*उपहार*






*उपहार*

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मूर्तिमानों को भले उपमान दो !

प्रेम या आदर सहित सम्मान दो !

बाँट दो आधार चाहे मनुज का,

सुरलोक में फैला प्रकाश-विहान दो !!

 

संकीर्णताओं में उलझती सहजता,

दानवों में घुट रही सब मनुजता|

उन्नति अभिशाप या वरदान हो,

*एक धरती, एक अम्बर, एक ही विहान हो !!*

 

क्या चकाचौंधी, सभी को भा गयी,

तुच्छ-सी बदली रवि पर छा गयी !

पुण्य का परिमाण केवल धर्म क्या?

नास्तिकों का टूटना है अधर्म क्या ?

 

हे पार्थ ! हे केशव ! सुनो अब आओ न !

शक्ति का आह्वान 'गीता' गाओ न !

ये समय-रौरव खड़ा संहार को,

एक हों सुत - भारती, उपहार दो !!

 

गणतंत्र ओजस्वी


 

 



 



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