सच्चाई
हर दिन एक नई सच्चाई से रूबरू होती हूँ
खुलती है कितनी परतें , जब कुछ भीतर उतरती हूँ
अपनी ही धारणाएँ टूट के बिखरती है
कुछ नए पैमाने के साथ नई सोच उभरती है
सत्य को जानने की खोज में कई झूठों से गुज़रती हूँ
समाधान की खोज में कितने प्रश्नों से स्वयं को झकझोरती हूँ
आनंद और उत्साह से इस सफ़र के हर मंजर को तकती हूँ
अपनी प्यास बुझाने को कितने सागर भटकती हूँ
प्रेम का दीप मन में प्रज्वलित कर अपनी राह प्रशस्त करती हूँ
चल पड़ी हूँ कि मंज़िल तक पहुँचने का हौसला रखती हूँ,
मंज़िल तक पहुँचने का हौसला रखती हूँ।
शिल्पा भंडारी
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