेम करते दिखाया,

इस काण्ड में आकर उन्हें प्रजापालक और कुशल प्रशासक के रूप में दिखाया। अगर इसे ही छोड़ देते, तो मानस के लोकग्रन्थ बनने का उद्देश्य ही पूरा नहीं होता।

 

11.भाव वैविध्य हो या शैली वैविध्य-सब पूरे मानस की भाँति उत्तरकाण्ड में भी विद्यमान् हैं।

 

शैली-वैविध्य को देखें, तो चरित्र-चित्रण, प्रबंध सौष्ठव, अलंकार-विधान, प्रकृति-वर्णन, दार्शनिकता, लाक्षणिकता, अवधी-ब्रज का प्रयोग, प्रसंगानुकूल संस्कृत का प्रयोग, अभिधा-लक्षणा-व्यंजना का प्रयोग, सब कुछ उसी तरह चला है जैसे पूर्व के काण्डों में। अगर शैली में कुछ भिन्नता है भी तो सुंदरकाण्ड से कम! तो इसे प्रक्षिप्त मानने से पहले सुन्दरकाण्ड को प्रक्षिप्त मानना पड़ेगा।

 

12.कोई भी रचना पूर्णतः निर्दोष नहीं होती, सर्वोत्तम रूप में भी कुछ-न-कुछ दोष रह ही जाता है।

 

अगर किसी बिंदु पर उत्तरकाण्ड में कुछ कमी निकाली जा सकती है, तब हर काण्ड में निकाली जा सकती है। इससे बचने के लिए क्या कोई यह तर्क दे देगा कि मानस जो आज है वह तुलसीदास की मूलप्रति है ही नहीं-जो कमी है, किसी और ने प्रक्षिप्त कर दी है।

 

13. वस्तुतः उत्तरकाण्ड ने श्रीराम के चरित्र को महत्तम ऊँचाई दी है। इसने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के दिव्य उदात्त चरित्र की शाश्वत प्रतिष्ठा करते हुए उन्हें महत्तम मानवीय त्याग, अनुपम प्रजारंजन, प्रबल और प्रखर उद्धारक, भक्त वत्सल, दीन हितकारी के साथ ईश्वरत्व की गरिमा से पूर्ण आराध्य रूप में प्रतिस्थापित किया। यही इसे चरित काव्य की दृष्टि से अत्युत्तम बनाता है तो यह प्रक्षिप्त कैसे हो सकता है? यह तो तुलसी के महनीय योगदान को कम कर आँकना होगा।

 

14.साहित्य मूल्यानूभूति की प्रक्रिया है और आलोचनात्मक विवेक इसकी व्यंजना को क्षिप्रता देता है। इस निकष पर  युगीन मूल्यों की विस्तृत पड़ताल उत्तरकाण्ड में है जो इसे महान् बनाता है। राजा कैसा हो, संत कैसे हों यह सब यहीं मिलता है। 'पंडित सोई जो गाल बाजवा' जैसे चुटीले उध्दरण हों, ज्ञान का संधान हो, या फ़िर सूक्तिपरकता की छटा और उद्धरणीयता की मोहक शैली - उत्तरकाण्ड में सब वैसा ही है जैसे अन्य काण्डों में। 

 

15. आर्ष परंपरा में महानायकीय अथवा दैवीय चारित्र्य हेतु 14 गुण बताए गए हैं-  सत्य, धर्म, प्रतिभा, कृतज्ञता, उदारता, चारित्र्य, अनसूया, सात्त्विक क्रोध, आत्मसम्मान, सर्वभूतहित, नीति अनुसरण, अक्रोध एवं वाग्मिता।

 

अगर इस निकष पर भी देखें तो किसी भी अन्य काण्ड की तुलना में उत्तरकाण्ड में नरश्रेष्ठ श्रीराम के सर्वाधिक गुणों का प्राकट्य हुआ है। ऐसे में इसे प्रक्षिप्त कहना सर्वथा अनुचित है।

 

उपर्युक्त बिंदुओं के आलोक में यह उद्भाषित होता है कि उत्तरकाण्ड श्रीरामचरितमानस का नवनीत है, इसकी मुकुट-मणि है। इसे प्रक्षिप्त कह देना कोई विवेकपूर्ण साहस नहीं, प्रत्युत इसकी गहराई से अपिरिचित हुए बिना विशुद्ध अटकलबाजी करना है।

 

"इति शुभम् !"

 


 



 



 













 










 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



मानवता आज देश से कैसे  मर गई 








































👉🏻 अवशेष मानवतावादी की 

महाराष्ट्र घटना पर आक्रोशित कविता ,

 

मानवता आज देश से कैसे  मर गई 

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फूट रहा जन जन का गुस्सा प्रश्न खड़ा है सत्ता पर।

थूक रहा है बच्चा बच्चा ऐसी पुलिस व्यवस्था पर।।

ये कैसी है पुलिस व्यवस्था बचा न पायी संतों को।

शैतानों के भीड़ तंत्र से छुड़ा न पायी संतों को।।

 

शैतानों का जमघट बेचारे संतों पर टूट पड़ा। 

निर्ममता से इन्हें पीटने हाथ सभी का छूट पड़ा।।

माँग रहे थे दया जान की हाथ जोड़ शैतानों से।

सोच रहे थे पुलिस बचा ले शायद इन हैवानों से।।

 

टूट गयीं सारी सीमायें बर्बरता के होने की।

दुष्टों ने सन्तों को दे दी सजा मौत में सोने की।।

दिल दहलाने वाले फ़ोटो और वीडियो कहते हैं।

इंसानों के चोले में शैतान यहाँ कुछ रहते हैं।। 

 

सन्तों की पावन धरती पर सन्तों की हत्या होना।

इससे बड़ा नहीं हो सकता और किसी दुख का रोना।।

इसे न समझे कोई जैसे साधारण सी हत्या है।।

मानवता की हत्या है यह मानवता की हत्या है।।

 

 अवशेष मानवतावादी 

 


 

 



 



 













 










 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



:-माँ का रूप*






 

 

*:-माँ का रूप*

 

 

नीतू बहुत परेशान थी,लोकडाउन की वजह से घर से बाहर तक निकलना उसकी माँ को मुनासिब न था।वह अपनी बहिन नीति के साथ ही दिनभर मस्त रहती थी,आवश्यकता पड़ने पर माँ के साथ घर के कामों में भी हाथ बटा लिया करती थी।इस तरह वह अपना लोकडाउन का समय व्यतीत कर रही थी।

         माँ प्रतिदिन की भांति आज भी उस पर अचानक झल्ला पढ़ी,तो नीतू से भी रहा न गया उसने भी आव देखा न ताव और माँ को प्रतिउत्तर देने लगी। दोनों की आपस में ठन गई।सोफे पर बैठे बाबूजी उनकी बातें सुनकर मन ही मन मुस्कुराने लगे। अंत में  उन्होंने प्रतिदिन की भांति अपना निर्णय देकर उन्हें शान्त किया। और सब अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए।

         माँ ने भोजन बनाकर तैयार किया।और सभी को आवाज दी आओ भोजन तैयार है, नीति और बाबू जी ने भोजन कर लिया पर नीतू भोजन करने न आई।माँ ने भी बेटी के भोजन न करने पर भोजन न किया।

        दोपहर में काम करते करते माँ को चक्कर आया,सभी डर गए।पड़ोस से डॉक्टर को बुलाया,उन्होंने देखा तो कहा खाली पेट होने की वजह से,कमजोरी सहन नही कर पाई अतः चक्कर आ गया।पर घबराने की कोई बात नही है।यह दवाई दे दो थोड़ी देर में सही हो जाएगी। डॉक्टर साहब चले गए।

    तो बाबू जी ने नीतू से कहा देख बेटी आज तूने नाराजगी से भोजन नही किया,तो तेरी माँ ने तेरे भोजन न करने से भोजन न किया,बेटी तेरी माँ तुझे दिल से बहुत प्यार करती है।उसे गलत मत समझा कर।इतना सुनते ही नीतू की आँखों से आंसू आ गए,त्याग,समर्पण और ममता की मूर्ति माँ का असली रूप उसकी पहचान में आ गया।वह माँ से लिपट गई और प्रेम के आंसू बहाने लगी।

       अंत मे उसने निर्णय किया आंगे से कभी भी माँ को परेसान नही करेगी, माँ जैसा कहेगी वैसा ही करेगी।

     और उसके बाद फिर कभी उसका माँ से झगड़ा नही हुआ।

 सभी मिलकर घर मे रहने लगे।और इस प्रकार शेष लोकड़ाऊंन के दिन भी अच्छे से व्यतीत होने लगे।

 

        

        *{शास्त्री दीपक जैन ध्रुव}*


 

 



 



जैन शास्त्रों में वर्णित रामायण सम्बन्धी कुछ तथ्य









































जैन शास्त्रों में वर्णित रामायण सम्बन्धी कुछ तथ्य*

 

 

 1. रावण, कुंभकर्ण, विभीषण, इन्द्रजित कोई राक्षस नहीं थे अपितु इनके वंश का नाम राक्षस था। ये सभी विद्याधर थे। ये सभी जिनधर्म के सच्चे अनुयायी, अहिंसा धर्म को पालन करने वाले थे। ये कोई मांस, मदिरा का सेवन नहीं करते थे। शिकार आदि नहीं करते थे।

 

2. रावण के जन्म का नाम दशानन था । जब रावण का जन्म हुआ था, तब उनके समीप एक हार था, जिसमें उनके 9 प्रतिबिंब और झलक रहे थे। इस कारण 9+1 = कुल 10 मुख दिखने से उनका नाम दशानन प्रसिद्ध हुआ। *उनके 10 मुख नहीं थे।*  रावण नाम तो बाद में पड़ा। रावण महा पराक्रमी, जिनेंद्र देव का परम भक्त और अनेक विद्यायों का स्वामी था। 

 

3. कुंभकर्ण छह मास नहीं सोते थे। वे सामान्य मनुष्य के समान ही सोते थे।

 

4. रावण तो भविष्य में तीर्थंकर होंगे । इंद्रजीत और कुंभकर्ण युद्ध में नहीं मारे गए, अपितु उन्होंने तो मुनि दीक्षा अंगीकार करके मोक्ष प्राप्त किया। वे तो हमारे भगवान हैं।

 

5. *यदि हम इनका पुतला दहन करते हैं या पुतला दहन देखकर खुश होते हैं, पुतला दहन देखने जाते हैं, तो हम महापाप ही कमाते हैं। भले ही पुतला जलाते हैं, परन्तु पाप को जीवित मनुष्य को जलाने के बराबर ही लगता है। और हम तो अपने ही भगवान को जलाते हैं। तो क्या ये सही है ? आप स्वयं सोचें।*

 

6. हनुमान, बालि, सुग्रीव, नील, आदि वानर नहीं थे, अपितु उनके वंश का नाम वानर वंश था। उनके मुकुट और ध्वजाओं में वानर का चिन्ह अंकित रहता था। इनकी कोई पूंछ नहीं थी और न ही इनका मुख बंदर जैसा था। ये सभी विद्याधर थे, इनको आकाश में गमन करने की विद्या प्राप्त थी।

 

7. हनुमान तो बहुत सुंदर कामदेव थे और उन्होंने मोक्ष को प्राप्त किया । 

 

8. रावण को लक्ष्मण ने मारा था राम ने नहीं; क्योंकि रावण प्रतिनारायण थे और लक्ष्मण नारायण। और नारायण ही प्रतिनारायण को मारता है - ऐसा ही नियम है।

 

9. राम-लक्ष्मण अहिंसा प्रधानी, जिनधर्मी थे। दोनों भाईयों में अत्यंत स्नेह था। राम बलभद्र हुए और उसी भव से मोक्ष प्राप्त किया । राम जी का दूसरा नाम *पद्म* था। 

 

10. जैसा कि जगत में प्रचलित है कि राम-लक्ष्मण हिरण का शिकार करने के लिए गए थे और तभी रावण ने सीता जी का हरण कर लिया था, यह बात सर्वथा असत्य है; अपितु राम-लक्ष्मण तो खरदूषण से युद्ध कर रहे थे, तभी रावण ने छल से सीता जी को हरण कर लिया था।

 

11. सुग्रीव के बड़े भाई बालि को रामचंद्र जी ने नहीं मारा था अपितु बालि ने तो बहुत पहले ही मुनिदीक्षा ले ली थी। 

 

12. हनुमान जी के जन्म का नाम श्रीशैल था । जन्म के उपरांत हनुमान जी को उनकी मम्मी के मामा आकाश मार्ग से विमान से अपने घर ले जा रहे थे। तब आकाश में विमान में खेलते हुए वे नीचे जमीन पर स्थित शिला पर गिर गये, जिससे शिला टूट गई और उनका नाम श्रीशैल पड़ गया। हनुरूह द्वीप में उनका जन्म उत्सव मनाया गया, जिससे उनका नाम हनुमान प्रसिद्ध हुआ।हनुमान जी पवनन्जय (पिता) और अंजना (माता) के पुत्र थे, पवन (वायु, हवा) के पुत्र नहीं।

 

13. हनुमान, बालि, सुग्रीव, नील, महानील, राम, रावण के इंद्रजित आदि अनेक पुत्र, कुंभकर्ण (रावण का छोटा भाई) आदि अनेक महापुरुष ने तो जिन दीक्षा लेकर महान तप द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। और सीता, मंदोदरी (रावण की पत्नी) , चन्द्रनखा (रावण की बहन) आदि ने आर्यिका दीक्षा ली।

 

14. सीता जी के युगल पुत्रों का नाम जैन ग्रंथों में लवण और अंकुश मिलता है। जिसे हम लोग लव और कुश के नाम से जानते हैं।

 

15. रामायण का मुख्य रूप से विस्तार पूर्वक वर्णन *आचार्य रविषेण स्वामी द्वारा रचित पद्मपुराण* में मिलता है।


 

 



 



 













 











 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



कैसा आया ये रोग...?









































देख रही हूँ...बहुत दिनो से..

वीरान...सुनसान ..मेरा वृंदावन पार्क,

नहीं दिख रहा कोई..इसके आस पास।

जहाँ गाहे बगाहे ,अक्सर दिख जाते थे,

चहल क़दमी करते लोग...

कैसा आया ये रोग...?

जो लील गया इसकी सारी रौनक़,

खेलते बच्चों के नज़ारे...मनमोहक।

रंग बिरंगी पोशाकों में...

चहल क़दमी करती नारियाँ,

हाथों में हाथ लिए,बना कर टोलियाँ।

रोज़ कुछ नया करने का इरादा,

बाय बाय कर ...

कल फिर आने का वादा।

टहलना कम,बातें ज़्यादा।

त्योहारों की बातें,वो बाइयों के क़िस्से,

दावतों का इरादा,पकवानो के  हिस्से।

नहीं दिख रही,वो हँसी,चहचहाहट ,

सुनाई नहीं दे रही,खिलखिलाहट।

तितली सी उड़ती..नहीं दिखती बच्चियाँ,

बंद पड़ी हैं..आसपास की खिड़कियाँ।

मुरझाए से फूल...उदास सी कलियाँ,

सूनी पड़ी हैं...आस पास की गलियाँ।

सोच रही हूँ....बैठ बंद कमरों में,

इक दूजे को मिलने को तरस रहे है,

पर इन छोटी छोटी चीज़ों का...

मोल समझ रहे हैं।

ख़ाली पड़े बैंच...आज बेकार हैं,

उन्हें भी किसी का इंतज़ार है।

कुछ बैंचो पर ...पुरुषों का अधिकार है, 

राजनीति की बातें है,पूरा अख़बार हैं।

वो बुज़ुर्गों की बातें, ज़ोरों के ठहाके,

घरों में सब क़ैद...नज़र नहीं आते।

जो जी रहे हैं..वही सत्य है,

इस डर का अपना महत्व है।

ज़रूरी है अपने आप को रोकना,

जब तक ना हो कोई घोषणा।

क़ुदरत के आगे..हम कल भी ज़ीरो थे,

आज भी ज़ीरो हैं,समझनी होगी ये बात।

क़ुदरत ने दिखा दी,हमें अपनी ओकात।

विद्रोह,क्रोध,खीज की तीखी लहर,

पूरे शरीर को कपकपा रही है।

पर ये चुनौती भी हमें,कुछ सिखा रही है।

घरों में क़ैद हैं,पर सब अपने से लग रहे है,

कभी आत्मकेंद्रित थे....

अब सामाजिक हो गए है।

कहने को दूर हैं,पर परिवार बढ़ गया है,

जिनको भी जानते हैं....

घर का सा हो गया है।

ये सुख की जड़ें हैं,इनको ही सींचना है,

इम्तिहान का वक़्त है...

हमको ही जीतना है।

ज़िंदगी का पहिया....

फिर उसी रफ़्तार से घुमाने को,

रखना होगा दिल बड़ा..विश्वास कड़ा,

वक़्त  आया है, ख़ुद को समझाने को। 

आँख खुलने से लेकर,आँख बंद होने तक ,

रहना है मुस्तैद,बंद कमरों में क़ैद।

हर पल ठहरी हुई सी ज़िंदगी,

किसी भी क्षण ,मौत से सामना।

हे परमात्मा....सुन लो मेरी प्रार्थना।

संसार के सारे रोग हर लो,

मेरे देश को..रोग मुक्त,दोष मुक्त कर दो,

आशा टूटने ना पाए.,हर जीव में प्रेम भर दो।

हर जीव.....तुम्हारी ज़िम्मेवारी,

ख़त्म कर दो.....ये महामारी।

फिर चलें संग संग....

ज़िंदगी के बदलें रंग।

ए मेरे वृंदावन पार्क..मत हो उदास।

एक बार इस विषाणु पर विजय पाने दे,

फिर आएँगे,तेरा आँगन महकाएँगे।

हर त्योहार....वही मनाएँगे।

——.....———....कमलेश शर्मा..


 

 



 



 













 











 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



एक कहानी- रक्तबीज कोरोना महामारी 








































एक कहानी- रक्तबीज कोरोना महामारी 

 

आओ सुनाऊं ........

तुम्हें कहानी ऐसे महा विनाश की ,

कोई देश बच ना सका ,

उस रक्तबीज कोरोना की ऐसी मार थी।

 

आओ सुनाऊं ......तुम्हें कहानी ऐसे महा विनाश की ,

 

छूने से ही फैल गया ,

एक देश से दूसरे देश गया ।

लाखों को ही मार गया।

 भय का कर ,ऐसा संचार किया।

 

 जीवन पर ऐसा वार किया।

 उस रक्तबीज कोरोना ने हर कहीं विनाश किया ।

 

अर्थव्यवस्था पर घात किया ।

धर्म भी ना बच सका इससे, इंसानियत पर ऐसा आघात किया।

 

 आओ सुनाऊं .......... तुम्हें कहानी ,

ऐसे महाविनाश की ,कोई देश बच ना सका। 

उस रक्तबीज  कोरोना की ऐसी मार थी ।

 

लोगों को घर में बंद किया ।

गरीबों को बेघर किया ।

खड़ी फसल सड़ गई खेतों में,

 मेहनत को बेरंग किया ।

 

आओ सुनाऊं..... तुम्हें कहानी ।

ऐसे महाविनाश की,

कोई देश बच ना सका ।

उस रक्तबीज कोरोना की ऐसी मार थी।

 

 

 एकजुट  होकर विश्व खड़ा था।

 रक्तबीज कोरोना हर कोई लड़ा था।

 

 

 प्रीति शर्मा असीम

 नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश

 





 


 



 



 













 










 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 


त्रिलोक तीर्थ में सबसे बड़ा आइसोलेशन हब

त्रिलोक तीर्थ में सबसे बड़ा आइसोलेशन  हब


सोफ्टवेयर कंपनी ने बनाया एक प्रार्थना प्लेटफॉर्म 





 







पुणे.में सोफ्टवेयर कंपनी ने बनाया एक प्रार्थना प्लेटफॉर्म 

 

पुणे मे एक सोफ्टवेयर कंपनी के माध्यम से एक prayer platform तैयार किया गया है। वर्तमान में करोना महामारी के संक्रमण से बचने और विश्व शांति के लिए साधु साधुओं की प्रेरणा से और व्यक्तिगत रूप से भी अनेक प्रार्थना  जाप विधान पाठ आदि किए जा रहे हैं कंपनी अपनी वेबसाइट www.janjanyojan.com के द्वारा इन सब की जानकारी को एकत्रित कर रही है संतो के द्वारा और स्वयं के द्वारा की जा रही प्रार्थना का रिकार्ड

 वेबसाइट पर डाला गया हैं   सभी से अनुरोध किया जा रहा है कि शीघ्र ही  सब छायाचित्र सहित इन प्रयासो को वेबसाइट पर रजिस्टर करें और कराएं जिससे भविष्य में हमारे साधु-संतों एवम सभी के द्वारा विश्व शांति के लिए की गई प्रार्थनाओं  का उल्लेख किया जा सके और प्रमाणिक रिकॉर्ड भी रहे साथ ही सबको इसका गर्व भी रहे कि हमने घर रहते हुए इस सँकट के समय कितना मानवीय दायित्व का निर्वहण  किया।ःःः


 

 



 






 



महासभा के माध्यम से भोजन सामग्री का वितरण 









































 

महासभा के माध्यम से भोजन सामग्री का वितरण 

 

 

जैन समाज  की प्राचीन संस्था दि 0 जैन महासभा के माध्यम व श्री निर्मल कुमार जी सेठी के मार्गदर्शन मे पूरे भारत में  भोजन सामग्री का वितरण का काम टीम लीडर के सहयोग से हो रहा है वे  बहुत कठिन परिस्थितियों में जो  सदस्य  काम कर रहे है वे  सामान्य नहीं बल्कि समाज के प्रतिष्ठित परिवार से है किसी ने एक दुसरे का चेहरा नहीं देखा परन्तु महासभा नाम का एक विश्वास व सबके मन में अपना साधर्मी भाई व उसका परिवार भूखा न रहे ये लक्ष्य लेकर चले तो कारवाँ बनता चला गयाकार्यकर्ता   देश के हर कोने में पहुँचने का प्रयास कर रहे है देश के हर कोने से  सुचना आ रही है हर दिन २५० से ३०० परिवार की ओर से सहायता की माँग आती है जो कम साधन व कम कार्यकर्ताओं के बावजूद  पू री करने का प्रयास कर रहे है  दक्षिण भारत जैन धर्म स्थान ४०० किट पहुँचाने का संदेश आया  इस पर निर्णय लिया जा रहा है  सामग्री भी पहुँचानी व आन लाईन पेमेंट भी करना है व दुर दराज गाँव में सामग्री पहुँचाने के लिये टीम लीडर व कहीं पर महिला कार्यकर्ता अपने पति से स्कूटर पर बैठाकर सामने पहुँचाने का काम कर रहे हैं .भरत कासलीवाल  ,जमनालाल जी हपावत ,संदीप जैन  आदि पूर्ण निष्ठां से लगे हुए है। 

  चित्रकूट २ किट 

इलाहाबाद २ किट 

कटरा   ५ किट 

खजोहरी २ किट 

प्रतापगढ़ 1किट

इलाहाबाद १ किट 

फ़िरोज़ाबाद उत्तर प्रदेश १७ किट 

 इतने लोगो तक किट पहुचाने का कार्य हो गया 14/4/2020 तक

Muzaffarnagar (UP)

12.4 me 19 किट 

13.4 me  20किट 

14.4 me  28 किट 

Total 67 किट 

बुंदेलखंड टीम 3 किट 

Sandip jain gurgaon

 २ किट 

Aurangabad  महाराष्ट्र में ९ किट 

महावीर जी ठोले ने 

Sunanda Jain 

Delhi Mai  kal 5aaj  9 kit bheje hai.कुल १४ किट 

जोधपुर में दवाई पहुँचाने का काम हमारे संयोजक श्री संदीप जी जैन 

मै उ० प्र० का लीडर

आज दो किट मेडिसन द्वारा 

दिया गया 

(1)कानपुर 

(2)प्रतापगढ़

Kolhapur और कुम्भोज बाहुबली के 45 किट

मुंबई टीम द्वारा आज तक कुल १२ कीट वितरित की गयी हैं। 

7 tardev navin bhai ne di 

1 parel

2 bhayander

डोंबिवली 

अंधेरी 

कमाठीपुरा 

ये सुरेश जी बंबोरिया, मुम्बई

आज इनका जन्मदिन है, लेकिन वो सब छोड़ के मुम्बई में अपनी योजना द्वारा लोगो को मदद पहुचा रहे है।

उनके इस जज़्बे को सलाम ।

ऐसे कार्यपसन्द लोग हो तो देश मे कोई जैन भाई भूखा नही रह सकता

साथी हाथ बढ़ाना

केकडी राजस्थान ४ किट 

D A Patil से बात हुई सांगली महाराष्ट्र के चार गाँव में ५० किट दी 

चिकुडी कर्नाटक मे ५० किट दी 

कोलहापुर में १२०  किट आज तक मिलाकर २२० किट का वितरण किया 

कारंजा महाराष्ट्र २ किट 

सागर मध्यप्रदेश १ किट 

गुलबर्गा कर्नाटक  १५ किट

अमरावती महाराष्ट्र ७ किट हमारे अमरावती के टीम लीडर सागर सव्वालाखे में शहर से *15 किमी दुर अपनी टु व्हीलर से जाकर हमारे उस भाई को राशन पहूँचाया है, जिसके गांव में राशन की दुकान भी नहीं थी,* उपर चित्र में उनका घर देखे । सागर भाई को बहोत बहोत साधुवाद....

नासिक ८ किट

भोपाल में अनिल जी १ किट 

इंदौर में १६ किट 

मै उ० प्र०  ,का टीम लीडर हूँ

 मै आज 15/4/2020 को कानपुर के एक समाज के घर में अर्जेन्ट आपरेशन होना था जो कि मै हेड आफिस महासभा से बात करके उनको तुरन्त मदद करने के लिये है कर दिया और उस परिवार ने महासभा को बहुत आभार है 

 अशोक जी सेठी ने बताया बेंगलुरु में ९ किट दी

उदयपुर ज़िले राजस्थान में महेश जी गडीया ने १६ किट दी  

जयपुर १ किट 

बेलगाम कर्नाटक ८ किट 

लातूर महाराष्ट्र २४ किट

2 kit mukesh jain ahmedabad

आज 3किट दिए Aurgabad में भारती बाकलीवाल

 भारतीजी बाकलीवाल ने औरंगाबाद में एक महिला के घर किट पहूंचाई। विशेष बात है कि वे महिला होकर खुद अपनी गाडी पर किट लेकर गई और जिन्हें दिया उस 70 वर्ष की महिला को कँन्सर है, आप साथ के फोटो में उनके घर की स्थिति भी देख सकते हो। 

धन्यवाद भारतीजी आपकी मेहनत के लिए...

Today 6 kits distributed in Kolhapur and 5 in Bangalore....

हाथरस मे 10 किट वितरित की है इस तरह ये समाचार अभी रात में  लिंखते समय तक किट वितरण सुचना आ रही है यह सब समाज के सहयोग से ही संभव हो रहा है j


 

 



 



 













 











 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



ज्ञान वर्धक प्रसंग...








































बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक प्रसंग...

 

*पहली बात: हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है :- ''प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''।*

 

*भगवान बोले :- वो कैसे ...?*

 

*हनुमान जी बोले :- वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी है, मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया।*

*कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए।*

*उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा।*

*सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।*

 

*🔥शिक्षा :- 🔥*

*हम भगवान का नाम तो लेते है पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी है तो अपने पुत्रो एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा।*

*उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है वे है, पर हम भरोसा नहीं करते।*

*बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है।*

 

*🔥दूसरी बात प्रभु...! 🔥*

 

*बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ।*

*मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।*

 

*🔥शिक्षा :- 🔥*

*हमारी भी यही सोच है कि, अपनी गृहस्थी के बोझ को हम ही उठाये हुए है।*

*जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है।*

 

*जीवन के प्रति जिस व्यक्ति कि कम से कम शिकायतें है, वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।*

 *🔥जय श्री सीताराम जय श्री बालाजी🔥*

 

*ये राम नाम बहुत ही  सरल सरस, मधुर ओर अति मन भावन है मित्रो----- जिंदगी के साथ भी ओर जिंदगी के बाद भी*

 

 

*हंस जैन 


 



 



 













 










 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



पशुओं के लिए भोजन












पशुओं के लिए भोजन

श्री  दिगम्बर  जैन  सिद्ध क्षेत्र खंडगिरि उदयगिरि  (कोटिशिला )  भुबनेश्वर  (ओड़िशा ) के भोजनशाला  की  तरफ से निरंतर लॉक डाउन मैं दोनों टाइम (सुबह, शाम )पशु  पक्षी  गाय  लंगूर  आदि  जानवरो  के लिए भोजन की व्यवस्था की जा  रही है**

 

 



 








कोविड -19 ,रामचरित मानस (गोस्वामी तुलसीदास ) में व्याख्यायित









































*जिस भी मानस मर्मज्ञ ने यह अन्वेषण किया है वह धन्य है 

 

*COVID-19* ,

*GOSWAMI TULSIDAS* and  *SHRI RAMCHARIT MANAS*

 interpretation.......

 

"राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥

सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥3॥"

 

इन दिनों COVID-19 की रोकथाम के विषय में मैंने काफी पढ़ा , कई वाइरोलोजी की पुस्तकों से और अन्य माध्यमो और अनुसंधानों से यह पता चला की  यह  महामारी चमगादडो से मनुष्यों  में फैली है| यह ही पता चला कि इस वाइरस की रोकथाम तीन चीज़ों से की जा सकती है -

 

१. UV-C radiation

2. Soap water  sanitization

3. heat near boiling point 

 

आज फैली इस महामारी के विषय में पढ़ते हुए दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण भी देखता रहा , बाद में अचानक ऐसी प्रेरणा हुई रामचरित मानस पढ़ी जाए , संयोगवश कहें या इश्वर अहैतुकी कृपा , जब रामचरित मानस को खोला तो उत्तरकाण्ड का  दोहा १२० वाला पृष्ठ खुला पढना शुरू किया  तो आश्चर्य चकित था     

 

गोस्वामी तुलसीदास जी इस महामारी के मूल स्रोत चमगादड के विषय में उत्तरकाण्ड दोहा १२० (14)  में वर्षो पहले की बता गये थे जिससे सभी लोग आज दुखी है :- 

 

"सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥

सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दु:ख पावहिं सब लोगा॥14॥"

 

The fools who censure all, are reborn as bats. Note now, dear Garud, the diseases of the mind, from which everyone suffers.

 

इस महामारी के लक्षणों के बारे में वे आगे लिखते हैं जिसमे उन्होंने ये बता ही दिया है की इसमें कफ़ और खांसी बढ़ जायेगी और फेफड़ो में एक जाल या आवरण उत्पन्न होगा या कहें lungs congestion जैसे लक्षण उत्पन्न हो जायेंगे , देखिये -

 

"मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।।15||

 

Infatuation is the root of all ailments and from these again arise many other troubles. Lust is a counterpart of wind and inordinate greed corresponds to an abundance of phlegm; while anger represents bile, which constantly burns the breast.

 

गोस्वामी जी इसके आगे ये भी बताते हैं की इनसब के मिलने से "सन्निपात " या टाइफाइड फीवर होगा जिससे लोग बहुत दुःख पायेंगे -

 

प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।।

बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना।।16||

 

When all these three combine, there results what is known as Sannipåta (a derangement of the aforesaid three humours of the body, causing fever which is of a dangerous type).

 

जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।19||

 

Thirst for enjoyment represents the most advanced type of dropsy; while the three types of craving (those for progeny, riches and honour) correspond to the violent quartan ague.

Jealousy and thoughtlessness are the two types of fever. There are many more fell diseases, too numerous to mention.

 

"quartan ague" shows the symptoms of maleria ....

 

आज शायद यही कारण है की "Hydroxychloroquine" जो की मलेरिया की दवा है इसका प्रयोग सभी लोग करने लग गए  हैं ...

 

और इसके आगे लिखते हैं :

 

"एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।

पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥121 क॥"

 

People die even of one disease; while I have spoken of many incurable diseases which constantly torment the soul. How, then, can it find peace?

 

जब ऐसी एक बीमारी की वजह से लोग मरने लगेंगे , ऐसी अनेको बिमारियां आने को हैं ऐसे में आपको कैसे शान्ति मिल पाएगी ???

 

"नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान।

भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान॥121 ख॥"

 

नियम, धर्म, आचार (उत्तम आचरण), तप, ज्ञान, यज्ञ, जप, दान तथा और भी करोड़ों औषधियाँ हैं, परंतु इन सब से  ये रोग जाने वाले नहीं  है....

 

There are sacred vows and religious observances and practices, austere penance, spiritual wisdom, sacrifices, Japa (muttering of prayers), charity and myriads of other remedies too; but the maladies just enumerated do not yield to these, O mount of ›r∂ Hari. (121 A-B)

 

इन सब के परिणाम स्वरुप क्या होगा गोस्वामी जी लिखते हैं :-

 

एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥

मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥1॥

 

इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व के जीव  जीव रोग ग्रस्त हो जायेंगे , जो शोक, हर्ष, भय, प्रीति और अपनों के वियोग के कारण और दुखी होते जायेंगे । गोस्वामी जी किहते हैं की मैंने ये थो़ड़े से मानस रोग कहे हैं। ये हैं तो सबको, परंतु इन्हें जान पाए हैं कोई विरले ही॥1॥यानि सबी में थोडा बहुत तो सभी में होगा पर बहुत कम लोगों को  ही ठीक से detect भी हो पायेगा ...

Thus every creature in this world is ailing and is further afflicted with grief and joy, fear, love and desolation. I have mentioned only a few diseases of the mind; although everyone is suffering from them, few are able to detect them.

 

आज हम देख की रहे हैं की इस जगत की बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इस रोग से ग्रसित होती जा रही है , इसमें आम लोगों की बात ही क्या की जाए ..इस विषय के बारे में भी गोस्वामी जी ने पहले से लिख  दिया था -

 

जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।

बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।।

 

प्राणियों को जलाने वाले ये पापी (रोग) जान लिए जाने से कुछ क्षीण अवश्य हो जाते हैं, परंतु नाश को नहीं प्राप्त होते। विषय रूप कुपथ्य पाकर ये मुनियों के हृदय में भी अंकुरित हो उठते हैं, तब बेचारे साधारण मनुष्य तो क्या चीज हैं॥2॥

These wretches, the plague of mankind, diminish to a certain extent on being detected, but are not completely destroyed. Fed by the unwholesome diet of sensuality they sprout even in the mind of sages, to say nothing of poor mortals

 

यानी रोग पहचान लिए जाने पर या रोग के लक्षणों द्वारा रोग की पुष्टि हो जाने पर उन लक्षणों का इलाज किये ज

हम यदि देखे तो चाइना में जो लोग ठीक हो कर घर चले गये उनमे भी कुछ दिनों बाद पुनः इस रोग के होने की पुष्टि  हुई वो भी कईयों को तो बिना लक्षणों के ....

 

अब सभी ये जानना चाहेंगे की इससे महामारी से हमे मुक्ति कैसे  मिलेगी  -- तो इस विषय पर गोस्वामी जी लिखते हैं -

 

"राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥

सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥3॥"

 

रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥

एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं॥4॥

 

All these ailments can no doubt be eradicated if by Shri Rama's grace If the following factors combine.

1. There must be faith in the words of the physician in the form of a true preceptor; and

 

2. The regimen is indifference to the pleasures of sense. 

 

Devotion to the Lord of the Raghus is the life-giving herb (to

be used as a recipe); while a devout mind serves as the vehicle in which it is taken. By this process the ailments can certainly be eradicated; otherwise all our efforts will fail to get rid of them. The

 

यदि श्रीराम जी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो॥3॥

 

श्री रघुनाथजी की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते॥4॥

 

"जय श्री राम "

💐🙏

- साभार .........

 

 डॉ "अरुण" जी द्वारा प्राप्त 


 

 



 



 













 











 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 







 

 

 



 

 

 



 

 

 


 


 

 

 







 

 





 





 


 



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