भावना योग

मन को प्रसन्न रखें पूरा शरीर ढीला छोड़ दें


ॐ की ध्वनि लंबी सांस अंदर से बाहर की ओर छोड़ते हुए 3 बार ॐ बोले।

मुंह बंद करके अनुगूंज की स्थिति में ॐ की ध्वनि 3 बार करें। अनुमोद

हे प्रभु आपके चरणो में कोटि कोटि नमन ,कोटि कोटि वंदन, कोटि-कोटि आभार। (तीन बार)

हे प्रभु आपकी कृपा से मुझे जीवन का यह नया दिन मिला।

हे प्रभु मुझे ऐसी शक्ति दे कि आज के इस दिन को अच्छा दिन बना सकूं।

हे प्रभु सब का दिन अच्छा हो मेरा दिन अच्छा हो ।आज का दिन सबका अच्छा दिन बने। (यह तीन बार बोलें)

सबकी रक्षा हो ,सभी निरामय हों , सब जन निर्भय हो। निर्भयोSहं।

हे प्रभु सबका मंगल, हो सब जग का मंगल हो,सब जन का मंगल हो।

हे प्रभु सबकी रक्षा हो , सभी निर्भय हो, सभी निरामय हो , नि२भेोsहं ।

सर्वत्र शांति हो,सब में शांति हो, जग में शांति हो।

हे प्रभु सभी स्वस्थ रहें।

हे प्रभु सभी खुश रहें ,सभी स्वस्थ रहें ,सब में शांति हो ,सभी सुरक्षित रहें ,सबकी रक्षा हो , सब जग निर्भय हो, जग में शांति हो,जग का मंगल हो, सभी निरोगी हो, सभी पसन्न रहे, सबका मंगल हो।
(9 बार पढ़े)

हे प्रभु मैं अपनी सभी बुरी स्मृतियों का परित्याग करता हूं

हे प्रभु बीते दिन में मैंने जो कुछ भी में से बुरा सोचा हो,बुरा बोला हो अथवा जो भी बुरा कहा हो उसका मुझे घोर पश्चाताप है। मैं उसकी निंदा करता हूं, आलोचना करता हूं और उसका परित्याग करता हूं।

हे प्रभु मेरे द्वारा बुरा बोलने में ,बुरा सोचने में, बुरा कहने में जिस किसी को कष्ट पहुंचा हो तो मैं उनसे क्षमा मागता हूं, मै सभी को क्षमा करता हूं । वे भी मुझे क्षमा करें,में अपने मन की गाठे खोलता हूं। सभी मेरे मित्र है, मेरा मन पवित्र है।

हे प्रभु मेरे दुष्कृत्यों के कारण प्रकृति में जिस किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट पहुंचा हो ,उनसे मैं क्षमा मांगता हूं और वे भी मुझे क्षमा करें ।

सभी से मेरी मैत्री है, सभी की मुझसे मेत्री है।

सबसे मेरा प्रेम है, सभी का मुझसे प्रेम है, में प्रेम पूर्ण हूं।

सभी मेरे मित्र हैं ,मेरा मन पवित्र है, मैं पवित्र आत्मा हूं ,पवित्रोSहं।

स्वस्थोsहं मेरा अंग अंग स्वस्थ और सरल है, ।

सबलोsहं, मेरा अंग अंग सबल है

शांतोsहं मै शांत हूं।

हे प्रभु मै पवित्र मन से विश्व की समस्त सकारात्मक शक्तियां और स्मृतियों का पवित्र ह्रदय से आव्हान करता हूं ।

हे प्रभु विश्व की समस्त सकारात्मक शक्तियां घनीभूत होकर मेरे भीतर प्रवेश करें।

हे प्रभु ऊर्जा की यह समस्त सकारात्मक उर्जा (धार )मेरे मस्तिष्क में बादल (नीली धारा) की तरह प्रवाहित हो रही है मै इसे महसूस कर रहा हूं ये ऊर्जा की अविरल धार प्रवाह होकर गर्दन ,कंधों, ह्रदय ,पैर ,पीठ ,छाती , हाथ , पैर,कमर ,फेफड़े एवं समस्त अंगो में एक साथ ऊर्जा एक-एक अंग में प्रवाहित हो रही है, हमारे शरीर में प्रवेश होकर हमारा शरीर ब्रम्हांड की सारी शक्तियों और ऊर्जा का पिंड बन गया है ।, अपने अंदर इस ऊर्जा को समाहित करें।हमारा समस्त शरीर शक्तिमान और ऊर्जावान हो गया है।(शरीर के जिस अंग में जहां भी दर्द हो या कोई तकलीफ़ है उस हिस्से में लाल रंग महसूस करे। मेरा huminity पावर मजबूत हो गया 72 हजार धमनियों में ऊर्जा भर गई, मेरे शरीर का पूरा दर्द चला गया है।महसूस करें।

मेरा मन शांत हो'' सभी शांत हो . सर्वत्र संतुष्टि हो।

मै ऊर्जावंत हूं,ऊर्जावंतोSहं मै ऊर्जावान हूं,।

शक्तिसंपन्ननाेsहं में शक्ति संपन्न हूं,मुझ में शक्ति है।

स्वस्थोSहं ,मैं स्वस्थ हूं ।

सुरक्षिततोsहं,मैं सुरक्षित हूं।

अभयोगSहं, में अभय हूं।

प्रसन्नोsहं,में प्रसन्न हूं।

मैं स्वस्थ हूं ,मेरा परिवार स्वास्थ्य है।

मैं सुरक्षित हूं, मेरा परिवार सुरक्षित है । सभी सुरक्षित है।

मैं संतुष्ट हूं, संतुष्टोsधहं सर्वत्र संतुष्टि हो।

परिपूर्णोSहं मै पूर्ण हूं ।

मैं समर्थ हूं, समरथोsहं।

मैं पवित्र आत्मा हूं पवित्रोSहं।

मेरा मन पवित्र है मैं बैर रहित हूं, दोष रहित, राग रहित हूं। मै अपनी पवित्रता से सभी सकारात्मक शक्तियां को अपने अंदर महसूस कर रहा हूं।

मैं शुद्ध आत्मा हूं , शुद्धोSहं ।

सहजोSहं मै सहज हूं।

मैं शांत हूं , शांतोsहं।

मै चेतन आत्मा हूं, चेतन्योSहं

सोSहं।( जितना बार बोलना हो)

न कोई चर्चा, सब शांत, न कोई चिंता, न कोई भय,न कोई चेष्ठा। मेरे भीतर विराजमान शुद्ध आत्मा मैं हूं, मै शुद्ध पवित्र परमात्मा हूं।

*मंगल भावना पढ़े*

मंगल-मंगल होय जगत् में, सब मंगलमय होय।
इस धरती के हर प्राणी का, मन मंगलमय होय॥
कहीं क्लेश का लेश रहे ना, दुःख कहीं भी होय।
मन में चिन्ता भय न सतावे, रोग-शोक नहीं होय॥
नहीं वैर अभिमान हो मन में, क्षोभ कभी नहीं होय।
मैत्री प्रेम का भाव रहे नित, मन मंगलमय होय॥
मंगल-मंगल.....
मन का सब सन्ताप मिटे अरु, अन्तर उज्वल होय।
रागद्वेष औ मोह मिट जाये, आतम निर्मल होय॥
प्रभु का मंगलगान करे सब, पापों का क्षय होय।
इस जग के हर प्राणी का हर दिन, मंगलमय होय॥
मंगल-मंगल....
गुरु हो मंगल, प्रभु हो मंगल, धर्म सुमंगल होय।
मात-पिता का जीवन मंगल, परिजन मंगल होय॥
जन का मंगल, गण का मंगल, मन का मंगल होय।
राजा-प्रजा सभी का मंगल, धरा धर्ममय होय॥
मंगल-मंगल.....
मंगलमय हो प्रति हमारा, रात सुमंगल होय।
जीवन के हर पल हर क्षण की बात सुमंगल होय।
घर-घर में मंगल छा जावे, जन-जन मंगल होय।
इस धरती का कण-कण पावन औ मंगलमय होय॥
मंगल-मंगल....
दोहा:-
सब जग में मंगल बढ़े, टले अमंगल भाव।
है ‘प्रमाण' की भावना, सब में हो सद्भाव।।

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यह मंगल भावना प्रती दिन प्रातः एवम् रात्री मे सौते समय अवश्य पढ़े।ईसके चितंन मनन से सकारात्मकता मे अदभुत बृद्धी होती है।परिणाम मे शुद्धता आती है।तथा पाप कर्म क्षय होंकर शुभ बन्ध होते है।स्वयं अनुभव सिद्ध भावना है।
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