||"पिंजरे का पँछी"||

||"पिंजरे का पँछी"||


 


बंद पिंजरे के पंछी की तरह मत समेट,


अपने आप को इन दर-दीवारों में !


वरना, उड़ना तो दूर,


फड़फड़ाना भी भूल जाओगे !


 


जरा बाहर निकल, आबो हवा में घूम,


वरना, बंद दीवारों में सिमट जाओगे !


इंसानी फ़ितरत है, मुखौटों में जीने की,


 


मुखौटा मत ओढ़, उन्मुक्त होकर जी,


वरना, हँसना तो दूर,


मुस्कुराना भी भूल जाओगे !


 


ज़रा खोल दिल के किवाड़ों को,


अपनापन आने दे !


वरना, एक दिन गैरों को तो छोड़ो,


अपनों के लिए भी तरस जाओगे !


 


रिश्तों की गरमाहट महसूस कर,


स्वाभिमान की होली जला !


वरना, कुलांचे भरना तो दूर,


कछुए की तरह सिमट जाओगे !


 


जरा, खोल से बाहर निकल,


रिश्तों को जी !


वरना, जीते - जी


मक़बरे में बदल जाओगे !


 


रिश्तों की फ़सल उगा,


मोहब्बत का बीज़ डाल !


खाद दे प्यार की,


रिश्तों की जड़ों को ज़रा !


 


शिद्दत से सींचो,


मोहब्बत के रिश्तों को,


वरना, मोहब्बत की तो छोड़ो,


कड़वाहट के लिए भी तरस जाओगे !


 


फलों से लदे वृक्ष,


अक्सर झुक जाते हैं !


ठूँठ हैं जो वो,


अकड़ के सीधे खड़े हो जाते हैं !


 


जरा लचीलापन ला, झुकना सीख,


वरना, तूफानों की तो छोड़ो,


"शकुन" तेज़ हवा के झोकों में


ही टूट जाओगे !


 


No comments:

Post a Comment

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular