मास्क बनाम मुखौटा मास्क कोराना की सौग़ात नहीं मुखौटों में रूप में इसका प्रचलन युग-युगांतर से चला आता पहले बहुरूपिये वेश बदल करते थे मनोरंजन कई ठगने में थे दक्ष इक्कीसवीं सदी में हर इंसान मुखौटा धारण कर एक-दूसरे को मूर्ख बना इतरा रहा रिश्तों की अहमियत रही नहीं कोई भी संबंध पावन शेष बचा नहीं आज कल अपने, अपने बन अपनों को छल, सुक़ून पा रहे ज़रा सोचो! मास्क क्या रंग लाएगा वहशी इंसान जुर्म कर भाग जाएगा मास्क तो एक सहारा है,आवरण है अपना परिचय छुपाने का सबको धत्ता बताने का आओ! इस संकट की घड़ी में पुरातन धरोहर को अपनाएं संकट की इस घड़ी में अपनों से भी दूरी बनाएं हाथ-पांव धोएं हरदम स्वच्छता को गले लगाएं निशदिन मास्क धारण कर कोरोना रूपी महामारी से सर्वहिताय निज़ात पाएं ●●● डॉ मुक्ता●●● |
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