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गरिमा खंडेलवाल 
एक पल का उन्माद
करता अंधकार का पोषण
अप्रिय सत्य को टालता
झूठ व्याधि को पालता
स्वार्थ परस्त्ता से ग्रस्त झूठ
सत्य के विरोध में खड़ा अपराध
तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर
मनचाहे निष्कर्ष निकालता
संहिता रक्षा बनी चुनौती
सत्य कठघरे में जैसे कैदी
दुर्निवार्य दायित्व कब तक टाले
विडम्बना में उजागर करने वाले
सत्य असत्य के बीच सेतु रचते
गला घोटते व्याधि के पोषक
खच्चर सरीखी परिणीति से
उपजे मूढ़ता भ्रष्टाचार
निज स्वार्थ के पिछलग्गूओ में
चरित्र दुर्बलता का नहीं इलाज
बिसात झूठ पर सत्य विजेता
हारे वो झूठ व्याधि को पालता
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