:-माँ का रूप*






 

 

*:-माँ का रूप*

 

 

नीतू बहुत परेशान थी,लोकडाउन की वजह से घर से बाहर तक निकलना उसकी माँ को मुनासिब न था।वह अपनी बहिन नीति के साथ ही दिनभर मस्त रहती थी,आवश्यकता पड़ने पर माँ के साथ घर के कामों में भी हाथ बटा लिया करती थी।इस तरह वह अपना लोकडाउन का समय व्यतीत कर रही थी।

         माँ प्रतिदिन की भांति आज भी उस पर अचानक झल्ला पढ़ी,तो नीतू से भी रहा न गया उसने भी आव देखा न ताव और माँ को प्रतिउत्तर देने लगी। दोनों की आपस में ठन गई।सोफे पर बैठे बाबूजी उनकी बातें सुनकर मन ही मन मुस्कुराने लगे। अंत में  उन्होंने प्रतिदिन की भांति अपना निर्णय देकर उन्हें शान्त किया। और सब अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए।

         माँ ने भोजन बनाकर तैयार किया।और सभी को आवाज दी आओ भोजन तैयार है, नीति और बाबू जी ने भोजन कर लिया पर नीतू भोजन करने न आई।माँ ने भी बेटी के भोजन न करने पर भोजन न किया।

        दोपहर में काम करते करते माँ को चक्कर आया,सभी डर गए।पड़ोस से डॉक्टर को बुलाया,उन्होंने देखा तो कहा खाली पेट होने की वजह से,कमजोरी सहन नही कर पाई अतः चक्कर आ गया।पर घबराने की कोई बात नही है।यह दवाई दे दो थोड़ी देर में सही हो जाएगी। डॉक्टर साहब चले गए।

    तो बाबू जी ने नीतू से कहा देख बेटी आज तूने नाराजगी से भोजन नही किया,तो तेरी माँ ने तेरे भोजन न करने से भोजन न किया,बेटी तेरी माँ तुझे दिल से बहुत प्यार करती है।उसे गलत मत समझा कर।इतना सुनते ही नीतू की आँखों से आंसू आ गए,त्याग,समर्पण और ममता की मूर्ति माँ का असली रूप उसकी पहचान में आ गया।वह माँ से लिपट गई और प्रेम के आंसू बहाने लगी।

       अंत मे उसने निर्णय किया आंगे से कभी भी माँ को परेसान नही करेगी, माँ जैसा कहेगी वैसा ही करेगी।

     और उसके बाद फिर कभी उसका माँ से झगड़ा नही हुआ।

 सभी मिलकर घर मे रहने लगे।और इस प्रकार शेष लोकड़ाऊंन के दिन भी अच्छे से व्यतीत होने लगे।

 

        

        *{शास्त्री दीपक जैन ध्रुव}*


 

 



 



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