मनन चित्त का
-- परिधि सपनों की --
जला हाथ
हड़ताल
**ताज़ी बिवाई**
जय जवान
- अपनी अपनी किस्मत
_बलात्कार
"वसूली"
"वसूली"
"मम्मी आप बर्तन साफ क्यों कर रही हो? कल चुन्ना आंटी आएंगी ना?" दसवीं में पढ़ रही मीतू ने रविवार रात को मम्मी को बर्तन साफ करते देखकर पूछा।
"सोमवार को वो देर से ही आ पाती है ना! और मुझे सुबह सुबह बर्तन चाहिए होते हैं।" नीलू ने हाथ धोते हुए बताया।
"क्यों?देर से क्यों?" मीतू की उत्सुकता जागी।
"रविवार को उसकी छुट्टी रहती है तो अधिकतर घरों में सोमवार को उसे लगभग दुगुने बरतन साफ करने पड़ते हैं। समय भी ज्यादा लगता है और मेहनत भी। इसलिए मैं तो रविवार का काम उसके लिए रखती नहीं, खुद ही करती हूं। अगर छुट्टी वाले दिन का काम अगले दिन करवाओ तो भई फिर छुट्टी का मतलब ही क्या?"
"फिर तुम हर सोमवार उससे किचन की स्लैब और टाइल्स क्यों साफ करवाती हो?"नीलू का जवाब सुनकर उसके पति आनंद ने टोका!
बिटिया के आगे गर्व से तनी नीलू की गर्दन अचानक ही शर्म से झुक गई।
शिवानी जयपुर
चरैवेति-चरैवेति
नारी का सम्मान
नारी का सम्मान
पुरुषों के हर एक क्षेत्र में
नारी का विशेष स्थान उसके जीवन में
जन्म से मरण तक रहता उस पर निर्भर
जन्म दे बहन लाती उसके जीवन में
🦚
कोई कसर नहीं छोड़ती उसके पालन-पोषण में
रात रात भर जगती उसकी बीमारी में
कुछ पुरुष सब भूल करते अत्याचार
ना दूजा शानी उसके फर्ज निभाने में
कुछ पुरुष ना कसर छोड़ते उसे रुलाने में
किसी भी रूप में पुरुष का हाथ उसके दर्द में
पति दोस्त अंकल किसी उम्र में करते अत्याचार
छह मास की बालिका भी दिखती नारी रूप में
लज्जा न आती करने भयंकर अंजाम में
निकल योनि से दूध उसी का पी पोषण में
फिर उन्हीं दो अंगो पर रखें बुरी नजर
पुरुष भी लज्जित होते उनकी कुत्सित सोच में
संभव नहीं कोई माँ रूप ऋण चुकाने में
पूरा जीवन लगता नारी को सम्मान पाने में
समझे पुरुष इस बात को फिर भी जरूरी नहीं
नारी ही बने नारी की दुश्मन जीवन में🦚
कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जिससे हो वो दूर
दुनियाँ लोहा मानती देख काम हो जाती मजबूर
विभिन्न रूपों में घर आंगन की है वह शान
दो उसको लाड प्यार सम्मान भरपूर🦚
🦚
अलका जैन
मुंबई
प्रवेश वर्जित
प्रवेश वर्जित
रज्जो भी नीच कुल मे जन्मी लड़की थी। उसे भगवान मे बहुत आस्था थी। पर गाँव के पास बने मंदिर मे वह जा नही सकती । बड़े जाति के लोगो का मानना था कि नीच कुल मे जन्मे लोग अगर मंदिर मे पाव रखा तो मंदिर अपवित्र हो जाऐगा।
रज्जो बाहर से ही मंदिर की सुंदरता देखती पर जब भी सोचती मंदिर मे जाने की तो माँ हाथ पकड़ लेती।
एक दिन तेज वर्षा होने लगी रज्जो खेत मे कामकर के घर लौट रही थी। वर्षा इतनी तेज थी कि सामने मंदिर को देख वह रुक गई। माँ दुर्गा की सुंदर प्रतिमा देखकर मंत्रमुग्ध हो गई। उसने माँ के चरणो मे माथा टेका और वही बैठ गई। और उसकी आँख लग गयी।
अचानक आवाज से नीद खुली तो देखा। मंदिर के पूजारी और बड़ी जाति के लोग उसे घेरे हुऐ है। वह डर गई सब लोग उसे गुस्से से देख रहे थे।
ऐ लड़की तुने आज मंदिर मे प्रवेश कर मंदिर को अशुद्ध कर दिया। क्या तुम्हे पता नही नीच कुल के लोगो का मंदिर मे प्रवेश वर्जित है।
रज्जो डरते हुए कहा साहब आप लोग मंदिर मे पूजा कर सकते पर हम क्यो नही कर सकते। बस इसलिए कि हम नीचकुल मे जन्म लिए है। मै ऐसी कुरूतियो को नही मानती।
ये कल की छोरी बहुत जबान लड़ाती है जब इसको इसके किये की सजा मिलेगी तब समझ आयेगा।
तब तक रज्जो के पिता आते है। अरे मालिक माफ कर दे छोरी को अब ये गलती कभी नही करेगी।
देख दीनूवा अभी बस तेरा मुंह देखकर इसे माफ कर देता हू। वरना अगली बार इसके किये पर हम सजा देगे। सारे लोग चले जाते है।
बाबा आपने माफी क्यो मांगी मैने कोई गलती नही की है। जानता हू पर हमारी गलती यही है कि हमने नीचकुल मे जन्म लिया। हमे कभी बराबरी दर्जा नही मिलेगा हम हमेशा इसी तरह गुलामी करते रहेगे। चल घर चल अब
एक बार गाँव मे सूखा पड़ा सारे कुए सुख गए बड़े जाति के लोग पानी के लिए तिल-तिल मरने लगे। पर नीच कुल के एक कुऐ मे पानी अब भी था। चाहे कितने भी सूखे पड़े पर उस कुऐ मे पानी भरा ही रहता।
अब बड़ी जाति के लोगो के पास एक ही विकल्प था कि वह नीचकुल के कुए से पीने के लिए पानी लाऐ। पर क्या वह हमे पानी देगे हमने तो उनका मंदिर मे प्रवेश वर्जित कर रखा है। इस तरह मरने से अच्छा है हम उनसे विनती कर पानी लेले।
जब गांव के लोग उनके पास पानी लेने गऐ तो सबने मालिक की मदद की बिना कुछ कहे उन्हे पानी भरने दिया। पूजारी की नजर जब रज्जो पर पड़ी तो वो मुस्करा रही थी। जैसे कह रही हो कि "देखो पूजारी आज आपके भगवान हमारे गाँव का ही पानी पिऐगे।
उस दिन के बाद गांव के लोगो का हृदय परिवर्तन हुआ और मंदिर पर लगे बोर्ड कि "नीचकुल प्रवेश वर्जित" का बोर्ड हट गया।
नलिनी मिश्रा द्विवेदी
बरगद का पेड़
कथा जो ना सुनी वो बाँचता हूँ मैं
कथा जो ना सुनी वो बाँचता हूँ मैं
. कथाएं बताती हैं रोचकता से कई प्रसंग
जीवन के बाह्य और भीतरी कलेवर के
कथा में छिपे काव्य को उकेरती हैं
. काव्य में बसी भाषा को संवारती है।
सतयुग से लेकर कलयुग तक.....
बाँची गई, संवरती रहीं, रचती रही अपनी छवि
नव युग है, नव काल है, नवबंधन हैं नयी है चाल कथाओं
की।।
कथा हूँ मैं बाँचता आज नयी
गर्भावस्था में खिलती कन्या भ्रूण की
कन्या जो कथाओं में पूजित है ।
तस्वीरों में सौंदर्य का प्रतिमान है।
पर कथा का सत्य कौन बाँचता है!
प्रथम माह से चिंतित घर बाहर सब
बेटी ना हो पहली, बेटा हो जाए ,चिंता मिट जाए
माँगे मन्नतें, बाँधे धागे, पूजे लोक- देव सभी
गर्भ में पलती मैं सोचती बार- बार
कोई तो दिखाओ मुझे भी उत्साह
.. क्या! प्रफुल्लित मन, बाँहे पसार,होगा उसका स्वागत
इस काल ।।।।
कथा हूँ मैं बाँचता वृक्षों के दर्द की
पूजित जो त्योहारों में, वर्णित जो काव्यों में,सजाते संसार
जीवों का आधार, प्रकृति का श्रृंगार, पाखियों का बसेरा
पर बाँचनी है कथा भीतर के घात की
मानवीय शैतान की, काटता जो असंख्य पेड़ लालसा में
भोजन,कागज ,घर या व्यापार का नाम ले
नोचता, काटता, भस्म करता, हमारा हरियाला शरीर
नीम, पीपल, आम, वटवृक्ष, बन देते हम सर्वस्व
पर दंभ में चला कुल्हाड़ी, भेदता ड़ाली- ड़ाली
नुकीले वारों से रक्तरंजित मेरा हर पात
वृक्षहीन होगी जब धरा , तुम सब पछताओगे
मेरे चित्र तब किताबों में पाओगे।।
. .कथा हूँ बाँचता मैं अब निराली
है कथा यह मेरी गीले भावों वाली
माँगते सब प्रभू से घर का चिराग, आँगन की कली
पर देखते जब कुछ कम है अंग प्रत्यंग में
आँख, कान ,हाथ ,पैर या दिमाग से कमजोर
मरती तुरंत सारी संवेदनाएं, भावनाएं खून के रिश्तों वाली
पहले विकलांग अब दिव्यांग बन गया हूँ मैं
बचपन में ही सीखा , असल नकल का फर्क
शून्य का भी महत्व मानता है गणित
पर एक कम स्वीकार नहीं करता जगत
बाँचना चाहता हूँ अपनी कथा प्यार,प्रीत, हिम्मत और
खुशियों वाली
कथा जो ना सुनी वो बाँचता हूँ मैं।।
ड़ा.नीना छिब्बर।
17/653
....चोपासनी हाउसिंग बोर्ड
जोधपुर
श्याम मठपाल ,
कहानी - काली रात भागुली आज सुबह बहुत ही जल्दी उठ गई थी। मन उसका बहुत ही प्रफुल्लित था। जी तोड़ मेहनत के बाद भी उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट तैरती थी। नीचे गगास का पानी चांदी की तरह चमक रहा था। पहाड़ी के बीच में घर था उसका। ऊपर हज़ारों फ़ीट ऊँचा और नीचे हज़ारों फ़ीट गहरी घाटी। घर के आस-पास फलों व फूलों के ढेर सारे पेड़ -पौंधे महक रहे थे। एक तरफ बाँझ के पेड़ व दूसरी तरफ चीड़ के पेड़। तेज हवा के साथ सें- सें की आवाज आ रही थी साथ में उसमें ठंडक थी। घर में भागुली की सासु खिमुली व ससुर मोहन प्रसाद थे। दो छोटे बच्चे जो स्कूल जाते थे। उसका पति गोपाल प्रदेश में नौकरी करता था। कल रात को उससे बात हुई थी । वो कल पहुँचने वाला था। फ़ोन पर उसने पूछा था 'घर के लिए और तुम्हारे कुछ लाना हो तो बताओ ' वह कोई जवाब नहीं दे पाई थी। उससे इसी बात की ख़ुशी थी कि पूरे एक साल बात उसका आदमी घर आ रहा है। उसने जल्दी -जल्दी गोठ से गोबर निकाला। दूध दुहा। जानवरों को चारा-पानी दिया। पास के धारे से दो-तीन घड़े पानी भी भर कर ला चुकी थी। सास ससुर उठें उससे पहले उसने चाय के केतली चूल्हे पर चढ़ा दी थी। उनके उठते ही चाय का गिलास उनको थमा दिया। उसको ढेर सारा काम याद आ रहा था। घास ,लकड़ी ,कपडे और बहुत कुछ। इधर आसमान में गहरे काले बादल छाए हुवे थे लग रहा था जोरदार बारिश होगी। इधर कौवा नीम की डाल पर जोर-जोर से कांव -कांव कह रहा था। वह बोली 'मुझे भी मालूम है तू क्यों बोल रहा है ,मेरे वो आने वाले हैँ। इधर सास -ससुर व बच्चे भी बेहद खुश थे। बहुत समय बाद मिलना व मुख देखना होगा। इसी बीच जोरदार बारिश शुरू हो गई । फिर भी उसके उत्साह में कोई कमी नहीं थी। वो भीग कर भी सारे काम निपटा रही थी । इसी समय खेतो की निराई -गुड़ाई का काम भी होता है। सास-ससुर भी उसे काम में सहयोग देते थे। देखते -देखते दिन छुप गया । उसने रात का खाना भी जल्दी बना कर सबको समय पर खिला दिया। सब बर्तन वगैरह साफ़ करने के बाद उसने अपने आदमी से बात की। उसे मालूम पड़ा कि वह रात की ट्रैन से बैठेगा और सुबह हल्द्वानी पहुँचेगा। दोपहर तक वह घर पहुँच जाएगा। सब लोग सो चुके थे उससे नींद नहीं आ रही थी . इधर बारिश कई घंटो से चल रही थी और थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। तड़ - तड़ की आवाज आ रही थी। बीच में बादलों के गरजने व बिजली के कड़कने की आवाजें भी आ रही थीं। उसका मन काँप रहा था। ना जाने ये रात कब बीतेगी। करवटें बदलते हुवे उसकी भी आँख लग गई । थोड़ी देर बाद बहुत तेज आवाज हुई। इसके पहले की घर के लोग कुछ समझते , आवाज उनके घर बिलकुल करीब आ गई और कुछ ही क्षणों में पूरे घर को एक झटके में अपने साथ लेकर गहरी घाटी में समा गई । सुबह लोगों को पता चला उनके घर के ऊपर स्थित एक पहाड़ का हिस्सा का टूट गया जो बड़े पत्थरों के साथ उस पूरे घर और उसमें रहने वालों को भी अपने साथ ले गया। इधर गोपाल बड़ी ख़ुशी के साथ घर पहुंचा। देखा उसके घर के पास भीड़ है। यह देखते ही उसके होश उड़ गए और मन आशंका से भर गया । भारी क़दमों से वहां तक पहुँचा और वहां पहुँच कर उसे सब कुछ समझ आ गया। वह वहीँ पर धम्म से बैठ गया। सोचने लगा इस काली रात ने एक पल में मेरे सारे संसार को उजाड़ दिया। श्याम मठपाल ,उदयपुर. |
कभी-कभी जिंदगी
कभी-कभी जिंदगी क्यों कभी-कभी ये जिंदगी हैवान सी लगती है क्यों कभी-कभी जिंदगी परेशान सी लगती है।। कभी दवा तो कभी दुआ तो कभी हैरान सी लगती है क्यों कभी-कभी ये जिंदगी हैवान सी लगती है।।2।। ज़ख़मी शायर के शब्दों मे कुछ ये जिंदगी पैगाम सी लगती है कभी घायल तो कभी मलहम लगा ये शब्दों की दुकान सी लगती है।। क्यों कभी-कभी ये जिंदगी हैवान सी लगती है।।2।। क्यों खुशी के दो पल बाद ही ये जिंदगी दर्द-ए जाम की महफ़िल सी सजती है।। क्यों फिर हर रात ये जिंदगी काग़ज कलम के नाम से ही फबती है।। क्यों कभी-कभी ये जिंदगी हैवान सी लगती है।।2।। मुस्कुराहट के नाम पे ये जिंदगी आंसुओं के सैलाब संग बरसती है सुकून,खुशी,मुस्कुराहट के लिये अब ये जिंदगी तरसती है।। क्यों कभी-कभी ये जिंदगी हैवान सी लगती है।।2।। वीना आडवानी नागपुर, महाराष्ट्र *************** |
कभी कभी ज़िंदगी में
कभी कभी ज़िंदगी में कभी कभी ज़िंदगी में ग़म है ग़म की दवा बनाने के लिए बेसाख्ता दिल से निभाने तो कभी खुद को हंसाने के लिए ज़िंदगी का हर पड़ाव देखा है दुःख सुख साथ साथ देखा है ज़िंदगी लगाती है खरोंचें करती है कोशिशे तराशने के लिए कभी कभी जरूरतें करती है बात ज्यादा ऊँची आवाज़ में सहम गयी है खुवाहिशें जो थीबे-सब्र पूरी हो जाने के लिए पिछले जन्मों का फल है किसी को फूल किसी को कांटे मिले लो हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद उसको पाने के लिए टूटा मेरा ये मन है रोगी तन है रिश्तों में दीखता बेगानापन है क्या कोई अब तरकीब निकाले अब रिश्तों को निभाने के लिए ज़मीँ सजाई गई ज़िंदगी की तड़प बढ़ाई गई सूरत सजाई गई आदमी इंसान बना कहाँ न रही जरुरत आइना दिखाने के लिए लिखा है मैंने खत एक इंसानियत के नाम कहाँ भेजूं मैं पैगाम पता मालूम नहीं तो डाकिया भी करे आनाकानी पहुँचाने के लिए झूठ लिखूं तो लफ़ज़ खफा होते है उलाहना भी गरज़ कर देते है काटे का ज़हर कैसा है मर जाऊँ मैं किसको कहूं काटने के लिए कोई अपना साथ न आए वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जिधर जाएँ लाश लावारिस जो मिले ले जाएँ उसे मरघट कि दबाने के लिए डॉ गुरिंदर गिल |
चंद्रिका
रिश्ते
क़लम की जुबां खोल देता हूॅ.
दोस्तों.. जो कड़वे के शौकीन उन्ही से अपने मिज़ाज मिलते हैं.. क्योंकि सच लिखना मेरी क़लम की आद़त है..और कम्ब़ख्त आजकल तो ये लत बन गई है.. आद़त छुट जाती लत कभी नहीं छुटती.. क्योंकि मैं... क़लम की जुबां खोल देता हूॅ. सच को काग़ज़ पर उतारने का खतरा मोल लेता हूॅ..! कुछ इस तरह अपनी क़लम की जुबां खोल देता हूॅ..! लफ़्ज़ों से अंदाजा लगाता हूॅ हर मानवीय किरदार का..! कौन कितना वजनदार उनके लफ़्ज़ों से तोल लेता हूॅ..! कहते हैं विचार ही आपको कीमती और बेमोल करते हैं..! विचारों से ही मैं किसे अमूल्य तो किसे बेमोल लेता हूॅ..! हर एक से कब कहां मिलते हैं हमारे मिज़ाज ये दोस्त..! जो अपने मिज़ाज का हो उससे ही अक्सर बोल लेता हू्ॅ..! कमल सिंह सोलंकी रतलाम मध्यप्रदेश |
***गाँव के मिट्टी में ही***
***गाँव के मिट्टी में ही*** *** ** **** * ** गाँव छोडकर वो प्यारा , आ गये हम नये शहर में । कुछ करने की चाहत लिए, और रोटी का चाँद था दिल में । सब कुछ नया नया सा था, हर इन्सान वो अनजाना था । ना कोई ठाव ठिकाना , अंबर के नीचे बसेरा था । रास्ता रास्ता भीड से भरा , हर कोई यहाँ भाग रहा था । बेचैन सी जिंदगी कैसी ? वो इन्सान यहाँ जी रहा था । कई उलझनें मन में लेकर , मायूसी चेहरेपर छाई हुई थी । हँसी खोकर वो जिंदगियाँ सारी, अपनापन कबका भूल गई थी । पल पल याद लगा वो गाँव, मिट्टी की खुशबू भी बुला रही थी । मेरे गाँव की मिट्टी में ही , खुशियों में झुमती ये जिंदगी थी । प्रा.गायकवाड विलास. मिलिंद क.महा.लातूर. 8605026835. ******
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क्या बहन बेटियाँ मायके सिर्फ लेने के लिए आती हैं
क्या बहन बेटियाँ मायके सिर्फ लेने के लिए आती हैं खिडकी के पास खड़ी सिमरन सोचती हैं राखी आने वाली है पर इस बार न तो माँ ने फोन करके भैया के आने की बात कही और न ही मुझे आने को बोला ऐसा कैसे हो सकता है।हे भगवान बस ठीक हो सबकुछ।अपनी सास से बोली माँजी मुझे बहुत डर लग रहा है।पता नहीं क्या हो गया।मुझे कैसे भूल गए इस बार।आगे से सास बोली कोई बात नही बेटा तुम एक बार खुद जाकर देख आओ।सास की आज्ञा मिलनेभर की देर थी सिमरन अपने पति साथ मायके आती हैं परंतु इस बार घर के अंदर कदम रखते ही उसे सबकुछ बदला सा महसूस होता है।पहले जहाँ उसे देखते ही माँ-पिताजी के चेहरे खुशी से खिल उठते थे इसबार उनपर परेशानी की झलक साफ दिखाई दे रही थी, आगे भाभी उसे देखते ही दौडी चली आती और प्यार से गले लगा लेती थी पर इसबार दूर से ही एक हल्की सी मुस्कान दे डाली।भैया भी ज्यादा खुश नही थे।सिमरन ने जैसे-तैसे एक रात बिताई परन्तु अगले दिन जैसे ही उसके पति उसे मायके छोड़ वापिस गये तो उसने अपनी माँ से बात की तो उन्होंने बताया इसबार कोरोना के चलते भैया का काम बिल्कुल बंद हो गया।ऊपर से और भी बहुत कुछ।बस इसी वजह से तेरे भैया को तेरे घर भी न भेज सकी।सिमरन बोली कोई बात नहीं माँ ये मुश्किल दिन भी जल्दी निकल जाएँगे आप चिंता न करो।शाम को भैया भाभी आपस में बात कर रहे थे जो सिमरन ने सुन ली।भैया बोले पहले ही घर चलाना इतना मुश्किल हो रहा था ऊपर से बेटे की कॉलेज की फीस,परसो राखी है सिमरन को भी कुछ देना पड़ेगा।आगे से भाभी बोली कोई बात नहीं आप चिंता न करो।ये मेरी चूड़ियां बहुत पुरानी हो गई हैं।इन्हें बेचकर जो पैसे आएंगे उससे सिमरन दीदी को त्योहार भी दे देंगे और कॉलेज की फीस भी भर देंगे।सिमरन को यह सब सुनकर बहुत बुरा लगा।वह बोली भैया-भाभी ये आप दोनों क्या कह रहे हो।क्या मैं आपको यहां तंग करके कुछ लेने के लिए ही आती हुँ।वह अपने कमरे में आ जाती हैं।तभी उसे याद आता है अपनी शादी से कुछ समय पहले जब वह नौकरी करती थी तो बड़े शौक से अपनी पहली तनख्वाह लाकर पापा को दी तो पापा ने कहा अपने पास ही रख ले बेटा मुश्किल वक़्त में ये पैसे काम आएंगे।इसके बाद वह हर महीने अपनी सारी तनख्वाह बैंक में जमा करवा देती।शादी के बाद जब भी मायके आती तो माँ उसे पैसे निकलवाने को कहती पर सिमरन हर बार कहती अभी मुझे जरूरत नही,पर आज उन पैसों की उसके परिवार को जरुरत है।वह अगले दिन ही सुबह भतीजे को साथ लेकर बैंक जाती है और सारे पैसे निकलवा पहले भतीजे की कॉलेज की फीस जमा करवाती है और फिर घर का जरूरी सामान खरीद घर वापस आती है ।अगले दिन जब भैया के राखी बांधती है तो भैया भरी आँखी से उसके हाथ सौ का नोट रखते है।सिमरन मना करने लगती है तो भैया बोले ये तो शगुन है पगली मना मत करना।सिमरन बोली भैया बेटियां मायके शगुन के नाम पर कुछ लेने नही बल्कि अपने माँबाप कीअच्छी सेहत की कामना करने,भैया भाभी को माँबाप की सेवा करते देख ढेरों दुआएं देने, बडे होते भतीजे भतीजियो की नजर उतारने आती हैं।जितनी बार मायके की दहलीज पार करती हैं ईश्वर से उस दहलीज की सलामती की दुआएं माँगती हैं।जब मुझे देख माँ-पापा के चेहरे पर रौनक आ जाती हैं, भाभी दौड़ कर गले लगाती है, आप लाड़ लड़ाते हो,मुझे मेरा शगुन मिल जाता हैं।अगले दिन सिमरन मायके से विदा लेकर ससुराल जाने के लिए जैसे ही दहलीज पार करती हैं तो भैया का फोन बजता है।उन्हें अपने व्यापार के लिए बहुत बड़ा आर्डर मिलता है और वे सोचते है सचमुच बहनें कुछ लेने नही बल्कि बहुत कुछ देने आती हैं मायके और उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगते है। सचमुच बहन बेटियाँ मायके कुछ लेने नही बल्कि अपनी बेशकीमती दुआएं देने आती हैं।जब वे घर की दहलीज पार कर अंदर आती हैं तो बरक़त भी अपनेआप चली आती हैं।हर बहन बेटी के दिल की तमन्ना होती हैं कि उनका मायका हमेशा खुशहाल रहे और तरक्की करे।मायके की खुशहाली देख उनके अंदर एक अलग ही ताकत भर जाती हैं जिससे ससुराल में आने वाली मुश्किलो का डटकर सामना कर पाती है।मेरा यह लेख सभी बहन बेटियों को समर्पित है और साथ ही एक अहसास दिलाने की कोशिश है कि वे मायके का एक अटूट हिस्सा है।जब मन करे आ सकती हैं।उनके लिए घर और दिल के दरवाजे़ हमेशा खुले रहेंगें। |
'नया जमाना'
अंखियां जी भर रोती हैं
मा से मायका
मा से मायका दोनों बहने व्यवसायियों के यह ब्याही थी ,बड़ी के घर का व्यवसाय ऐसा चला कि वह बहुत अमीर हो गई मगर छोटी बहन के घर का व्यवसाय घाटे में होने से उनका जीवन स्तर काफी नीचे आ गया था मगर जब भी दोनों बहने अपने मायके आती तो माता-पिता दोनों को एक जैसी साड़ी बच्चों को एक जैसे कपड़े दिया करते थे पिछले साल माता की तबीयत थोड़ी खराब हुई और वह अचानक ही चल बसी, पिताजी उनके गम को ज्यादा दिन सहन नहीं कर पाए और अगली बरसी मां की आते-आते पिताजी भी चल बसे दो रक्षाबंधन तो ऐसे ही बीत गए तीसरे साल जब दोनों बहने मायके में आए तो बड़ी बहन भाई नतीजों के लिए ढेर सारे तोहफे लेकर आई थी भाई भतीजे पहन कर उन्हें खूब शोर मचा रहे थे कह रहे थे मेरा वाला सुंदर यह बहुत अच्छा है बुआ आप बहुत अच्छा लेकर आए, मगर छोटी बहन बेहद उदास थी क्योंकि उसकी इतनी हैसियत नहीं थी कि वहां कुछ ज्यादा सामान भाई भतीजे के लिए ला पाती सबसे दुखद बात तो तब हुई जब दोनों बहनों की विदाई की गई तो छोटी बहन ने देखा की बड़ी बहन की व उनके बच्चों के सभी कपड़े ब्रांडेड थे और छोटी बहन की दोनों बच्चों की व उनकी साड़ी भी डुप्लीकेट सिल्क की थी यह देख कर छोटी बहन की आंखों में आंसू आ गए मगर उसने कुछ ना कहा, मां के रहते उसे कभी यह एहसास नहीं हुआ था कि वह किसी तरह से आर्थिक रूप में कमजोर है , क्योंकि उससे सबका प्यार वैसा ही मिलता था जैसा बड़ी बहन को छोटी बहन सोच रही थी की अर्थ इतना शक्तिशाली होता है कि वह एक ही गर्भ में पैदा होने वाले भाई-बहनों की सोच को एक दूसरे के प्रति अलग अलग कर दें आज से मां पिता की बहुत याद आ रही थी सोच रही थी कि लोग सच ही कहते हैं मां से ही मायका होता है
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"एक सैनिक की बहन की चिट्ठी अपने भाई के नाम
"एक सैनिक की बहन की चिट्ठी अपने भाई के नाम" फिर आ गया राखी का त्यौहार। भाई बहन के पवित्र बंधन का त्यौहार। रक्षा और आशीर्वाद से हरा-भरा त्यौहार। श्रावणी पूर्णिमा का जगमगाता त्यौहार। भैया, इस राखी पर क्या आओगे घर ? घर की चोखट पर थाल सजाये बैठी हूं। हाथों में राखी, रास्ता तकती निगाहें। कितने बरस बीत गये, राखी के पर्व पर, घर नहीं आए ? इस बार भैया आ जाओ! मैं तुम्हें अपने हाथों से केसरी तिलक लगाऊँ। मंगल गीत गांऊ। आरती उतारुँ। मुंह मीठा कराऊँ। तुम्हारी कलाई पर आशीर्वादों की, प्रार्थनाओं की तिरंगी राखी बांधू। तुम्हारी लंबी उम्र के लिये दुआंए मांगू। युं तो दिन-रात मेरी प्रार्थनाओं में तुम रहते हो। मां-पिता का आशीर्वाद, बहन की दुआएं, पत्नी का करवा चौथ, तुम्हारे इर्द-गिर्द कवच बन मंडराता होगा। पर दिल हरदम डरता है। यह कवच कोई भेद न पाये। ईश्वर से यही विनंती बारबार करती रहती हूं। याद आती है, रह-रहकर, वह बचपन की राखी। मेरी हर नादानी, हर गलती पर, तुम्हारा मुस्कुराना। हर डांट से बचाना। मेरे लिये घर में सबसे लड़ना। कितनी बातें है़ जो दिल तुमसे करना चाहता है। अगले बरस तो ब्याह है! फिर, दूर चली जाऊंगी। इस बार आ जाओ। राखी का त्यौहार मिलकर मनाते है। वही घमाचौकडी़, वही शरारतें, हुड़दग मचाते है। फिर से, जी लेते है बचपन को! इस घर को गुलजार करते है। दरो दीवार को, इस मकान को, घर बनाते है। मंजू लोढ़ा , |
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