महावीर स्वामी और महात्मा गांधी






महावीर स्वामी और महात्मा गांधी

 

महावीर स्वामी और महात्मा गांधी दो आदर्श और पवित्र आत्मा है जिनके जीवन काल  में सदियों का अंतराल । एक सतयुग में अवतरित हुए तो  दूसरे का कलियुग में अवतरण हुआ। एक ने  हिंसा ,पशु बलि कर्मकांड ,पाखंड ,जात - पात, छुआछूत, आडंबर और अनेकों अनेक सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त समाज में जन्म लेकर समाज को नई दशा और दिशा दी तो दूसरे ने राजनीतिक और सामाजिक बुराइयों की बेड़ियों से त्रस्त मानवता को पराधीनता की जंजीरों से मुक्त कर नवजीवन दिया । एक जैन धर्म के प्रवर्तक बने  तो दूसरे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपिता लेकिन हम अगर इन दोनों ही महान विभूतियों के जीवन ,कर्म, आचार विचार या यूं कहें कि कृतित्व और व्यक्तित्व पर दृष्टिपात करें तो जो समानताएं  हमें नजर आती हैं वे  निसंदेह आश्चर्यजनक प्रतीत होती हैं। इस दृष्टि से हम अगर दोनों  महापुरुषों पर नजर डाले तो जहां महावीर स्वामी जैन धर्म के अनुयायियों का मार्गदर्शन करते नजर आते हैं तो दूसरे भारतवर्ष के परतंत्र नागरिकों का। संपूर्ण समालोचक  दृष्टिपात उपरांत हम कह सकते हैं कि महात्मा गांधी महावीर स्वामी के अनुगामी प्रतीत होते हैं दूसरे शब्दों में हम  महावीर स्वामी  को महात्मा गांधी के आध्यात्मिक गुरु आध्यात्मिक  गुरु थे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । 

स्वयं  महात्मा गांधी ने भी कई बार कई अवसरों पर  इस बात को खुले मन से स्वीकार किया है यही कारण है कि जब गांधी जी के आध्यात्मिक विचारों की बात होती हैं सिद्धांतों की बात होती हैं तो महावीर स्वामी का नाम पहले आता है एक बार गांधी जी ने कहा था कि आज महावीर स्वामी की जो पूजा होती है वह उनके द्वारा दिए गए अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों जेसे महान विचारो  के कारण ही  होती हैं उनके विचार समाज में सद्भाव का भाईचारे का वातावरण बनाने में सहायक है । गांधी जी ने अहिंसा को मानसिक शक्ति ,आत्मशक्ति और तन मन की शुद्धि के रामबाण औषधि मानते थे। उन्होंने जैन धर्म को की धार्मिक आचार संहिता को राजनीति की व्यवहार संहिता बनाया । महावीर स्वामी की तरह उन्होंने कहा कि अहिंसा कायरों का नहीं बल्कि वीरों का आभूषण है ।अपने विचारों पर जीवन पर महावीर स्वामी का प्रभाव कई बार  खुले मन से स्वीकार किया और कहा कि  उनके विचार विरोधियों को भी अपना बनाने में सक्षम है । महावीर स्वामी सत्य  के विचार अनुगामी थे  गांधी जी ने सत्याग्रह पर जोर दिया उसे जन आंदोलन बना दिया । इस आध्यात्मिक अस्त्र से उन्होंने  अंग्रेजों के लाठी-डंडों और बड़े-बड़े अस्त्र शस्त्रों को काट कर हवा में उड़ा दिया। महावीर स्वामी की तरह उन्होंने एक ऐसे राज्य की कल्पना की जिसमें कोई छोटा-बड़ा ना हो अमीर गरीब ना हो किसी को कोई कष्ट नहीं सभी को समान अधिकार हो और ऐसे ही राज्य को उन्होंने रामराज्य कहा ।महावीर स्वामी के सत्य, अहिंसा को अपनाकर गांधीजी ने उसे नया रंग रूप देकर अनंत असीम ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया महावीर स्वामी के सर्वकालिक विचारों को जन जन तक पहुंचाने का जो कार्य गांधी जी ने किया वह अप्रतिम है अनुपम है अतुलनीय है  ।यही कारण है कि कि जब अहिंसा की बात आती हैं तो महावीर स्वामी और गांधी जी की चर्चा परिचर्चा साथ साथ होती हैं महावीर स्वामी ने बरसो तपस्या की और जो  बात वह दुनिया को कहना चाहते थे उसे पहले उन्होंने स्वयं पर लागू कर के  देखा 

अपनी देह को कष्ट और तपस्या की भट्टी में तपाकर देखा फिर संसार को संदेश दिया।  गांधी जी ने भी अहिंसा, सत्याग्रह अपरिग्रह ,भाईचारा, समता, आत्म नियंत्र को जीवन- कसौटी पर पहले परखा । हर प्रयोग पहले  स्वयं पर करके देखें कि वह स्वयं इस बात को अपने जीवन में, कर्म में  उतार सकते हैं कि नहीं सहन कर सकते हैं कि नहीं । उसके बाद लोगों को इस राह पर चलने ,अनुगमन करने  के लिए प्रेरित किया । एक तरह से गांधी जी ने महावीर स्वामी के विचारों को ही व्यावहारिक जीवन की कसौटी पर उतारा । उनका जीवन सत्य अहिंसा के साथ महावीर स्वामी के अपरिग्रह के संदेश का भी साक्षात दर्शन करवाता  है, उदाहरण प्रस्तुत करता है ।महावीर स्वामी की तरह गांधीजी भी मानते थे कि सच्चे मन से, आत्मा की पूर्णता सहा गया दुख पत्थर जैसे व्यक्ति के मन में भी दया करुणा प्रेम का अंकुर प्रस्फुटित कर सकता है ।उसे दयावान बना सकता है और एक हैवान को भी इंसान बना सकता है लेकिन आवश्यक है कि इस दुख की पीड़ा आत्मा से निकलकर आत्मा तक पहुंचे क्योंकि दुख सहन करना भी एक तपस्या हैं  और सत्याग्रह का प्राण है । युगो युगो से प्रमाणित है कि मानव और दानव में अहिंसा ही भेद करती हैं गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम को अहिंसा और सत्य का आधार लेकर एक नया और अनूठा प्रयोग किया था जो संसार के लिए नव प्रयोग था क्योंकि अब तक संसार ने तीर ,भाला, तलवार और बंदूक तोपों  की ही ताकत देखी थी  प्रथम  बार विश्व ने सत्य और अहिंसा की ताकत को  प्रत्यक्ष प्रमाणित देखा कि किस तरह से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सत्याग्रही  लाठी-डंडे, गोली खाते रहे लेकिन उफ तक नहीं की ना ही  प्रतिकार किया जिसे देखकर अपने समय की सबसे ताकतवर अंग्रेजी सरकार को भी हथियार गेरने पड़े नतमस्तक होना पड़ा और देश को मुक्त कराने करने के लिए मजबूर होना पड़ा,, बाध्य होना पड़ा ।गांधीजी की इस अहिंसा सत्याग्रह की जंग को प्रेरणा अमृत महावीर स्वामी के अतुलनीय विचारों से ही प्राप्त हुआ और इसी प्रेरणा अमृत ने स्वतंत्रता संग्राम रूपी वट वृक्ष की जड़ों को जीवनदान प्रदान किया । महावीर स्वामी ने विश्वशांति का संदेश दिया था। आत्मा पर मन पर विजय का संदेश दिया था ।उन्होंने कहा कि किसी प्राणी को मत मारो पीड़ा मत दो यहां तक कि किसी का बुरा भी मत सोचो क्योंकि हर प्राणी जीने की कामना रखता है इस दृष्टि से भी महावीर स्वामी महात्मा गांधी के अग्रदूत दिखाई देते हैं क्योंकि उन्होंने भी अपने तीन बंदरों के माध्यम से  कहा कि बुरा मत देखो बुरा मत बोलो बुरा मत सुनो। शांति से जिओ और दूसरों को भी जीने दो क्योंकि सारे विश्व का कल्याण इसी में है, इसी सद्विचार में हैं ।उनका यह कृत्य महावीर स्वामी के संदेश को ही आगे बढ़ाने  वाला जन विचार बन गया  और पूरे विश्व के लिए विश्वशांति दया करुणा जैसे सुविचार ओं का आदर्श रूप बन गया । गांधी जी ने सत्याग्रह, अपरिग्रह के जिन सिद्धांतों को लेकर जीवन भर कार्य किया । वह मुख्य रूप से महावीर स्वामी की ही धरोहर है, संदेश हैं जो उन्होंने संसार को दिया था। अपरिग्रह जैसे विचार को भी गांधीजी ने प्रत्यक्ष प्रयोग करके विश्व मानवता के सामने एक बड़ा आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया । उनका जीवन इस  विचार का  श्रेष्ठ  रूप  प्रस्तुत करता है कि एक धनी मानी परिवार से होते हुए भी और वकालत जैसे उच्च पैसे से संबंध के बावजूद भी उन्होंने सादा जीवन अपनाया और एक  आधी धोती को  उन्होंने अपना वस्त्र बनाया  ताकि बाकी की आधी धोती से कोई और भारत माता का सपूत अपना तन ढक  सकें ऐसा आदर्श प्रेरणादाई जीवन की प्रेरणा भी गांधी जी को महावीर स्वामी से ही मिली थी जिसे उन्होंने अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से अपनाया इसी प्रकार से प्रेम भाईचारा ,एकता, करुणा  दया  समता जैसे मानवीय गुण उन्होंने महावीर स्वामी से ग्रहण कर  और उन्हें अपने  जीवन में उतार कर पीड़ित,  पराधीनता से त्रस्त  मानवता को प्रेम और भाईचारे के जल से अभिषिक्त किया और दिखा दिया कि धार्मिक उपदेश, संदेश ,सिद्धांत विचार सिर्फ उपदेश के लिए नहीं होते बल्कि उनको अपनाकर व्यक्ति बड़ी से बड़ी सत्ता के शक्तिशाली वट वृक्ष  को अपनी आत्मिक शक्ति से  उखाड़ सकता है, युगो युगो तक जन प्रेरणा का शक्तिपुंज, प्रकाश पुंज बन सकता है ।

वर्तमान संसार जिस प्रकार नस्लवाद जातिवाद आतंकवाद असाध्य रोगों से पीड़ित हैं, ग्रस्त हैं चारों और भय आतंक का माहौल है तनाव चिंता भी लोगों ने संसार को जकड़ रखा है ऐसे में विश्व में महावीर स्वामी के विचारों को एक बार फिर गांधी जी की तरह अपनाकर न सिर्फ अपनी समस्याओं को दूर कर सकता है बल्कि विश्व में विश्व शांति में आत्मिक शांति में अपना योगदान दे सकता है विश्व मानवता को बचा सकता है क्योंकि आज विश्व का कल्याण इन्हीं विचारों सिद्धांतों में है यदि मानवता को बचाना है तो यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता है जो महावीर स्वामी ने बताया और जिनको अपनाकर गांधी जी ने देश को परतंत्रता के पास से जंजीरों से मुक्त करवाया था । वर्तमान कालखंड में  जिस प्रकार से एक छोटे से वायरस ने ,विषाणु ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रखा है , भयभीत कर रखा है। जल थल नभ पर विजय पाने वाले मनुष्य को परिंदो की तरह घरों में बंद कर रखा है । महा शक्तियों को सोचने पर बाध्य कर रखा है । अर्थव्यवस्था के पहिए  को रोक रखा है। लोग डाउन के लिए भारत सहित संपूर्ण विश्व को मजबूर कर रखा है। जिस तरह मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च   के कपाट बन्द है  । इस संपूर्ण परिदृश्य ने दिखा  दिया है  कि संपूर्ण  भौतिक और वैज्ञानिक उन्नति के पश्चात भी मनुष्य की औकात क्या है कि वह एक छोटे से विषाणु के सामने नतमस्तक हो गया है । आज संपूर्ण मानव जाति का जीवन खतरे में है नाश की ओर अग्रसर हैं  मनुष्य तमाम भौतिक उन्नति के पश्चात भी फिर से  अपनी वास्तविक इस्थती पर पुनः दृष्टि डालने पर विवश हुआ है कि वह उसे किस रास्ते पर चलना था और वह किस रास्ते पर चल रहा है , ये रास्ता उसे कहां ले जा सकता है। 

जिस प्रकार प्रकृति संतुलन बिगड़ रहा है पर्यावरण चक्र दूषित हो  हो रहा है। प्राकृतिक प्रकोपों के माध्यम से प्रकृति अपना रूद्र रूप दिखा कर चेतावनी  दे रही हैं । ऐसे में संसार को फिर से महावीर स्वामी के विचारों की तरफ लौटने के लिए विवश  कर दिया है जिनको अपनाकर गांधीजी महात्मा गांधी बने । महावीर स्वामी के विचार काल और भूगोल की सीमाओं से परे शाश्वत थे , मानव मात्र के पृथ्वी  पर चिर कलिक  अस्तित्व के लिए थे , उस के कल्याण के लिए थे , उसकी आत्मिक और भौतिक उन्नति के लिए थे  , मानसिक शान्ति और भौतिक उन्नति के लिए थे जो कल भी प्रासंगिक थे और आज भी हैं । आवश्यकता है तो गांधीजी की तरह उनको मन ,वचन और कर्म से अपनाने की । बेशक आज के वक्त की ये सबसे बड़ी आवश्यकता है।

                        द्वारा - 

 

                  शबनम भारतीय D/o

                  सदीक  अहमद भारतीय

                  फतेहपुर शेखावाटी 

।                 सीकर, राजस्थान


 

 



 



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