इतना है काफ़ी इन्सान के लिए
इतना है काफ़ी इन्सान के लिए
बन्दा बन जाए भगवान के लिए
बाक़ी ना रहेगा अरमान के लिए
शस्त्र उठा लो शैतान के लिए
सुर बन जाओ सुर साधना करो
सबका हो हित आराधना करो
स्वार्थ हेतु कोई चाह ना करो
प्रभु से ना कभी उलाहना करो
लड़ो सच के ही सम्मान के लिए
कर सदा जोड़ो मेहमान लिए
इतना है काफ़ी.......
गीता और रामायण पे चिंतन करो
वेदों और पुराणों का मंथन करो
अपने प्रभु का हिय रंजन करो
मन की बुराइयों का भंजन करो
पीछे नहीं दौड़ो पहचान के लिए
बनो स्वावलम्बी स्वाभिमान के लिए
इतना है काफ़ी......
सजदा करो तो बन्दगी के लिए
'चाहत' करो तो ज़िन्दगी के लिए
जीना सीखो दूजों की खुशी के लिए
द्वेष ना तू रखना किसी के लिए
सोचो नहीं ख़ुद के ही मान के लिए
ख़ुद को मिटा दो दिल ओ जान के लिए
इतना है काफ़ी..........
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नेहा चाचरा बहल 'चाहत'
झाँसी
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