अपने पुरुषार्थ पर भरोसा रख

 

 कवि युगराज जैन

 

इन दिनों तू कुछ ज्यादा ही रहता है निराश ,

शायद डरता है कि कहीं टूट न जाये आस ,

रोज नई-नई घटनाएं सुन तू सपनों में भी 

दुर्घटनाओं का होता जा रहा शिकार ,

इतने महीनें से लॉकडाऊन है कैसे चलेगा व्यापार ,

 

नौकरी छूट गई , रोज कमाता था, 

रोज खाता था ,

अब क्या करूँगा, कैसे रोजी -रोटी कमाऊँगा ,

मैं बीमार पड़ा तो क्या मैं भी मर जाऊँगा ,

 

बच्चों का क्या होगा कौन उन्हें पढ़ायेगा ,

परिवार का गुजारा कैसे चल पायेगा ,

मेरा इतना बड़ा साम्राज्य है इसे भला कौन चलायेगा ,

सबके दर्द अपने-अपने है,

अपने अपने  सपने है इत्यादि सवालात ,

मस्तिष्क में भटकते कई खयालात ,

तुझे सताते हैं , उलझाते हैं ,

 

तू रात - रात भर अब सोता नहीं, घबराता है ,

परिजनों को भी ऐसी बातें कर करके तू डराता है ,

मतलब स्पष्ट है तुझे भरोसा नहीं है भगवान पर ,

अपने भीतर बैठे नेक इंसान पर , अपने ईमान पर ,

 

तुझे शक है अपने पुरुषार्थ पर ,जिंदगी के यथार्थ पर ,

अरे पगले एक -एक पल का परिणाम तय है ,

उसकी निश्चित वय है ,

तेरे सोचने से या अपनी तकदीर को कोसने से ,

कभी समस्याओं का होगा नहीं अंत ,

उलटे बढ़ जायेगी अनन्त ,

 

बस मन को बना दे महंथ ,

अपने भीतर व बाहर अच्छी सोच

 व अच्छे विचारों का खिला दे बसंत ,

फिर देखना तेरी जिंदगी सदा गुलजार रहेगी ,

पतझड़ कभी नहीं , सदा बहार रहेगी ,

बस तू हिम्मत मत हारना ,पुरुषार्थ को कभी मत मारना , 

 

सकारात्मक सोच की राह पर जिंदगी को लेकर चलना ,

तू फिजूल के जाल के जंजाल से बाहर निकलना ,

सदा बहाते रहना होठों से मुस्कुराहटों का झरना ,

नीडर नेक व परोपकारी बनकर जीवन जीते रहना,

 

तू सिर्फ  इतना सोच जब जब 

जो जो होना है ,तब तब सो सो होता है , 

फिर तू किस बात पर रोता है ।

क्यो अनमोल जिन्दगी को 

व्यर्थ की चिंता  में  खोता है।

 कवि युगराज जैन