प्यासा सा समंदर है वह






प्यासा सा समंदर है वह

 

 

सभी नदियां मिलें जिसमें,प्यासा सा समंदर है वह।

जीतने निकला जो सारे जहां को,हारा सा सिकन्दर है  वह।।

 

पेड़ों पर कूद-कूद कर खाता रहा था  फल जो।

अब न पेड़,न कहीं फल हैं,खिसियाया सा बंदर है ।।

 

जिम्मेदारियां नचा रहीं उसको रात और दिन ।

नचाने को न भालू हैं,न बंदर हैं,मगर फिर भी कलंदर है वह।।

 

न जाने क्या सोचता-समझता है या है नादान ।

अड़ौसी-पड़ौसी और घरवाले हैं कहते बवंडर है वह।।

 

कोरोना महामारी 'सुषमा 'है आयी,लायी है कयामत ।

बहुत घूमता था इधर से उधर,आज अंदर है वह।।


 

 



 



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