इंसानियत
इंसानियत को यूं ना शर्मशार कीजिए ।
जिंदगी मौत से जूझ रही है।
आपसी नफरतों में ,ना इसे शुमार कीजिए।
इंसानियत को यूं ना शर्मसार कीजिए।
कोई धर्म मारता नहीं है जिंदगीयों को ,
ना धर्म के नाम पर यह व्यापार कीजिए।
जिंदगी नहीं दे सकते ,जो तुम किसी इंसान को।
अपने तंग दिमागों की सोच से,
कुछ तो सवाल कीजिए।
क्यों बंट गए लोग अलग-अलग जमातों में जमात बनके ।
अपनी इंसानियत का कुछ तो एहसास कीजिए।
स्वरचित रचना
प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
Mobile-8894456044
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