🌷जीवन प्रवाह 🌷

 

जिंदगी नदी है नहर नही 

नहर इंजीनियर के अनुसार 

बहती है रहती है 

नदी अपने  अनुसार बहती है

जीवन की नदी 

कहीं गहरी है कहीं उथली 

कहीं सकरी कहीं चोडी 

कहीं गतिमान  तो कहीं एकदम शांत 

बहती है जीवन की नदी 

अपने और पराए  घाटों के बीच

बहती है जीवन की नदी 

सुख-दुख के कूल किनारों के बीच 

बहती है जीवन की नदी 

मान अपमान सम्मान सत्कार पुरस्कार 

निंदा प्रशंसा यह सब परछाइयां हैं 

पुण्य पाप की 

कभी होती हैं कभी नहीं होती

परछाई को अपना  कद मानने की 

भूल मत कर जिंदगी  

बरना रोएगी पछताएगी 

दुख पाएगी तू जिंदगी 

इसलिए रुकावट को रास्ता

 ठोकर को मुकद्दर बनाकर

 चली  चल तू जिंदगी

 

 🏵साहित्य मित्र 🏵

 ब्रःत्रिलोक जैन

 


 

 



 



 















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