बहू,बहू रहने दो

 















🙏बहू,बहू रहने दो🙏

 

 

कहते सुना सबसे,दो कुल रोशनी बेटी से होती है।

ऐसा वहीं ही होता,जहां बेटी संस्कारवान होती है।

 

ससुराल में आते ही,वो बेटी नहीं बहू बन जाती है।

संस्कारहीन बेटी ही,ससुराल पतन कारण होती हैं।

 

माँ-बाप रखती ख्याल ,सास-ससुर को रुलाती है। 

माँ बाप नजरों में ,बेटे को सदा नाकारा बनाती है।

 

यही हर घर की कहानी,गले उतरने में कठिनाई है।

बेटा है खराब,वृद्धाश्रम बहू आने पे क्यों जाती है।

 

कहती मेरा कहीं ठौर नहीं, ठौर बना नहीं पाती है।

आता आजादी खनन कोहराम ससुराल मचाती है।

 

सास ससुर को,खून आंसू रोने मजबूर वो करती है।

मान सम्मान खुद बचा रहे,खामोशी धारण होती हैं।

 

साड़ी बोझ है,जींस पहने की चाह पागल होती है।

ससुराल रीति-रिवाज में,वो सदा कमी ही पाती है। 

 

आते ही जब भाभी दे दुख, तकलीफ तब होती है।

तब तक सास-ससुर की, प्रभु चरणों ठौर होती है।

 

कहे वीणा बहू बहू रहने दो, तकलीफ ना होती है।

बहू तो बर्दाश्त होती,बेटी दे तकलीफ बहु होती है।

 

वीणा वैष्णव "रागिनी"

       राजसमंद


 

 



 



 















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