पत्रकार देवर्षि नारद के बहाने -- पत्रकारिता विमर्श

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                         डॉ सरोज गुप्ता

                       

                            

            सार्वभौमिक ईश्वरीय प्रतिष्ठा प्राप्त पत्रकार देवर्षि नारद जी की जयंती सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उल्लास के साथ ज्येष्ठ मास की कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि को मनायी जाती है । विश्व के प्रथम पत्रकार नारदजी सभी युगों में, सभी कालों में, सभी विद्याओं में,सभी कलाओं में निष्णात् रहे हैं। देवों, दानवों,स्त्री-पुरुषों सभी में विशेष लोकप्रिय एवं प्रख्यात रहे हैं। ब्रह्मा के मानस पुत्र नारदजी के व्यक्तित्व की चर्चा महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में विस्तार से दी गई हैं। देवर्षि नारद जी आत्मज्ञानी,त्रिकालज्ञ,स्थितिप्रज्ञ, परमयोगी, सूर्य के समान-त्रिलोकी पर्यटक, वेदों ,उपनिषदों, इतिहास ,पुराणों के विशेषज्ञ,कल्पों के ज्ञाता ,न्याय और धर्म के तत्वज्ञ,शिक्षाशास्त्र--वेदोंकी ऋचाओं के श्रेष्ठ उच्चारण में निष्णात, व्याकरणाचार्यों में अग्रगण्य, आयुर्वेद, ज्योतिष, संगीत, नाटक, सांख्य योग के रहस्यों व धर्म अर्थ काम मोक्ष के ज्ञाता, सदाचार, सद्गुण, आनन्द के सागर,परम तेजस्वी, सबके हितकारी और सर्वत्र गति करने वाले ऋषित्व प्राप्त देवर्षि पदविभूषित ,नारद संहिता ,नारद पुराण के रचयिता दुनिया के सबसे वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार के रूप में विख्यात, सभी लोकों में विचरण करने वाले, भक्ति संगीत के आद्य- आचार्य, सत्यनिष्ठ,पौराणिक समय में प्रतिष्ठा प्राप्त ,ऋग्वेद ,अथर्ववेद,ऐतरेय ब्राह्मण, मैत्रायणी संहिता में विशेष उल्लेखनीय नारदजी का इस सृष्टि में विशेष महत्व है। नारायण-नारायण शब्द का जाप करते हुए विष्णु के अनन्य भक्त, वीणा बजाते हुए, हरिगुण गाते हुए ,जन-जन के पाप-  ऊर्जा जहां है वहां पत्रकार की पहुंच हो।जहां-जहां से उसे तेज दिखाई दे, वहीं-वहीं से वह उसका संचय करे ।  विभूति ,श्री और ऊर्जा---प्राण,मन और शरीर इन तीनों की उपासना पत्रकार का ध्येय होना चाहिए। राष्ट्र या समाज में इनको प्रदीप्त करने की जहां से सामग्री मिल सकती है उसी दीप्ति-पट को उठा कर प्रकाश का स्वागत करना पत्रकार को इष्ट होना चाहिए।इसी से राष्ट्र का प्राण,मन,शरीर पुष्ट बनाया जा सकता है। देवर्षि नारद जी को पत्रकारिता का आदर्श यदि मान रहे हैं तो भारत के भावी पत्रकारों की नींव या प्रतिष्ठा उन्हीं के अनुरूप होना चाहिए। भारत भूमि को देखने, जानने, समझने की जो शुद्ध भारतीय पद्धति है इस समय उसकी राष्ट्र के निर्माण में पदे पदे आवश्यकता है। नारदजी के व्यक्तित्व व कृतित्व को समग्रता के साथ अपनाने मूल्यांकन करने की भी आज महती आवश्यकता है। नारद जी को एक दिन स्मरण कर भूल जाने का समय अब नहीं है।आज प्रत्येक संस्था के स्नातक विद्यार्थियों को समझना होगा कि" माताभूमिपुत्रोहमपृथिव्या "के भावों को ऋषियों, मनीषियों ने तपस्या व साधना बल पर स्वयं को शक्तिसंपन्न बना कर तथा दिव्यगुणों से युक्त होकर  सतत् सक्रिय रहकर, राष्ट्रहित में समर्पित भाव से लोककल्याणार्थ कितना कार्य किया है। नारदजी हमारे आदर्श हैं,स्पृहणीय हैं।

       देवर्षि नारद जी सत्यनिष्ठ व लोककल्याण के पथ पर अग्रसर रहे हैं। जहां कहीं उन्हें अनर्थ दिखता था वह त्रिकालज्ञ होने के कारण नारायण-नारायण कहते हुए वहां पहुंच जाते थे।प्राय: कहा जाता है कि नारद जी दो लोगों में ,दो गुटों में हमेशा लड़ाई-झगड़ा कराने में महारत हासिल थे जबकि सच यह है कि वह लोककल्याणार्थ ,नैतिक धर्म के प्रचारक के दायित्व निर्वहन हेतु सतत् तत्पर रहते थे।

 चाहे जालंधर जैसे आततायी के संहार की बात हो,चाहे कंस को भविष्यवाणी के बाद देवकी-वासुदेव को बंधक बनाने की बात हो,चाहे त्रिदेवियों के मान-मर्दन की बात हो,चाहे हिरण्यकश्यप की पत्नी को ऋषियों के संरक्षण में रखकर हिरण्यकश्यप बध की बात हो। ऋषि दुर्वासा के क्रोध का मर्दन करने की बात हो,  डाकू रत्नाकर से आदिकवि बाल्मीकि बनाने की बात हो, ओंकारेश्वर की कहानी में विन्ध्यपर्वत को उकसाकर नर्मदा के तट पर शिवलिंग स्थापित करने की बात हो। नारदजी ने सदैव सत्यनिष्ठा का परिचय दिया है। ऋषियों ने कल्याण की कामना से पहले तप और साधना की है तब राष्ट्र और बल का जन्म हुआ फिर देवों ने उस राष्ट्र को प्रणाम किया ।यह ज्ञानमय तप ही पत्रकार या संपादक के लिए है। प्राचीन साहित्य में से कितना राष्ट्र के नवनिर्माण में पुनः डाला जा सकता है इसकी कुंजी पत्रकारों के हाथ में ही है। राजनीति,भाषा निर्माण, साहित्य, संस्कृति , राष्ट्रीय रंगमंच,कला, संगीत अनेक विषयों की भारतीय पद्धति का ज्ञान भारतीय पत्रकार के लिए आवश्यक है। राष्ट्र क्या है? धर्म क्या है? राष्ट्र और धर्म का क्या सम्बन्ध है? वेदव्यास,मनु, कौटिल्य के धर्म का क्या सम्बन्ध है।यह पृथ्वी भूत और भविष्य दोनों की अधिष्ठात्री है। भूतकाल की शक्तियों को भविष्य में विकसित करके राष्ट्र के निर्माण में उन्हें कितना शक्तिशाली बनाया जा सकता है। आदि प्रश्नों , विचारों पर चिंतन करने की आज आवश्यकता है।(पृथिवी पुत्र--वासुदेवशरण अग्रवाल पृ.110-112) वर्तमान समय की मांग है कि पत्रकारों को देवर्षि नारद जी की तरह ही जागरूक, सावधान और दत्तचित्त होने की आवश्यकता है।

 जिसप्रकार नारदजी सारस्वत विचारों के,ऋषि परंपरा के अनुयायी ,अनुसंधान करने वाले ,दृष्टा पत्रकार रहे जो सबको एकरुप प्रत्यक्ष देखते थे ।देव ,असुर आदि सबसे मित्र भाव रखने वाले "न काहू से दोस्ती ,न काहू से वैर"की राजनीति में निष्णात ,राष्ट्र हितैषी देवर्षि नारद जी सहित वेदव्यास, वाल्मीकि, कालिदास,आदि के साहित्य का ज्ञान भी हम सबको, पत्रकारों को होना चाहिए। नारद जी रचित साहित्य--नारदपंचरात्रि, नारद भक्ति सूत्र,नारदपरिव्राजक कोष ,नारदीय पुराण,नारद संहिता आदि की टीका, समीक्षा ग्रंथ सार तैयार करने के प्रयास यदि हम करते हैं और अपने अपने घरों में, संस्थाओं के पुस्तकालयों, वाचनालयों में यदि इनका अध्ययन,मनन, चिंतन करने की परम्परा निर्मित कर पाए तो सच्चे अर्थों में नारद जयंती सार्थक व सफल होगी । देवर्षि नारदजी को कोटि कोटि नमन ,वन्दन ।