अपनों से अपनी बाते
हंस जैन
हर इंसान आज यही सोच रहा की कल क्या होगा, क्या कल प्रलय आयगा, क्या हम जिंदा रह पाएंगे। क्या समस्याओं का अंत हो जाएगा।
लेकिन जब इंसान के उपर कोई समस्या नहीं आती तो सबसे पहले वह भगवान को भूल जाने की कोशिश करता है।
इंसान समस्या आने पर ही भगवान को याद करता है। आइए इस कथा से हम समझते है।
एक बार गौतम बुद्ध से एक व्यक्ति ने पूछा कि भगवान् आप दिन रात हजारों लोगोंको उपदेश देते रहते हैं पर जिज्ञासा वश पूछना चाहता हूँ कि आप के प्रवचनों से कितनेलोग मुक्ति को उपलब्ध हुए हैं तो बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे इस प्रश्न का जवाब अवश्यदूंगा पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। एक डायरी और पेन लेकर गाँव में जाओ औरप्रत्येक व्यक्ति से उसकी एक इच्छा पूछो और उसे लिखकर ले आओ। वह व्यक्ति गाँवमें गया और एक-एक व्यक्ति से उसकी इच्छा पूछकर उसे लिखने लगा।
किसी ने पुत्र-प्राप्ति की इच्छा तो किसी ने उत्तम स्वास्थ्य की, किसी ने धन-संपत्ति की तो किसी नेऊँचे पदों की इच्छाएं जताई। शाम तक वो युवक सभी की इच्छाएं पूछकर बुद्ध के पासआया और बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा।
बुद्ध ने कहा कि देखा तुमने! तुमनें इतनें लोगोंसे उनकी एक-एक इच्छा पूछी हैं पर किसी नें भी मोक्ष की, ध्यान की या परमात्मा कीइच्छा नहीं जताई। स्वयं भगवान् भी आकर यदि लोगों से कुछ मांगने को कहें तो भीलोग परमात्मा से परमात्मा नहीं , बल्कि संसार ही मांगेंगे।
लोग चेतना के जिन निम्नतलों पर आज हैं उससे ऊपर उठने की प्यास तो उन्हें स्वयं ही अपने भीतर लानी होगी।लोग जंजीरों को आभूषण समझे बेठे हैं और आभूषणों को अज्ञानवश जंजीर बना बेठेहैं। लोगों को होश लाना ही होगा । समझ विकसित करनी ही होगी। जैसे जैसे होश औरबोध सधता जाएगा इस पार्थिव देह में चेतना का ज्वार उर्ध्व गमन को उपलब्ध होताजाएगा।
परमात्मा तो वही देता हैं जो तुम्हारी चाहत हैं ये तुम पर निर्भर है कि तुमउससे क्या मांगते हो। पहले उन लोगों को देखो कि जिन्होनें संसार माँगा है क्या उन्हेंसंसार मिल गया है चाहे वो सिकंदर हो या हिटलर ।
सीख - एक बार हमें भी अपने आप से पुछना है की हमारी इच्छा क्या है ?
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