लेखिका उपन्यासकार कवियत्री नासिरा शर्मा

 

नासिरा शर्मा नाम से ही हम जानी मानी लेखिका उपन्यासकार कवयित्री और शा यरा के जीवन के बारे में अंदाजा लगा सकते हैं कि उनका जीवन गंगा जमुनी तहजीब का पुख्ता प्रमाण है।

सर्व धर्म में विश्वास करने वाली लोक कल्याणकारी निम्न तबके एवं शोषित वर्ग की लेखिका नासिरा का जन्म इलाहाबाद के एक साधन संपन्न जागीरदार शिया मुस्लिम परिवार में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नामक स्थान पर 1948 में हुआ था। नासिरा की  पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसे थे कि उनके पिता भी प्रसिद्ध लेखक और शायर थे और एक व्यवहार कुशल और उसूल पसंद इंसान के तौर पर इस समाज में ख्याति प्राप्त थे। परंतु भाग्य की विडंबना देखो की नासिरा के बचपन में ही पिता का साया उनके सिर से उठ गया था। परंतु प्रसिद्धि का आलम यह था कि उनके मरणोपरांत भी अपने उसूलों के कारण इस समाज में उन्हें याद किया जाता था नासिरा के मन मस्तिष्क पर इन बातों का प्रभाव बचपन से ही बढ़ता चला गया था और लेखन जैसे उनके खून में शामिल हो गया था। कक्षा 6 में उनकी पहली कहानी कुर्बानी जो उन्होंने लिखी बहुत पसंद की गई और सर आ ही गई नन्हीं लेखिका के जीवन का आलम ऐसा था कि वह आराम पसंद ना होकर घंटो घंटो अपने घर के तहखाने में रखी पुस्तकों को अपलक निहारती रहती। उनकी माता नाज़नीन ने पति के बाद अपनी सन्तान  को बहुत उसूल और दुनियादारी की समझ के साथ बेहद समझदारी के साथ इस संसार में रहने की और व्यवहार कुशल होने की शिक्षा दी। 19 वर्ष की अल्पायु में नासिरा का विवाह प्रोफेसर रामचंद्र शर्मा के साथ संपन्न हुआ और ऐसे वे नासिरा से नासिरा शर्मा हो गई।

हिंदी उर्दू अंग्रेजी और पाश्तो भाषाओं की जानकार थीं और उनकी शोध का विषय ईरान रहा है।

मुझे नासिरा शर्मा की कुछ बातें बहुत अच्छी लगती हैं जैसे के वह कहती हैं कि मेरा चेहरा अंतर्राष्ट्रीय है मैं जहां कहीं भी जाती हूं लोग मुझसे पूछते हैं कि तुम पंजाबी हो मुसलमान हो हिंदू हो कश्मीरी हो पठान हो या इसी पाश्चात्य देश से हो तो मुझे बहुत खुशी होती है क्योंकि उनको मेरे चेहरे में एक अंतरराष्ट्रीय चेहरा नजर आता है। मुझे यह बात बहुत अच्छी लगती है चलो कम से कम उन्हें मेरे चेहरे में एक इंसान का चेहरा तो नजर आता है किसी जानवर का तो नहीं अगर जानवर का नजर आता तो मैं भी खूंखार और भयानक दिखती। उनकी इस बात में बहुत मर्म है बस समझने का दिमाग चाहिए।

नासिरा शर्मा सर्व धर्म मैं विश्वास करती हैं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा गिरजाघर सब जगह जाकर अपना शीश निभाती हैं।

वह परंपराओं की बेशक अनुयाई हैं क्योंकि परंपराएं एक वृक्ष की तरह हैं जो इस धरती में गहरे तक फैली होती हैं और आसमान तक ऊंची अगर हम उन परंपराओं में छिपी अच्छाई को तलाश करेंगे तो जीवन सुकून से भर उठेगा परंतु गली सड़ी परंपराएं जोके इस पितृसत्तात्मक समाज की देन है जैसे के महिलाओं के द्वारा सिंदूर लगाना बिंदी लगाना चूड़ी बिछुआ पहनना पर्दा प्रथा यह सब गलीप साड़ी परंपराएं हैं और महिलाओं को सिर्फ गुलामी या दास्तान देती हैं उनके हिस्से का आकाश छीन लेती हैं ऐसी गली सड़ी परंपराओं में नासिरा शर्मा का सिरे से ही विश्वास नहीं है।

नासिरा शर्मा के साहित्य का फलक इतना विशाल है कि उसको शब्दों में बांध बना हर एक के बस की बात नहीं। सूर्य को दीपक दिखाने के समान है यह सब। फिर भी साहित्य अकादमी एवं व्यास पुरस्कार से सम्मानित इस महान लेखिका के कहानी संग्रह खुदा की वापसी जोकि सिलेबस में भी लगा हुआ है शायद। उनका प्रसिद्ध उपन्यास पारिजात ।

सात नदिया एक समंदर

जिंदा मुहावरे

कागज की नाव

इलाहाबाद के निम्न तब के रिक्शावाला लोहार कागज के लिफाफे बनाने वाले चना भूलने वाले कामवाली बाई इत्यादि शोषित गरीब वर्ग पर लिखा गया उनका साहित्य वास्तव में मील का पत्थर है।

सरलता सादगी गंभीरता जैसे उनके गहने हैं

सुप्रसिद्ध लेखिका को अतिथि सत्कार घर को सजाना लंबी यात्राएं करना पसंद है।

उनकी बहन भी प्रसिद्ध लेखिका और शायरा है।

भगवान से उनकी दीर्घायु एवं तंदुरुस्ती के लिए प्रार्थना करते हैं

 

 

यशेद्रा भारद्वाज यशी

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