कलम सच बोलने लगती हैं
कलम सच बोलने लगती हैं
मानो दूर से वो चमकती हैं
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उछल कुद कुछ लोग करते
फ़कत जुबा उनकी चलती है
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ऑखो से जो देखा वही लिखा
दामन -ए -सच्चाई झरती हैं
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इतिहास-ए -पन्ने पलटती हैं
ऑख की किर किरी बनती हैं
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सच्चाई जब उठने लगती यारो
किसी की ऑखो मे अखरती हैं
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डर गया सो मर गया कहते लोग
इन्ही उसूलो पर कलम चलती हैं
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झूठ का बन कर साया है वो
ओरो को जगा कर खुद जलती हैं
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मेरी कलम में वो ताकत हे यारो
अंधेरो मे जुब्हा के राज उगलती हैं
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जमाने की बुराई बता कर ' मोहन
दांत हरिफ़ो के खट्टे करती है
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मनमोहन पालीवाल/कांकरोली
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