ग़ज़ल
उम्मीद ज़िन्दगी से कभी छोड़ा नहीं करते,
आती हुई बहारों का रूख मोड़ा नहीं करते।
महकेगीं जो कलियाँ खिलने के बाद में,
खिलने से पहले वे कलीं तोड़ा नहीं करते।
जिसको जो भी मिला ये उसका नसीब है,
हिसाब दूसरो का कभी जोड़ा नही करते।
ग़म की ये भी रात गुज़र जायेगी लम्हा लम्हा,
यकीनन उजाला होगा दिल थोड़ा नहीं करते।
मिल ही जायेगी मंज़िल यूँ ही चलते-चलते,
हाथ अजनबियों का कभी पकड़ा नहीं करते
मिलें ना मिलें हम ये तो क़िस्मत की बात है,
चाहत को अपनी कभी हम छोड़ा नहीं करते।
-अलका मित्तल
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