सबसे कीमती धरोहर है  प्रेम

 

प्रेम याने प्यार जिसको समझना मुश्किल है, लेकिन जिसने समझ लिया संसार की सबसे कीमती उपहार को पा लिया। ईश्वर के बाद इस दुनिया की सबसे कीमती धरोहर है वो प्रेम ही है।

 

लव का सही अर्थ अगर जानना चाहते हो तो एक छोटा सा पिन लिजिए , उस पिन से अपने हथेली पर छेद करने की कोशिश किजिए , ऐसा करते हुए आपको बहुत दर्द होगा लेकिन आप उस दर्द के बारे में मत सोचिए जिससे भी आप प्रेम करते हैं उसके बारे में सोचिए | उस समय जो भी अनुभव आपको होगा वह अनुभव आपको लव के बारे में अपना परिचय दे देगा |

 

     यूं तो इसकी कीमत कुछ नही सिर्फ एक मुस्कुराहट ही है, लेकिन ये मुस्कुराहट भी किस्मत वालो के मुख पर होती है।

 

     अक्सर लोग पहली नज़र में प्रेम को अनुभव करते है। फिर जैसे समय गुजरता है , यह कम और दूषित हो जाता हैं और घृणा में परिवर्तित होकर गायब हो जाता है। जब वही प्रेम वृक्ष बन जाता हैं जिसमे ज्ञान की खाद डाली गई हो तो वह प्राचीन प्रेम का रूप लेकर जन्म जन्मांतर साथ रहता है। 

 

प्रेम जो आकर्षण से मिलता है।

 

प्रेम जो सुख सुविधा से मिलता है।

 

दिव्य प्रेम।

 

प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं वह क्षणिक होता हैं क्युकी वह अनभिज्ञ या सम्मोहन की वजह से होता है। इसमें आपका आकर्षण से जल्दी ही मोह भंग हो जाता हैं और आप ऊब जाते है। यह प्रेम धीरे धीरे कम होने लगता हैं और भय, अनिश्चिता, असुरक्षा और उदासी लाता है।

 

जो प्रेम सुख सुविधा से मिलता हैं वह घनिष्टता लाता हैं परन्तु उसमे कोई जोश, उत्साह , या आनंद नहीं होता है। उदहारण के लिए आप एक नवीन मित्र की तुलना में अपने पुराने मित्र के साथ अधिक सुविधापूर्ण महसूस करते है क्युकी वह आपसे परिचित है। उपरोक्त दोनों को दिव्य प्रेम पीछे छोड़ देता है। यह सदाबहार नवीनतम रहता है। आप जितना इसके निकट जाएँगे उतना ही इसमें अधिक आकर्षण और गहनता आती है। इसमें कभी भी उबासी नहीं आती हैं और यह हर किसी को उत्साहित रखता है।

 

सांसारिक प्रेम सागर के जैसा हैं, परन्तु सागर की भी सतह होती है। दिव्य प्रेम आकाश के जैसा हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है। सागर की सतह से आकाश के ओर की ऊँची उड़ान को भरे। प्राचीन प्रेम इन सभी संबंधो से परे हैं और इसमें सभी सम्बन्ध सम्मलित होते है।

 

"प्रेम न शास्त्रों की परिभाषा में,

        न शस्त्रों  की   भाषा   मे....

 प्रेम   तो   मिल  जाता  है  बस,

एक दूजे के खुशियों की अभिलाषा में...!

 

 

प्रेम भिन्न होकर भी,

अभिन्न होने का नाम है।

प्रेम हृदय के सागर में,

गहरे डूब जाने का भाव है।।

 

खुद को डुबोकर भी, 

प्रेम पार हो जाने का नाम है।

टूटकर भी जो बिखर न पाए,

प्रेम उस अक्षुण्णता का नाम है।।

 

प्रेम काया के आकर्षण से परे,

पूर्ण समर्पण का भाव है!

प्रेम तो अपूर्ण होकर भी,

शून्य में संपूर्णता का भाव है।।

 

न भुला पाओ जिस एहसास को,

प्रेम उस माधुर्य का नाम है।

न मिटा पाओ जिसकी छवि,

प्रेम उस अमिट छाप का भाव है।।

 

आंखें बंद करके भी,

प्रेम महसूस कर लेने का नाम है।

मन से जब अर्थ-स्वार्थ हटा दो,

तो प्रेम उस आभाव का पैगाम है।।

 

"सच्चे प्रेम की कोई परिभाषा नही,

सच्चा प्रेम तो वही,

जहाँ कोई भी आशा नही!!"

 

     कल मिलते हैं, कुछ अपनी और कुछ दिल की बातों के साथ।

 

हँस जैन रामनगर खण्डवा