पलकों में सपने सजाने का हक दो।
हमें एक चादर बिछाने का हक दो।।
हमें हक दो चुल्लू से* पानी पिएँ हम।
हमें एक रोटी तो* खाने का हक दो।।
गिनेंगे नहीं छाले पाँवों के* अपने ।
हमें राह अपनी बनाने का हक दो।।
धरा पर जन्म हमने भी तो लिया है ।
गगन ओढ़कर सो भी* जाने का हक दो।।
तुम्हारी नजर हमको ही घूरती है
हमें अंग अपने छिपाने का हक दो।।
ये* बच्चे धरोहर हैं इनको सम्हालें
इन्हें खेलने और खाने का हक दो ।।
तुम्हारे दिये पर रहे 'सुषमा ' जीवित
हमेंअपने* हक आज पाने का हक दो।।
डॉ0 सुषमा सिंह ,आगरा
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