*जरूरी है विवेक*
*एक व्यक्ति ने घर में बिल्ली और कुत्ता—दोनों पाल रखे थे।* *बिल्ली बहुत बोलती थी, दिन और रात म्याऊं-म्याऊं करती थी। मालिक को बड़ा अटपटा लगता, वह सोचता—सारे दिन म्याऊं-म्याऊं करती है,*
*आराम भी नहीं करने देती। जब एक दिन बिल्ली म्याऊं-म्याऊं कर रही थी, मालिक उसे खूब पीटते हुए*
*बोला—क्या सारे दिन म्याऊं-म्याऊं करती है कुत्ते ने देखा—यह बोलती है इसलिए पीटी गई है, अब मैं बोलूंगा ही नहीं। उसने मौन कर लिया। रात को घर में चोर घुस गए। चोरी हो गई। सुबह हुई। मालिक लाठी लेकर कुत्ते पर बरस पड़ा, बोला— तुझे क्यों पाला है इतनी रोटियां किसलिए खिलाई है इसलिए पाला है कि चोर आए तो भौंक कर सूचित कर दो। तुमने मौन साध रखी है। मालिक ने उसे यह कहते हुए खूब पीटा।*
*बिल्ली की मरम्मत हुई ज्यादा बोलने के कारण और*
*कुत्ते की मरम्मत हुई न बोलने के कारण।*
*प्रश्न खड़ा हो जाता है कि मौन अच्छा है या बोलना अच्छा? क्या करें?*
*हमें यह विवेक करना होता है—कहीं-कहीं मौन करना भी अच्छा है और कहीं-कहीं बोलना भी अच्छा है। बोलना भी जरूरी है और मौन भी जरूरी है। जो आदमी विवेक नहीं कर पाता है, अविवेक के साथ चलता है, वह समस्या पैदा कर लेता है। हम यह नहीं कह सकते कि लाभ अच्छा ही है और यह भी नहीं कह सकते कि अलाभ अच्छा नहीं ही है। कहीं-कहीं ऎसा होता है कि अलाभ आदमी को आगे बढ़ा देता है। कुछ मिला नहीं, इस चिंतन से मन में एक भावना जागती है और व्यक्ति बहुत आगे बढ़ जाता है।*
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