पत्रकार देवर्षि नारद के बहाने -- पत्रकारिता विमर्श -----------------_-_-_-------- डॉ सरोज गुप्ता सार्वभौमिक ईश्वरीय प्रतिष्ठा प्राप्त पत्रकार देवर्षि नारद जी की जयंती सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उल्लास के साथ ज्येष्ठ मास की कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि को मनायी जाती है । विश्व के प्रथम पत्रकार नारदजी सभी युगों में, सभी कालों में, सभी विद्याओं में,सभी कलाओं में निष्णात् रहे हैं। देवों, दानवों,स्त्री-पुरुषों सभी में विशेष लोकप्रिय एवं प्रख्यात रहे हैं। ब्रह्मा के मानस पुत्र नारदजी के व्यक्तित्व की चर्चा महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में विस्तार से दी गई हैं। देवर्षि नारद जी आत्मज्ञानी,त्रिकालज्ञ,स्थितिप् देवर्षि नारद जी सत्यनिष्ठ व लोककल्याण के पथ पर अग्रसर रहे हैं। जहां कहीं उन्हें अनर्थ दिखता था वह त्रिकालज्ञ होने के कारण नारायण-नारायण कहते हुए वहां पहुंच जाते थे।प्राय: कहा जाता है कि नारद जी दो लोगों में ,दो गुटों में हमेशा लड़ाई-झगड़ा कराने में महारत हासिल थे जबकि सच यह है कि वह लोककल्याणार्थ ,नैतिक धर्म के प्रचारक के दायित्व निर्वहन हेतु सतत् तत्पर रहते थे। चाहे जालंधर जैसे आततायी के संहार की बात हो,चाहे कंस को भविष्यवाणी के बाद देवकी-वासुदेव को बंधक बनाने की बात हो,चाहे त्रिदेवियों के मान-मर्दन की बात हो,चाहे हिरण्यकश्यप की पत्नी को ऋषियों के संरक्षण में रखकर हिरण्यकश्यप बध की बात हो। ऋषि दुर्वासा के क्रोध का मर्दन करने की बात हो, डाकू रत्नाकर से आदिकवि बाल्मीकि बनाने की बात हो, ओंकारेश्वर की कहानी में विन्ध्यपर्वत को उकसाकर नर्मदा के तट पर शिवलिंग स्थापित करने की बात हो। नारदजी ने सदैव सत्यनिष्ठा का परिचय दिया है। ऋषियों ने कल्याण की कामना से पहले तप और साधना की है तब राष्ट्र और बल का जन्म हुआ फिर देवों ने उस राष्ट्र को प्रणाम किया ।यह ज्ञानमय तप ही पत्रकार या संपादक के लिए है। प्राचीन साहित्य में से कितना राष्ट्र के नवनिर्माण में पुनः डाला जा सकता है इसकी कुंजी पत्रकारों के हाथ में ही है। राजनीति,भाषा निर्माण, साहित्य, संस्कृति , राष्ट्रीय रंगमंच,कला, संगीत अनेक विषयों की भारतीय पद्धति का ज्ञान भारतीय पत्रकार के लिए आवश्यक है। राष्ट्र क्या है? धर्म क्या है? राष्ट्र और धर्म का क्या सम्बन्ध है? वेदव्यास,मनु, कौटिल्य के धर्म का क्या सम्बन्ध है।यह पृथ्वी भूत और भविष्य दोनों की अधिष्ठात्री है। भूतकाल की शक्तियों को भविष्य में विकसित करके राष्ट्र के निर्माण में उन्हें कितना शक्तिशाली बनाया जा सकता है। आदि प्रश्नों , विचारों पर चिंतन करने की आज आवश्यकता है।(पृथिवी पुत्र--वासुदेवशरण अग्रवाल पृ.110-112) वर्तमान समय की मांग है कि पत्रकारों को देवर्षि नारद जी की तरह ही जागरूक, सावधान और दत्तचित्त होने की आवश्यकता है। जिसप्रकार नारदजी सारस्वत विचारों के,ऋषि परंपरा के अनुयायी ,अनुसंधान करने वाले ,दृष्टा पत्रकार रहे जो सबको एकरुप प्रत्यक्ष देखते थे ।देव ,असुर आदि सबसे मित्र भाव रखने वाले "न काहू से दोस्ती ,न काहू से वैर"की राजनीति में निष्णात ,राष्ट्र हितैषी देवर्षि नारद जी सहित वेदव्यास, वाल्मीकि, कालिदास,आदि के साहित्य का ज्ञान भी हम सबको, पत्रकारों को होना चाहिए। नारद जी रचित साहित्य--नारदपंचरात्रि, नारद भक्ति सूत्र,नारदपरिव्राजक कोष ,नारदीय पुराण,नारद संहिता आदि की टीका, समीक्षा ग्रंथ सार तैयार करने के प्रयास यदि हम करते हैं और अपने अपने घरों में, संस्थाओं के पुस्तकालयों, वाचनालयों में यदि इनका अध्ययन,मनन, चिंतन करने की परम्परा निर्मित कर पाए तो सच्चे अर्थों में नारद जयंती सार्थक व सफल होगी । देवर्षि नारदजी को कोटि कोटि नमन ,वन्दन । |
पत्रकार देवर्षि नारद के बहाने -- पत्रकारिता विमर्श
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