*राष्ट्रव्यापी पूर्ण बंद (लाॅकडाउन) के दौरान समय का सदुपयोग*

 

राष्ट्रव्यापी पूर्ण बंद (लाॅकडाउन) के दौरान समय का सदुपयोग*

राधा गोयल 

 

 

      विश्व भर में वायरस का प्रकोप जारी है जिसकी वजह से कई देशों की सीमाएँ सील कर दी गई हैं।हमारे भारत देश में भी सभी राज्यों के सीमाएँ 21 दिन के लिये सील कर दी गई हैं

    सबको अपने घर में रहने के निर्देश दिए गए हैं।इस बात का सुकून है कि इससे महामारी के प्रकोप से बचने में मदद मिलेगी।रेस्टोरेंट बंद हैं तो बाहर जाकर अंट शंट खाना खाने के शौकीन वहाँ जा ही नहीं पायेंगे और थोड़ा स्वास्थ्य लाभ होगा।घर का बना हुआ पौष्टिक भोजन खायेंगे।

   *परिवार के साथ घर के माहौल में अब बहुत अंतर लग रहा है।*

    गृहिणियों के लिये तो इन दिनों कुछ ज्यादा ही काम बढ़ गया है।पति व बच्चे घर में ही रहते हैं।खाली हैं तो सारा दिन भूख लगती रहती है या चाय की तलब लगी रहती है।पत्नी पूरा दिन रसोई में खटती है।एक पल भी आराम नहीं मिलता,क्योंकि परिवार के सदस्यों का उठने,नहाने खाने का कोई निश्चित समय नहीं है।पुरुष या तो कोई सहयोग करेंगे ही नहीं,यदि थोड़ा सा कर दें तो अहसान जताने से भी नहीं चूकते।खासकर वे जो अपने हाथ से एक ग्लास पानी लेकर भी नहीं पीते। नाम रखने के लिये हर समय तैयार रहते हैं।नई-नई डिश बनाने की फरमाईश होती है। एक अकेली औरत घर के काम करती है। आजकल मेड का आना भी वर्जित है। मौसम में बदलाव हो रहा है। सर्दी वाले कपड़े रखने होते हैं तो गर्मियों वाले कपड़े निकालने होते हैं... जो अपने आपमें एक बहुत बड़ा काम है। घर में और भी अनेकों ऐसे काम हैं, जिन्हें करने के लिए समय चाहिए और किसी की मदद भी चाहिए। जैसे:- सर्दियों के बिस्तर रखना और गर्मियों के बिस्तर निकाल कर धूप में डालना। यह भी अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है।बच्चों से इस काम में मदद लेती हूँ।  

    आजकल बच्चों को कुछ सिखाती हूँ और बच्चों से कुछ सीखती हूँ। 

    आजकल सबको इकट्ठे बैठने का... परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है। पहले तो आपा-धापी में समय ही नहीं मिल जाता था। पोता- पोती भी स्कूल जाते समय नीचे केवल नमस्ते करने के लिए दो मिनट नजर आते थे।आते थे तो बेहद थके हुए होते थे। तब केवल उनकी आवाज सुनाई देती थी।साथ बैठने का मौका केवल त्यौहार या किसी खास अपनों के आने पर ही होता था।

     वैसे तो इन दिनों भी पोते पोती (दोनों की) वीडियो के माध्यम से क्लास होती है। खाली समय में कभी अपने 

दादा या कभी मेरे साथ बैठकर लूडो या साँप सीढ़ी खेल लेते हैं। मुझसे कहानियाँ सुन लेते हैं।अपने पापा के साथ ताश खेल लेते हैं। 

      मैंने इन दिनों उन्हें रामायण की कहानी सुनाई। रामायण निकाल कर रखी हुई थी। सबको कहा कि रोजाना सब 15-15 मिनट बारी-बारी इसे पढ़ेंगे। 5 मिनट महामृत्युंजय का जाप करेंगे। 5 मिनट पंचाक्षर जाप,21 बार गायत्री मंत्र और 108 बार ओम का उच्चारण। बच्चे करते हैं तो बड़ा अच्छा लगता है।

     घर के कामों में भी उनकी मदद लेती हूँ। नाती कपड़े सुखा कर आता है और उतार कर लाता है।आजकल वैल्लौर से आया हुआ है।परीक्षाएँ स्थगित हो गई थीं।कभी नाती से तो कभी पोते से सिर में तेल भी लगवा लेती हूँ और उस दौरान गप-शप कर लेते हैं। 

    *इन दिनों मैंने बहुत कुछ नया व सार्थक काम किया  है ?*

    लाॅकडाऊन के दौरान मैंने अपने समय का भरपूर सदुपयोग किया। बच्चों से कुछ नया सीखा। कुछ अपने अनुभव उन्हें सुनाए। बच्चों से कंप्यूटर सीखने की कोशिश की। वह बात अलग है कि तबीयत खराब हो गई और सीख नहीं पाई लेकिन मोबाइल के कुछ फीचर जरूर सीखे।दो पुस्तकें प्रकाशित होने के लिए भेजी हुई थीं। 19 अप्रैल को हमारे विवाह को 50 वर्ष पूरे हो जायेंगे, इसलिए स्वर्णिम वर्षगाँठ मनाने के बारे में सोच रहे थे।उस प्रकाशक को फोन किया था कि मैं अपनी पुस्तकों का विमोचन 19 अप्रैल को कराना चाहती हूँ ताकि यह मेरे लिए एक यादगार दिन बन जाए। उन्होंने अगले दिन ही पहला पीडीएफ बनाकर भेजा। मुझे संशोधन करने का समय मिल गया।उसके बाद दूसरा पीडीएफ बनाकर भेजा। उसमें भी कुछ  संशोधन किया। यह काम लाॅकडाऊन के कारण ही संभव हो पाया।

     एक व्हाट्सअप ग्रुप पर कुछ दिन पहले सूचना आई थी कि 96 पृष्ठ की पुस्तक 31 मार्च तक भेजनी है जिसका विमोचन 31 मई को होगा।इतनी जल्दी कैसे कर पाऊँगी... क्योंकि मेरे घर में लोगों का बहुत आना- जाना लगा रहता है,अतः चाह कर भी मन मसोस कर रह गई थी। उस बारे में विचार करना ही छोड़ दिया था।अब जब लाॅकडाऊन की अवधि बढ़ा दी गई है...किसी के यहाँ  जाना और किसी का आना वर्जित है, इसलिए समय ही समय था।उस पुस्तक को प्रकाशित करवाने का विचार किया। रोजाना सबके उठने से पहले अपने लेखन में समय बिताया। फिर अपने पोते और नाती की मदद से उसका डॉक्यूमेंट बनवाया और भेज दिया। तभी पता लगा कि सोलह पृष्ठों की रचनाएँ निशुल्क प्रकाशित होनी हैं जिन्हें 4 अप्रैल तक भेजना था।उस पर काम पूरा कर किया,क्योंकि अब समय का अभाव नहीं है।लाॅकडाऊन के दौरान यह उपलब्धि क्या कम है?

 

-राधा गोयल,विकासपुरी,दिल्ली   

 

 

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