हाइकू
*मूकमाटी महाकाव्य रचयिता दिगम्बर जैन राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज इन दिनों जापानी हायकू (कविता) की रचना कर रहे हैं।*
हाइकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है।
यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लगभग 500 हायकू लिखे हैं, जो अप्रकाशित हैं। कतिपय हाइकू
1 – जुडो ना जोड़ों, जोड़ों बेजोड़ जोड़ों, जोड़ा तो छोडो |
2 – संदेह होगा, देह है तो देहाती ! विदेह हो जा |
3 – ज्ञान प्राण है, संयत हो तो त्राण, अन्यथा स्वान |
4 – छोटी दुनिया, काया में सूख दुःख, मोक्ष नरक |
5 – द्वेष से बचो, लवण दूर् रहे, दूध ना फटे |
6 – किसी वेग में, अपढ़ हो या पढ़े, सब एक हैं |
7 – तेरी दो आँखें, तेरी ओर हज़ार, सतर्क हो जा |
8 – चाँद को देखूँ, परिवार से घिरा, सूर्य सन्त है |
9 – मैं निर्दोषी हूँ, प्रभु ने देखा वैसा, कर्ता रहता।
10 – आज्ञा का देना, आज्ञा पालन से भी, कठिनतम।
11 – तीर्थंकर क्यों, आदेश नहीं देते, सो ज्ञात हुआ।
12 – साधु वृक्ष है, छाया फल प्रदाता, जो धूप खाता।
13 – गुणालय में, एक आध दोष भी, तिल सालगे।
14 – पक्ष व्यामोह, लौह पुरुष को भी, लहू चुसता।
15 – पूर्ण पथ लो, पाप को पीठ दे दो, वृत्ति सुखी हो।
16 – भूख मिटी है, बहुत भूख लगी, पर्याप्त रहें।
17 – टिमटिमाते, दीपक को देख, रात भा जाती।
18 – परिचित भी, अपरिचित लगे, स्वस्थ्य ध्यान में (बस हो गया)।
19 – प्रभु ने मुझे, जाना माना परन्तु, अपनाया ना।
20 – कलि न खिली, अगुंली से समझो, योग्यता क्या है
संकलनकर्ता नन्दन जैन
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