विश्व परिवार*















 













 




















































 














विश्व परिवार 





 

 हम जिस दौर से गुज़र रहें इसने हमें यह जता दिया कि परिवार कि अहमियत क्या होती हैं..

एक *क़लमकार के लिए तो पुरा विश्व उसका परिवार होता है..तो बात *विश्व परिवार* की..!

 

मसला यह नहीं है की किस दौर से आज गुज़र रहें हैं हम..!

मुद्दा तो ये है की अपनी कितनी परवाह कर रहे हैं हम..!

 

शर्त सलीका हर एक उम्र और दौर में बहुत ही जरुरी है..!

जो इस दौर में ज़रुरी है तो घर में क्यों नहीं ठहर रहें हम..!

 

कोई खफ़ा कोई जुदा कोई गमज़दा उदास सी है फ़जा..!

कोई सदा के लिए बिछुड़  ना जाएं सोचकर डर रहे हैं हम..!

 

हर एक स्याह रात के दामन में उजाला सदा ही पलता हैं..!

इसी आरज़ू के साथ हर एक लह्म़ा बसर कर रहे हैं 

 

कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश


 

 



 



 













 










 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 














 

 





 

 





 





 


 



 





 





 


 



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