गजल

गगन यहाँ जलता है 

 

शाम सूरज थका हुआ ढलता है     

तेज  प्रखर गगन यहां जलता है 

 

झूठ बातें करें सभी देखो तो

बेवफा इश्क को भी अब छलता है 

 

पास उसके कहां कमाने को है

बैठकर रोज हाथ अब मलता है

 

 मार ठोकर निकाल फेंका था जब

 भीख अब मांग के पड़ा पलता है 

 

लोग नाराज  हो रहे उससे तो

 साफ सीधी जुबान ही चलता है 

 

क्रोध आता नहीं उसे तो मन में

 बर्फ के ही समान वो गलता है

 

 बात दीपा सही कहां दिखती हैं 

झूठ बातें जहान  में खलता  है

 

दीपा परिहार

जोधपुर (राज)