मुझे अफसोस रहेगा ....
जिदंगी को प्यार से संजो पाता।
खुशीयों का एक छोटा-सा ही सही।
काश !एक छोटा -सा घर बना पाता।
समझ कर भी,
न-समझी का खेद रहेगा।
मुझे अफसोस रहेगा।
अंधेरे दूर हो जायें,
दिलदिमाग से भरमों के।
अंधविश्वास की सोच से,
निकाल कर,
जो तर्क को समझ पाएगा।
चिराग तो बहुत जलायें।
लेकिन........?
चिरागों तले जो रहे अंधेरे,
उन्हीं का भेद रहेगा।
मुझे अफसोस रहेगा।
जिदंगी ईश्वर की ,
अमूल्य उपहार।
नही दे सकता।
किसी बाबा का,कोई धागा।
हिम्मत से संवारो ,
अपने जीवन को।
न खोना,
बहमों में अपने कल को।
भटकन को अपनी समेट कर।
ईश्वर का सत्य -संवाद रहेगा।
और तब .....तक वेद रहेगा।
फिर न कोई खेद और न भेद रहेगा।
समझ जायें तो अच्छा है।
फिर न कोई अफसोस रहेगा।
स्वरचित रचना
प्रीति शर्मा "असीम "
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
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