कोरोना और हमारे अनुभव






कोरोना और हमारे अनुभव

 

 

                कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया संक्रमित हो गई है ।इस कारण भारत में लॉक डाउन से जिंदगी जिससे ठहर सी गई है ।जो जहां है वहीं रुक गया है। ऐसा लगता है कि यही वास्तविक जीवन है  ।लोग पता नहीं क्यों  जीवन को जीने के लिए इतनी भागम भाग करते हैं  । हर समय यही शिकायत रहती थी कि हमारे पास में समय ही नहीं है ना किसी को फोन करने का ,ना किसी से बात करने का, ना किसी से मिलने का। मैं स्वयं भी नौकरी होने के कारण हमेशा  यही अनुभव करती कि अपने पास में समय ही नहीं है  अपने लोगों के लिए  परंतु अब हम सब अपने घरों में कैद हो गए हैं मैंने अनुभव किया कि अपने घरों में रहकर तथा सामाजिक दूरी बनाकर ही कोरोनावायरस को हराया जा सकता है ।घर में रहकर मुझे भी कुछ इस प्रकार के रचनात्मक अनुभव हुए यही वह मौका है और समय है जब हम अपने अपनों को समय दे सकते हैं ।जैसे पहले कभी अपने गार्डन से कोयल की आवाज नहीं सुनी पर अभी सुबह सुबह के समय कोयल की मीठी आवाज तथा पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दी तथा दोपहर में भी कोयल की मीठी आवाज सुनाई देती है। हवा में भी एक ताजगी का अनुभव होता है तथा ऐसा लगता है कि यह हवा हमें एक अच्छे और नए जीवन को जीने की प्रेरणा दे रहे हैं ।मेरा घर मुख्य सड़क पर ही हैं जो सड़क दिन भर गाड़ियों की आवाजाही से भरी हुई रहती थी ।अब वह सुनसान दिखाई देती हैं तथा किसी प्रकार का गाड़ियों की आवाजाही भी उस पर नहीं दिखाई देता है । जैसे सड़के भी अब ठंडी सांस ले रही हैं ।

                 घर के वातावरण में भी एक नया परिवर्तन देखने को मिला है जैसे एक  प्रकार का  अनुशासन  आ गया घर में ।घर में भी सभी सदस्य एक साथ बैठकर रामायण कथा महाभारत देखने का आनंद उठा रहे हैं और हमारी भाभी पीढ़ी  को भी  हमारे पौराणिक इतिहास को जानने का एक मौका मिला। और ऐसा लगता है जैसे पहले वाला समय वापस आ गया है ।जब सभी घर में रहकर एक-दूसरे का हाथ बताते हुए तथा एक दूसरे के प्रसन्ना नापसंद का ख्याल रखते हैं ।एक साथ बैठकर भोजन करते हैं । पापा मम्मी अपने पुराने समय की  बातें तथा अनुभव बताते हैं जिन्हें हम  बैठकर ध्यान से सुनते हैं ।चारों ओर वातावरण शांत मैं मैंने अच्छा अनुभव करते हुए लेखन कार्य किया ।इसमें महिलाओं से संबंधित लेख तथा कोरोनावायरस लेख और कविता आलेखन भी किया तथा पृथ्वी दिवस पर राजस्थान पत्रिका में  दो आलेख का प्रकाशन हुआ ।कहते हैं मन शांत हो तो अच्छा सोच पाते हैं और अच्छा लिख पाते हैं। यहअनुभव मैंने इस समय लिया । लॉक डाउन में चैत्र नवरात्रि भी आई जिसमें माता जी का पाठ करते हुए उनके और नजदीक जाने का अनुभव प्राप्त हुआ तथा ऐसा लगा जैसे कि वह साक्षात हमें शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान कर रही हैं  ,कोरोना से लड़ने के लिए ।यह एक ऐसा समय है जिसको सकारात्मक रूप से लेकर अध्यात्म के क्षेत्र में मैं आगे बढ़ी तथा गीता का अध्ययन भी इसमें किया जिससे जीवन की वास्तविकता का अनुभव प्राप्त हुआ ।और यह अनुभव किया कि जिस प्रकार गीता में कहा गया है कि हमें कर्म करते जाना चाहिए तथा फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए ठीक उसी प्रकार से कोरोना को हराने के लिए हमें लॉक डाउन में रहकर अपना कर्म करते रहना चाहिए निश्चित रूप से हमें अच्छा फल प्राप्त होगा।

             इस समय में मैं प्रकृति के साथ भी अंतर्मन से जुड़ गई। मैंने 3 नए पौधे लगाए और जब उन पौधों में पत्तियां प्रस्फुटित हुई तो मुझे अत्यंत ही प्रसन्नता का अनुभव हुआ जैसे कोई छोटा बच्चा बड़ा हो रहा है और मैं उनका रोज पानी पिलाने का भी ध्यान रखती हूं साथ ही बगीचे में आने वाले पक्षियों के लिए पानी पीने की भी और दाने की भी व्यवस्था की ताकि वहां भी इसी प्रकार से परेशान ना हो। क्योंकि मनुष्य के लिए तो भोजन के पैकेट बनवा कर भी उन तक खाना पहुंचाया जा रहा है परंतु यह बेजुबान परिंदे जो किसी से कुछ कह नहीं सकते उनकी भूख को कौन पहचानेगा।

         

             डॉ दीपिका राव 

व्याख्याता बांसवाड़ा राजस्थान


 

 



 



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