अंखियां जी भर रोती हैं

अंखियां जी भर रोती हैं

 

इस दुनिया में कुछ कुछ बातें

बडी अजब सी होती हैं।

होता है कुर्बान वो बकरा

सारी बकरी रोती हैं।।

प्यार, मुहब्बत, नेकनीयती

इंसां में मौजूद नहीं।

और उधर ये मूक जानवर

प्रेम की लडी पिरोती हैं।।

मन से है संबंध मनों का

धारा एक प्रवाहित है।

कुर्बानी की रात मुहब्बत

नहीं घडी भर सोती हैं।।

ये जज़्बात अनूठे बैरी

कसक उठाते रहते हैं।

दिल में बसी नशीलीं यादें

बीज विरह की बोती हैं।

सावन की बूंदों के आते

याद आ गई प्रियतम की।

जब भी जी भर भर आता है

अंखियां जीभर रोती हैं।।

 

लखन पाल सिंह *शलभ*

    

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