शक्ति प्रबंधन के महागुरु थे हनुमान जी

हनुमान जयंती पर विशेष

 

शक्ति प्रबंधन के महागुरु थे हनुमान जी

 

 

हनुमान जी की शक्ति का मूल केंद्र था ,उनका विनय गुण / यह विनय गुण ही था कि वह अपने सहयोगीयों के समकक्ष अपनी शक्ति का बखान नहीं कर रहे थे /जामवंत जी ने जब उनको प्रेरित किया तब वह लंका के लिए स्थान किए /रास्ते में जो सुरसा का प्रकरण है , हनुमान जी रूप बढ़ाते जाते हैं ,सुरसा मुख फैलाती जाती है / मान लीजिए यही चलता रहता तो कथा अागें कैसे बढ़ती /हनुमान जी ने  बुद्धि का प्रयोग किया ,  अपना लघु रूप बनाकर सुरसा के मुख में गए ,और एक झटके में बाहर आ गए /यहां पर हनुमान जी यह बताते हैं कि  शक्ति के किस अंश का कब कहां कैसे प्रयोग करना / किसी भी क्षेत्र में सफलता ,इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपके पास शक्ति का भंडार कितना है /सफलता इस बात पर निर्भर करती है ,कि आप प्राप्त शक्ति का उपयोग कैसे करते हैं /इस सूत्र का हनुमान जी बखूबी दिग दर्शन करते हैं / मां सीत के पास जब  पहुचते है ,तब   लघु रूप धारण करते  है /जब सीता जी को हनुमान जी की शक्ति पर संदेह होता है ,तब अपना विराट रूप दर्शाते हैं /वाटिका को उजाड़ कर वह रावण तक सशक्त संदेश भेजते है / दूत का काम है, बुद्धि बल युक्ति से अपने  स्वामी की शक्ति का प्रदर्शन करना ,और हनुमान जी इस काम को बखूबी अंजाम देते हैं /अब आप देखिए ,लंका दहन के प्रकरण में ,हनुमान जी को जब बांधा जाता है  तब वह आसानी से बध  जाते है  ,उनकी पूछ से कपड़ा बांधा जा रहा है ,वह बंधबा लेते हैं ,तेल डाला जा रहा है वह प्रतिकार नहीं करते /आग लगाई जा रही है ,शांत बने रहते हैं /मतलब की सारा इंतजाम शत्रु से करवाते है ,और जब अपने मन के अनुकूल सारा कार्य हो जाता है , तब हनुमान जी सफलता की छलांग लगाते हैं ,और लंका जलकर खाक हो जाती है /खर्च कुछ भी नहीं ,आमदनी पूरी /हनुमान जी जब लंका अभियान को पूर्ण कर ,सीता जी को सांत्वना दें ,सफलता के चिन्ह  लेकर जब राम के पास आते हैं ,तो विनम्रता की प्रतिमूर्ति हनुमान जी की शारीरिक  भाषा से कतई नहीं लगता ,कि वह इतना बड़ा कार्य करके आ रहे हैं ,उनका तो विश्वास था ,भक्ति थी कि मैंने जो भी कार्य किया, सब प्रभु कृपा से किया /और उन्हीं प्रभु चरणों में नतमस्तक होकर ऐसे बैठ जाते हैं ,जैसे कोई छोटा सा बालक / हनुमान जी की यही लघुता  उन्हें प्रभुता के शिखर पर स्थापित करती है / इस प्रसंग में मेरे सबसे प्रिय राम कथा वाचक जो अब स्मृति शेष है ,राजेश्वरानंद सरस्वती जी कहते थे, कि जब भक्त चरणों में बैठता है तो सारी जवाबदारी प्रभु की होती है / और जब बराबरी से बेठता है ,तो जवाबदारी आधी आधी हो जाती है / कुल मिलाकर हनुमान जी बुद्धि विवेक और बल शक्ति के भंडार है,  किस शक्ति का कहां किस रूप में उपयोग करना है  ,इस कला के वह सबसे बड़ी शिक्षक है  / यही प्रेरणा यही विनम्रता यही लघुता हम सब को भी धारण करना चाहिए /हनुमान जी की यही सीख हमारे लिए कल्याणकारी है / लक्ष्मण शक्ति की प्रकरण में जब जड़ी बूटी लेने जाते हैं ,तो पूरा पहाड़ ले आते हैं /मतलब बहाने के लिए कोई स्थान नहीं है /हम लोग अक्सर कार्य नहीं होने पर कार्य  नहीं होने का अफसोस कम करते हैं , और कोई ना कोई बहाना इतनी मजबूती से बताते हैं कि वह कार्य हो ही नहीं सकता था /जब वेद्यराज  को लेने जाते हैं ,उनको   घर सहित ले आते है  / कुल मिलाकर हमारे अनुमान के पार ,हनुमान की शक्ति है /

श्री राम चरण में लगन लगी ,हनुमान भक्त की भक्ति है //

 ब्रःत्रिलोक जैन 

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