नाचना ही जिंदगी है




 जीवन की,

 हकीकत से ,

 अनजान। 

 अपनी लय में,

 अपनी ताल में,

 हर बात से अनजान ।

 

वो...... नाचती थी ?

सोचती.......... थी?

 

 नाचना ही..... जिंदगी है ।

गीत- लय- ताल ही बंदगी है।

 

 नाचना........ ही जिंदगी है ।

 नहीं ........ शायद

 नाचना ही.... जिंदगी नहीं है ।

 

इंसान हालात से नाच सकता है।

मजबूरियों की ,

लंबी कतार पे नाच सकता है।

 

 लेकिन ...........

अपने लिए ,

अपनी खुशी से नाचना। 

जिंदगी में यहीं,

 संभव -सा नहीं।

 

हकीकतें दिखी...... 

पाव थम गए। 

 

फिर कभी सबकी आंखों से,

ओझल हो ......!!!

नाचती .....अपने लिए।

 

 लेकिन जिम्मेदारियों से ,

वह भी बंध गए।

 

 फिर गीत -लय -ताल,

 न जाने कहां थम गए ।

 

पांव रुके,

और हाथ चल दिए। 

शब्द नाचने लगे।

जीवन की,

 हकीक़तों को मापने लगे।

 

उन रुके पांवों को ,

आज भी बुलाते हैं ।

तुम थमें हो ,

नाचना भूले तो नहीं ।

 

 वो.....नाचती थी।

 कभी हकीकतों से परे,

 आज ......भी नाचती है ।

  हकीकतों के तले ।।

 

 

प्रीति शर्मा "असीम "

नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


 

 



 

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