माता -पिता की छाँव
मात-पिता के प्यार से , जग में जन्मे जीव।
होते हैं परिवार के , वे ही पक्की नींव ।
मात सृजन का मूल है , पिता जीवनाधार ।
होते हैं भगवान सम , करते बेड़ापार ।
सहकर वे अनबोल दुख , करें बड़ी संतान ।
बिन स्वारथ सेवा करें , दोनों लगें महान ।
होता है हर जीव में , मात -पिता का अंश ।
धड़कन में स्पंदन भरें , 'मंजु ' कह परमहंस ।
मात -पिता के प्यार का , कहीं नहीं है छोर ।
जग में दूजा है नहीं , उनसा कोई ओर ।
सब रिश्तों से है बड़ा , मात -पिता संबंध
लाड - प्यार के नेह से , हरें दर्द के बंध।
वेद , पुराण , गुरु सम दें , खूब गूढ़ हैं ज्ञान ।
ठोस भविष्य हैं गढ़ के , दें कल को सौपान ।
करती है माँ - बाप की ,सेवा जो संतान ।
उनके सारे दुख हरे , देता सुख भगवान ।
डॉ मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुंबई
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