लघुकथा
बदरी बाबुल के अँगना जइयो---
मायका शब्द ही ऐसा है कि सुनते ही चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ जाती है चेहरा खिल उठता है ,लगता है साल भर बहु की जिम्मेदारियां बखूबी निभा दी ,बस अब मायके जाना है छुट्टियां लगते ही मायके जाने की तैयारियों सुरु हो जाती है,इस वर्ष कोरोना महामारी की वजह से बेटियों का मायके जाना संभव नही हो पाया
आज उमड़ते -घुमड़ते बादलो को देख बचपन मे सुने लोकगीत को गुनगुनाने का मन हुआ ,जो मेरी माँ को बहुत पसंद था ,जब भी उन्हें मायके की याद आता थी कहती थी मुझे वह गीत सुनाओ ,सुनकर वह भी जी भर रोती थी ,और सुनाकर मैं भी "-बदरी बाबुल के अँगना जइयो"-- सोचा बादलो संग ही ,बदरी के जरिये मायके की दहलीच छू आऊ ,कुछ पल बिता आऊ ,अपने बचपन को जी लू
बदरी से मैंने कहा बदरी तुम पर तो कोई लॉक डाउन नही है ,तू मेरे मायके जा मेरा संन्देशा देती आ, बदरी तुम मेरे बाबुल के अँगना जा खूब बरसना और मेरी माई से कहना --कि हम है तोहरी बिटिया की अखियाँ ,माई के पल्लू से अठखेलियां कर कहना कि हम है तोहरी बिटिया की बतियां , बाबुल के संग थोड़ा खेल,उनकी गोदी में सर रख कहना कि ,हम है तोहरी नटखट सी बिटिया, बहन भाइयो को भिगोकर कहना कि हम है तोहरी चुलबुली बहनिया
बदरी मायके गयी ,दूसरे दिन संदेशा ले आयी, तुम्हारे माई -बाबुल ने कहा है कि --बेटी मत घबराना ,जल्द ही सब ठीक हो जायेगा ,फिर से हमलोग साथ रहेंगे, खेलेंगे ,मुस्कुरायेंगे घूमेंगे ,तुम मायके जरूर आओगी ,ढाढ़स भरे शब्दो के बावजूद भी सब लोग बहुत उदास है ,कहा कि कभी सोचा नही था कि तुम बिन हमारा आँगन इतना सुना हो जायेगा
ओ री चिरैया ,नन्ही सी चिड़िया
बाबुल अँगना फिर आजा रे
लता सिंघई
अमरावती,महाराष्ट्र
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