किसी दार्शनिक ने कहा है की..घर में कितना भी रो लेना..मगर दरवाजा सदा हंसकर खोलना..गर दुनिया वालों को ये पता लग गया की तू अंदर टुटा हुआ है तो तुझे ये नेस्तनाबूद कर देगें.. तेरी जिंदगी से खेलेंगे..सांस लेना दुभर कर देंगे..इन हालातों से हम गुज़र चुके हैं..आज *क़लम-ए-कमल* अपनी तर्जूबा-ए-जिंदगी लिख रहीं हैं..!
अपने अश्क़ो की तू यूं तोहिन न कर..!
अपने अश्क़ो की तू यूं तोहिन न कर..!
गैरों को दिखाकर जिंदगी मुश्किल न कर..!
बड़ा ज़ालिम है जमाना व जमाने वाले..!
इससे तू कोई भी बेवजह उम्मीद न कर..!
वहम है तेरा की जख्म़ो को मरहम मिलेगा..!
आज के दौर हर तुझे एक बेरहम मिलेगा..!
सब तेरी बर्बादी का तमाशा यहां बनाएंगे..!
उजाले की जिससे आस हैं वहां तम मिलेगा..!
अश्क़ो को दफ़न रख इन्हें बेपर्दा न कर..!
अपने अश्क़ो की यूं..
मुश्किलें अपने साथ हल लेकर भी आती हैं..!
ये मैं नहीं धर्म की पवित्र किताबें बताती हैं..!
वक़्त के साथ सब कुछ बेहतर हो जाता हैं..!
ग़मो की काली रात एक दिन गुज़र जाती है..!
होंसला रखना जज़्बातों को बेदम न कर..!
अपने अश्क़ो की यूं..
कमल सिंह सोलंकी
रतलाम मध्यप्रदेश
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