*प्रेम*
महकने लगती है स्याही
खिलखिला उठते हैं शब्द
जब कलम लिखना चाहती है प्रेम
पर यूं तो मुमकिन नहीं,
कि लिख पाऊं, तुम्हारे उन एहसासों, जज्बातों को
जो तुमने मुझे जिंदगी के क्षणों में दिये हैं
सच ! मन और देह को जो तुमसे सौगात मिले हैं
उन खुशियों की अभिव्यक्ति शब्दो में नहीं है
शायद ! इस पूरे संसार में ऐसी कोई चीज नहीं जो
प्रकट कर सके जज्बातों को
एहसासों के अनुभव का एकमात्र सूक्ष्म टुकड़ा है शब्द
जिसके सीमित माध्यम से
एक विशालकाय अनुभूति की हवेली में
एक नन्हा दीया जलाने का प्रयास है
शब्दो के ऐसे कोई अर्थ भाव नहीं
जो सम्बन्धों के प्राकृतिक मिलन और उससे उत्पन्न
उत्तेजनाओं को शब्दो में समेट सके
तुम्हारा प्रेम भी ऐसे ही शब्दो से परे है
सुनो !
दुनिया जब अंतिम सांसें ले रही होगी तब भी
इन हवाओं में
सुबह की गुलाबी भोर में
शाम की गोधूलि बेला में
रात के अंधेरे में
हरे भरे पेड़ पौधे, पहाड़ों में
सूरज की चमक में
चांद की दूधिया रौशनी में
प्रकृति में व्याप्त महकेगा प्रेम हमारा.....
सच्चा प्रेम ही तो प्रकृति है ना !
बबली सिन्हा
(गाज़ियाबाद)
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